योगी को केन्द्र की ना

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उत्तर प्रदेश में 17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करने के योगी सरकार के प्रस्ताव से असहमति जताते हुए मोदी सरकार ने इसे असंवैधानिक भी क रार दिया है। सोमवार को राज्यसभा में बसपा सांसद सतीश चन्द्र मिश्रा ने यह मामला उठाया था, जिस पर केन्द्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि योगी सरकार का प्रस्ताव विचार योग्य नहीं है। इस मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि ऐसी ही कोशिश सपा दो बार और एक बार बसपा भी कर चुकी है। मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने ओबीसी जातियों पर सियासी मेहरबानी दिखाई थी। बसपा ने शुरुआत में तो विरोध जताया था, लेकिन बाद में उन्होंने भी ऐसी ही कोशिश की थी। सबका वही हश्र हुआ जो अब योगी सरकार के प्रस्ताव का हुआ है।

प्रस्ताव का परिणाम क्या होने वाला है, शायद यह जानते हुए ही योगी सरकार अपनी पहल का श्रेय नहीं ले रही थी। यूपी में जातिवादी ताकतों की काट भाजपा ने अतिइ पिछड़ों को जोडक़र खोज ली है। वर्ष 201 से लेकर अब तक के चुनाव नतीजे इस बात के गवाह हैं कि भाजपा का फार्मूला कारगर साबित हो रहा है। पार्टी की सजगता का अंदाजा इससे लगाया जा सक ता है कि डेढ़-दो फीसदी आधार वाली जातियों को भी जोडऩे से गुरेज नहीं। भाजपा राज्य में 51 फीसदी का वोट बैंक तैयार करने की दिशा में काम कर रही है। जाहिर है इस क वायद में अति दलितों और अति पिछड़ों पर पार्टी का पूरा फोकस है। भाजपा की इस क वायद से चौक न्नी सपा-बसपा की तरफ से योगी सरकार की नीयत पर सवाल उठाये जा रहे हैं। बसपा नेत्री मायावती ने साफ क ह दिया कि सपा सरकार की तरह योगी सरकार भी 17 ओबीसी जातियों को दलित श्रेणी का सपना दिखा रही है। सपा की तरफ से क हा गया सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट का क्या हुआ।

हालांकि आम चुनाव से पहले ही रिपोर्ट सरकार के पास आ चुकी थी और उसको लेकर पिछड़े तबके के नेताओं की बेचेनी भी बढ़ गयी थी। कोटे का कैप 50 फीसदी से ऊपर नहीं हो सकता, यह संवैधानिक व्यवस्था है। हालांकि गरीब सवर्णों को 10 फीसदी कोटा देने के लिए संविधान संशोधन मोदी के पिछले कार्यकाल में हुआ था। वैसे इस मसले पर बड़ी अदालत में मामला भी लम्बित है। इस सबके बीच कोटे को लेकर जो बेचैनी पिछड़ों में देखी गयी वही बेचैनी दलितों में भी देखी गयी। 17 ओबीसी जातियों को दलित वर्ग में शुमार क रने के पीछे सबसे बड़ी अड़चन 22 फीसदी कोटा है। कोटा न बढऩे पर दलितों की हिस्सेदारी प्रभावित होगी, इसलिए मायावती की त्योरियां चढ़ी हुई थीं और पिछड़ों के नेताओं की भी दुश्वारी कोटे में हिस्सेदारी को लेकर ही रही है। खुद योगी सरकार भी संभावित जातीय संग्राम को समझते हुए न्याय समिति की सिफारिशों पर आगे बढऩे से अब भी हिचक रही है। फिलहाल मोदी सरकार की तरफ से योगी सरकार के प्रस्ताव पर संवैधानिक स्थिति स्पष्ट होने के बाद बीते एक हद्गते से यूपी में जारी जातीय जंग को मोहलत मिल गयी है।

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