राम मंदिर : दिलों में ईंटें, लबों पर खुदा

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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार ने न्यास की घोषणा कर दी है और पांच एकड़ जमीन 25 किमी दूर मस्जिद के लिए तय कर दी है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करके सरकार ने अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली है। मंदिर तो बन ही जाएगा। संघ और भाजपा की मुराद तो पूरी हो ही जाएगी। लेकिन पता नहीं, मुसलमान संतुष्ट होंगे या नहीं।

मुस्लिम संगठनों और नेताओं में से आज तक किसी ने भी सरकारी घोषणा का स्वागत नहीं किया है। उनमें से कुछ ने तो यह अतिवादी बात भी कह दी है कि मस्जिद तो वहीं बनेगी, जहां उसका ढांचा खड़ा था। उन्होंने यह भी कहा है कि अयोध्या से 20-25 किमी दूर उस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने कौन जाएगा ? जिस सुन्नी वक्फ बोर्ड को यह 5 एकड़ जमीन दी गई है, उसके अधिकारी भी नहीं जानते कि बोर्ड उसे स्वीकार करेगा या नहीं ?

दूसरे शब्दों में अदालत का फैसला लागू तो हो रहा है लेकिन डर है कि वह अधूरा ही लागू होगा। इसके लिए क्या अदालत जिम्मेदार है ? नहीं, इसकी जिम्मेदारी उसकी है, जिसने उस पांच एकड़ जमीन की घोषणा की है। वह कौन है ? वह सरकार है।

भाजपा की सरकार अपने मन ही मन खुश हो सकती है कि उसने देश के हिंदुओं की मुराद पूरी कर दी लेकिन मैं पूछता हूं कि किसी भी लोकतांत्रिक सरकार का कर्तव्य क्या है ? उसका काम वही है, जो नरेंद्र मोदी कहते-कहते नहीं थकते याने सबका साथ, सबका विश्वास ! मैं तो कई वर्षों से कह रहा हूं कि यह मंदिर-मस्जिद का मामला अदालत की बजाय सरकार, नेताओं और धर्म-ध्वजियों को आपसी संवाद से मिलकर हल करना चाहिए ताकि किसी को कोई शिकायत नहीं रहे।

चंद्रशेखरजी और नरसिंहरावजी के काल में इस तरह के कई अप्रचारित संवाद मैंने आयोजित किए थे। उसी पृष्ठभूमि के आधार पर 1993 में प्र.मं. नरसिंहरावजी ने 67 एकड़ जमीन इसीलिए अधिग्रहीत की थी कि वहां भव्य राम मंदिर के साथ ही सभी प्रमुख धर्मों के तीर्थ-स्थल बनें। राम की अयोध्या विश्व तीर्थ बने। ताजमहल से ज्यादा लोग इस विश्व-तीर्थ को देखने जाएं। सर्वधर्म सदभाव की वह बेमिसाल मिसाल बने। लेकिन यह वक्त बड़ा टेढ़ा आन पड़ा है।

अब जबकि नागरिकता को लेकर सारे देश में हड़कंप का माहौल है और विदेशों में भी गलतफहमी फैल गई है, मंदिर-मस्जिद का यह मामला उलझे बिना नहीं रहेगा। देश के मुस्लिम संगठनों और नेताओं से मैं अपील करता हूं कि वे थोड़े संयम का परिचय दें।

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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