यूपी में बिजली बिलों में मनमानी

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देश भर में उपभोक्ता अधिकार के निर्देश लागू हैं, पर उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग को शायद उससे स्पेशल छूट मिली हुई है। इसी का नतीजा है कि कस्टमर्स को जो बिजली का बिल मिलता है, उस पर प्रति यूनिट बिजली दर दिखाई ही नहीं जाती। साथ ही उपभोग पर कई तरह के दूसरे चार्ज भी लगाए जा रहे हैं। इसका परिणाम लंबे समय से कस्टमर्स को मिलते अनाप-शनाप बिजली के बिलों के रूप में सामने आ रहा है। बिजली विभाग के पास इसके बचाव के लिए अपने कारण हो सकते हैं, जैसे कि बिजली दर के कई स्तर हैं और इतना विवरण देना कागज की बर्बादी होगी। असर वे कहते हैं कि विभाग ने रेट लिस्ट वेबसाइट पर दी है, जो चाहे, देख ले। कारण चाहे जितने हों, हर हाल में यह उपभोक्ता का अधिकार है कि उसे यूनिट का दाम पता रहे और यह उसे उसी बिल पर लिखकर दिया जाए, जिसका कि वह पेमेंट करता है। साइट पर जाकर टैरिफ जानना खुद को डिप्रेशन के अंधे कुएं में धकेलने जैसा है। फिर नियम भी यही कहते हैं कि बिल पर दरों की पूरी डिटेल होनी चाहिए या फिर मूल्य के प्रत्येक स्तर पर वसूली जाने वाली राशियों को अलग-अलग कॉलमों में दिखाकर कर उनका टोटल बिल में करना चाहिए। इस पर बिजली विभाग यह भी कहता है कि ऐसे ही बिल बनाने का चलन है, ऐसे ही चलता आया है।

बिजली के बिल में दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि एक ही उपभोग पर कई तरह के चार्ज लगाए जा रहे हैं। दरअसल यह बिना बिजली बेचे उपभोक्ताओं की जेब काटने का ही एक तरीका है। बिजली पर यूनिट रेट के अलावा दूसरे कॉलमों में अलग राशि की वसूली की जा रही है। बाजार में कोई भी चीज लेने पर टैस के अलावा रेट का एक ही कॉलम होता है, मगर इनके यहां अनेक होते हैं। उत्तर प्रदेश में तो ऐसा हो रहा है, अगर किसी अन्य राज्य के बिजली विभाग ऐसा कर रहे हैं तो वे भी सीधे-सीधे उपभोक्ताओं की जेब काट रहे हैं। फिर स्थायी शुल्क भी अब उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द बन चुका है। स्थायी शुल्क वह है, जो हम बिजली यूज करें, चाहे न करें, देना ही पड़ता है। अब जबकि बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है, तो आवंटित लोड प्रणाली खत्म करनी होगी। विभाग के लिए भी यूनिट के आधार पर मांग का निर्धारण करना अधिक तर्कसंगत है। इसी स्थाई शुल्क ने लॉकडाउन में व्यापारियों की कमर तोड़ दी है, योंकि यह प्राइवेट और कमर्शल, दोनों पर लागू है। लॉकडाउन में पांच महीने सब बंद रहा, 1 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार ने मार्च और अप्रैल के फिस्ड चार्ज माफी की घोषणा की।

मगर जुलाई में जो बिल बने, वे अप्रैल से लेकर जुलाई तक के बने। और तो और, इन बिलों में स्थाई या न्यूनतम शुल्क की दर भी नहीं दी है। बिजली उपभोग पर इलेट्रिसिटी ड्यूटी भी चार्ज की जाती है जो घरेलू कनेशन पर 5 फीसद तो कमर्शल पर 7.5 फीसद है। बिल में यह भी नहीं बताते कि यह ड्यूटी किस रेट से लगाई है। जबकि इसी ड्यूटी की सीमा में स्थायी और न्यूनतम शुल्क भी हैं। उपभोक्ताओं की शिकायत रही है कि समय से बिल भुगतान करने पर मिली छूट की राशि अगले बिलों में जोड़ दी जाती है। विभाग से जानकारी लेने पर बताया गया कि यह कंप्यूटर की व्यवस्था है, जो छूट को जोड़ता है और फिर घटाता है। परंतु व्यापारियों का कहना है कि इसमें भी घालमेल है और छूट कभी मिलती ही नहीं, वो बस अगले महीने शिफ्ट होती रहती है। 21वीं सदी उपभोक्ता संरक्षण की है। भारत में 24 दिसंबर 1986 से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू है। संयुक्त राष्ट्र की 9 अप्रैल 1985 की मार्गदर्शिका कहती है कि बिल में सारे तथ्य होने चाहिए। हम सभी बिजली विभाग की दुकान से बिजली खरीदते हैं। मगर बिजली विभाग अभी तक इसी हेकड़ी में दुकान चला रहा है कि ऐसा ही चलता आया है और ऐसा ही चलेगा।

गोपाल अग्रवाल
(लेखक व्यापारी नेता हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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