मायावती प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं?

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कांग्रेस का हमेशा विरोध करने वाली मायावती इतनी नरम क्यों पड़ रही हैं? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मायावती को अल्पसंख्यकों का वोट चाहिए। इसलिए वो यह नहीं दिखाना चाहती हैं कि वो कांग्रेस को हरा कर भाजपा को जिताना चाहती हैं।

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अमेठी और रायबरेली में अपने मतदाताओं से कांग्रेस के पक्ष में वोट डालने की अपील की थी। हालांकि इन दोनों जगहों पर गठबंधन ने उम्मीदवार न उतारने का फ़ैसला किया था और उम्मीदवार उतारे भी नहीं थे, लेकिन सवाल ये है कि इस घोषणा के बावजूद मायावती को ऐसी अपील क्यों करनी पड़ी? क्या मायावती की यह अपील भविष्य में बनने वाली सरकार का स्वरूप तय करेगी? पूर्व में मायावती जितना भाजपा पर अक्रामक रही हैं, उससे कहीं ज़्यादा कांग्रेस को उन्होंने निशाने पर लिया था। मायावती ने रविवार को भी दोनों पार्टियों को निशाने पर लिया, लेकिन अंत में कांग्रेस के प्रति उनका लहजा थोड़ा मधुर हो गया। अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस का हमेशा विरोध करने वाली मायावती इतनी नरम क्यों पड़ रही हैं?

इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मायावती को अल्पसंगयकों का वोट चाहिए। इसलिए वो यह नहीं दिखाना चाहती हैं कि वो कांग्रेस को हरा कर भाजपा को जिताना चाहती हैं। वो कहते हैं, उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश की दो सीटों पर कांग्रेस को समर्थन दे चुकी हैं। उनको मालूम है कि अगर उनको दिल्ली में प्रधानमंत्री या उप प्रधानमंत्री बनना है तो उन्हें भाजपा या कांग्रेस से हाथ मिलाना होगा। भाजपा में मायावती को इन पदों की गुंजाइश कम नजऱ आती है, इसलिए कांग्रेस को वो विकल्प के रूप में देखती हैं. कांग्रेस के साथ जाने में यह भी फ़ायदा है कि आगे चल कर अल्पसंख्यक उनसे नाराज़ नहीं होंगे। रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मायावती यह भी सोचती हैं कि कांग्रेस की सीटें कम आती हैं और अगर एचडी देवेगौड़ा या इंद्र कुमार गुजराल जैसी स्थिति बनती है तो वो सत्ता पर क़ाबिज़ हो सकती हैं।

मायावती की राजनीति कांग्रेस विरोध की रही है। जब अस्सी के दशक में कांसीराम ने बहुजन समाज पार्टी को स्थापित करना शुरू कि या, उस वक्त भाजपा इतनी ताक़ तवर पार्टी नहीं थी। कांग्रेस के विरोध के कारण ही बसपा का जन्म हुआ है इसलिए उसका मूल चरित्र कांग्रेस विरोध का रहा है। आज की रीजनीति में भी बसपा अपने मूल चरित्र से बाहर नहीं जा सकती है। यह एक स्थायी भाव है, जिसके तहत पार्टी कांग्रेस की आलोचना करती है। बसपा का दलित वोट ही उनका आधार है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था। कभी भी यह वोट बैंक कांग्रेस की तरफ़ लौट सकता है, यह ख़तरा बसपा को हमेशा महसूस होता है।

एक सवाल यह भी उठता है कि कांग्रेस को समर्थन देकर क्या सपा-बसपा का गठबंधन अंतिम के चरणों में उन जगहों पर फ़ायदा लेना चाहता है जहां कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं? वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, कांग्रेस ने पहले ही एक तरह से इशारा कर दिया है कि जहां हमारी जीतने की संभावना न हो, वहां गठबंधन के प्रत्याशी को वोट दें। एक तरह से यह प्री-पोल अंडरस्टैंडिंग है। कांग्रेस ने तमाम जगहों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जो भाजपा को नुक़सान कर सकते हैं. कांग्रेस ने भाजपा के पटेल के खिलाफ पटेल उम्मीदवार या फिर ब्राह्मण के खिलाफ ब्राह्मण उम्मीदवार ही मैदान में उतारा है। यह ऐसा इसलिए किया गया है ताकि भाजपा विरोधी वोट न बंटे और भाजपा को नुक़सान हो।

अभिमन्यु कुमार साहा
लेखक पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं

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