राज तेली हुआ और ब्राह्मण-भूमिहार बंधुआ

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जरा यह भी सोचें कि भारत का प्रधानमंत्री जब बेशर्मी से तेली, मोदी, साहू, पिछड़ों की जातिवादी राजनीति में अपने समाज को कथित अपमान की आग में वोट देने के लिए ललकार रहा है तो क्या यह इस हकीकत का प्रमाण नहीं है कि नरेन्द्र मोदी वोट की सौ टका जातिवादी बुनावट लिए हुए हैं।

नरेन्द्र मोदी जाति से तेली हैं और वोट के लिए, अपनी असुक्षा में उन्होंने जाति का सहारा लेते हुए तेली गौरव को छत्तीसगढ़ की सभा में यह भाषण देतु भुनाया कि मैं जो हूं, साहू भी वही है। इसलिए मुझे बताया चोर अपने समाज का अपमान है! तेली मोजी, साहू समाज का अपमान करने वाले (कांग्रेस) से बदला लेना है। सो, भाजपा हुई तेली पार्टी और नरेंद्र मोदी हुए तेली नेता! आप सोच सक ते हैं मैं कैसे भदेस अंदाज में राजनीति का तेलीकरण कर दे रहा हूं, लेकिन जरा यह भी सोचें कि भारत का प्रधानमंत्री जब बेशर्मी से तेली, मोदी, साहू, पिछड़ों की जातिवादी राजनीति में अपने समाज को कथित अपमान की आग में वोट देने के लिए ललकार रहा है तो क्या यह इस हकीकत का प्रमाण नहीं है कि नरेंद्र मोदी वोट की सौ टका जातिवादी बुनावट लिए हुए हैं। वे कहने को राष्ट्रवादी, मां भारती के लाल हैं लेकिन उनका पोर-पोर जातिवादी है।

उन्होंने पांच साल के राज में तेली-पिछड़ा राजनीति की और भाजपा के भीतर बाकी जातियों को काटा। फिर भले वे ब्राह्मण-भूमिहार हों या आदिवासी। इसकी हैरान करने वाली बातें मुझे पिछले सप्ताह झारखंड में सुनने को मिलीं। जैसे छत्तीसगढ़ में आदिवासी बुरी तरह भाजपा से उखड़े हुए हैं वैसे झारखंड में भी हैं। खूंटी, तमाड़, खरसांवा, जमशेदपुर घूमते हुए मुझे पहली बार अहसास हुआ कि प्रदेश में तेली वोट न केवल गोलबंद हैं, बल्कि झारखंड का टेक ओवर भी कि या हुआ है। मुगयमंत्री रघुवर दास को मैं बनिया मानता था लेकिन वे तेली जाति से हैं और उन्होंने चार साल के अपने राज में आदिवासी के जमीनी हक के कानून आदि से जैसी जो छेडख़ानी की है उसकी जड़ में तेली याकि दास, मंडल, मोदी, साहू जैसे उपनामों में समाहित तेली-पिछड़ों का आदिवासी इलाको में शोषक -शोषित की तासीर का हाथ है।

मुझे यह आंक ड़ा सच्चा नहीं लगता कि झारखंड में तेली आबादी कोई 25-30 प्रतिशत है लेकिन जेएमएम के एक पुराने नेता सूरज मंडल ; मैं पहले उन्हें आदिवासी मानता था। जब ऐसे आंकड़े देते थे तो भरोसा नहीं होता था लेकिन इस बार लोकसभा की आदिवासी सीट खूंटी घूमते हुए जब सुना कि आदिवासी बहुल कोलेबीरा, सिमडेगा जैसे विधानसभा इलाको में तेली वोट 30-30 हजार हैं और संभव है कि अर्जुन मुंडा क्योंकि रघुवर दास विरोधी माने जाते हैं और उन्होंने आदिवासी भू-अधिकार कानून को बदलने के मामले में रघुवर सरकार के खिलाफ स्टैंड लिया था तो तेली वोट चुपचाप उन्हें निपटा भी सकता है। इलाके में तेली इतनी संख्या में इतने अधिक प्रभावी हैं कि ये सालाना जलसे करते हैं और नरेंद्र मोदी के भाई बतौर विशिष्ठ मेहमान इनमें शामिल होते हैं!

मतलब झारखंड की राजनीति से आदिवासी, ब्राह्मण, भूमिहार, कुर्मी आउट और तेली-बनियों का वर्चस्व! तेली-बनिया राज ने लोक सभा के इस चुनाव में मोदी-दास से झारखंड में ऐसी हिम्मत बनवाई कि कुर्मी जाति के प्रतीक और रांची में लगातार जीतते रहे रामटहल चौधरी की टिकट काट कर रघुवर दास ने रांची में साहू-बनिए को उम्मीदवार बनवाया तो भूमिहार, ब्राह्मण के पुराने चेहरे लगातार सांसद रहे रविंद्र राय और रवींद्र पांडे के भी टिकट काटे। इनकी जगह भाजपा ने किसको महत्व दिया। तो जानें लालू यादव की खास अन्नपूर्णा देवी को भूपेंद्र यादव ने भाजपा में लेकर दिग्गज आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी के सामने इस जातीय समीकरण में उम्मीदवार बनाया कि तेली, यादव, पिछड़े वोटों के दबदबे के आगे आदिवासी वोट नहीं डाल सकेंगें तो दबंगी का चेहरा लिए भूमिहार-ब्राह्मण बतौर मोदी के बंधुआ चुपचाप भाजपा को ही वोट देंगे।

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

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