ये सब तो मोदी कई बार कह चुके !

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के मौके के इस बार के लाल किले के भाषण देने का माहौल न भाषण के पहले बना और न बाद में बन सका। पहली बार ऐसा हुआ कि मीडिया में इस बात को लेकर अटकलें नहीं लगाई गईं कि वे क्या-क्या बोलेंगे। उनके भाषण से पहले सिर्फ एक अनुमान लगाया गया था कि वे नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की घोषणा करेंगे और उन्होंने की भी। पर भाषण के बाद इस एकमात्र नई और बडी घोषणा पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई। यह कैसे देश के लोगों के लिए मुसीबत खड़ी करने और दुनिया भर की फार्मा कंपनियों की झोली भरने वाला फैसला है उस पर अलग से विचार की जरूरत है। पर हकीकत यह है कि शनिवार को लाल किले पर उनके भाषण को लेकर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और शाम में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने संन्यास की घोषणा कर दी, जिसके बाद प्राइम टाइम की लगभग सारी बहसें धोनी के संन्यास पर केंद्रित हो गईं।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से जो कुछ भी कहा, वह सब वे पिछले दो हफ्ते में कई कई बार कह चुके थे। इसलिए सब कुछ पहले से अनुमानित था कि वे क्या बोलेंगे। हैरानी इस बात की है कि इसके बावजूद वे 87 मिनट बोले। यह उनका तीसरा सबसे लंबा भाषण था, जबकि इसमें कहने के लिए उनके पास कुछ भी नया नहीं था। जब प्रधानमंत्रियों के साथ कुछ भी कहने को नहीं होता है तो कई प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्हें लाल किले से बहुत छोटा भाषण दिया। आधे घंटे या 35 मिनट के कई भाषण हुए हैं। प्रधानमंत्री ने भी जितनी बातें कहीं वह आधे घंटे से कम समय में कही जा सकती थीं।

प्रधानमंत्री ने जो बातें कहीं उनमें नई शिक्षा नीति, आत्मनिर्भऱ भारत अभियान, कोरोना से भारत की लड़ाई, जम्मू कश्मीर में चुनाव, नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन और राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास, चीन-पाकिस्तान पर परोक्ष निशाना और सीमावर्ती इलाकों में एनसीसी कैडेट्स की संख्या बढ़ाना और उनका प्रशिक्षण मुख्य है। राम जन्मभूमि मंदिर के बारे में तो प्रधानमंत्री पांच अगस्त को ही बहुत विस्तार से बोले थे। शिलान्यास के बाद उन्होंने अयोध्या में ही लंबा भाषण दिया था, इसलिए इस बारे में उनके पास बहुत कुछ बोलने के लिए नहीं था। हां, यह पहली बार हुआ कि किसी प्रधानमंत्री ने राम मंदिर का जिक्र लाल किले से किया।

जहां तक नई शिक्षा नीति की बात है तो प्रधानमंत्री ने पांच अगस्त को अयोध्या से लौटने के एक दिन बाद ही शिक्षा पर हुए एक सम्मेलन में बहुत विस्तार से शिक्षा नीति के बारे में बोला था। पिछले दो हफ्ते में वे दो बार विस्तार से इस बारे में बोल चुके हैं। सो, इस बारे में भी कहने के लिए कुछ नहीं बचा था। इसके बारे में लगभग सारी बातें प्रधानमंत्री खुद देश के लोगों को बता चुके हैं। प्रधानमंत्री ने 11 अगस्त को देश के सबसे ज्यादा संक्रमण वाले दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ कोरोना वायरस की रोकथाम को लेकर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की थी। इससे पहले भी कई बार वे कोरोना के मसले पर मुख्यमंत्रियों से बात कर चुके हैं। 11 अगस्त की बातचीत में उन्होंने दावा किया कि कोरोना से भारत की लड़ाई सही दिशा में जा रही है। हालांकि हकीकत यह है कि भारत में अब हर दिन 60 हजार से ज्यादा केसेज आ रहे हैं और एक हजार लोगों की रोज मौत हो रही है। फिर भी उनका दावा है कि लडाई सही दिशा में जा रही है। बहरहाल, 11 अगस्त को मुख्यमंत्रियों से बातचीत में उन्होंने जो कुछ कहा वहीं लाल किले से भी कहा।

जहां तक आत्मनिर्भर भारत अभियान की बात है तो मई के महीने से लेकर अभी तक इस मुद्दे का ऐसा तेल निकाला जा चुका है कि अब इसमें निचोड़ने के लिए एक बूंद तेल नहीं बचा है। पहले तो प्रधानमंत्री ने खुद राष्ट्र के नाम संबोधन में इसका ऐलान किया था। उसके बाद पांच दिन लगातार प्रेस कांफ्रेंस करके वित्त मंत्री ने इस अभियान के बारे में एक-एक बात बताई। इसके बाद तीन महीने में इसके हर पहलू की व्याख्या की जा चुकी है। खुद प्रधानमंत्री अनिगनत बार इसके बारे में बता चुके हैं। फिर भी लाल किले से 87 मिनट के भाषण में उन्होंने 30 बार आत्मनिर्भर भारत का जिक्र किया।

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से होने वाले भाषण से पहले हर बार भारत के नागरिकों को यह जिज्ञासा रहती है कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान के बारे में क्या बोलते हैं। इस बार यह भी जिज्ञासा थी कि प्रधानमंत्री चीन के बारे में क्या बोलते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने दोनों के बारे में परोक्ष रूप से अपनी बात कही। उन्होंने आतंकवाद और विस्तारवाद दोनों के दिन खत्म होने की बात कही, जिसमें पाकिस्तान और चीन का जिक्र छिपा था। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि एलएसी से लेकर एलओसी तक जिसने भारत की ओर आंख उठा कर देखने की जुर्रत की उसे सुरक्षा बलों ने उन्हीं की भाषा में जवाब दिया। वैसे भी प्रधानमंत्री लाल किले से भाषण करते हुए किसी दूसरे देश का नाम लेकर उस पर हमला नहीं कर सकते। तभी यह भी कोई नई बात नहीं थी। पिछले अनेक बरसों से देश के प्रधानमंत्री लाल किले से आतंकवाद, पाकिस्तान आदि को परोक्ष रूप से निशाना बनाते रहे हैं।

सो, नया कुछ नहीं था प्रधानमंत्री के पास कहने के लिए। उन्होंने पुराना सारी बातें दोहराईं। वे जिन बातों पर चुप रहे वो बातें ज्यादा अहम हैं। जैसे उन्होंने देश के आर्थिक मंदी के दुष्चक्र में फंसने का जिक्र नहीं किया। उन्होंने देश के करोडों लोगों के फिर से गरीबी रेखा के नीचे पहुंचने का जिक्र नहीं किया। देश की बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में है और कोरोना से लडऩे की हकीकत यह है कि भारत के ज्यादातर हिस्सों में आज भी लोग जांच और इलाज के लिए अस्पताल-अस्पताल भटक रहे हैं। अगर इन बातों का जिक्र करके प्रधानमंत्री देश के लोगों को भरोसे में लेते तो बेहतर होता।

शशांक राय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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