चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दो दिवसीय भारत दौरे चेन्नई के महाबलीपुरम में है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में तमिल संस्कृति की अद्भुत छटा के बीच उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ। बुहान की तरह महाबलीपुरम में भी यह दोनों नेताओं के बीच अनौपचारिक बैठक है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शुक्रवर को विभिन्न मसलों पर हुई अनौपचारिक वार्ता से निकले संदेशों के आधार पर जब शनिवार को दोनों तरफ से प्रतिनिधि एक साथ बैठेंगे जब जरूर कुछ ना कुछ आशाजनक परिणाम निकलेगा। वैसे यह अनौपचारिक यात्रा है। इसलिए किसी ज्वाइंट स्टेमेन्ट की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। फिर भी कुछ बातें छनते-छनते सार्वजनिक जरूर होगी, उससे काफी कुछ आगे का रास्ता तय होगा। यह संयोग ही है कि 2014 में पहली बार नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब चीन के राष्ट्राध्यक्ष पहले शख्स थे जो भारत आये थे। इस बार भी मोदी की दूसरी पारी में चीन के राष्ट्राध्यक्ष पहले शगस है जिनकी गर्मजोशी से अगवानी हुई है। इसी के साथ तीखा संयोग भी है। तब डोक लांग विवाद की छाया पूरे आयोजन पर थी।
इस बार भी दो दिन पहले पाक पीएम इमरान के साथ चीनी राष्ट्रपति ने कश्मीर मसले पर नजर रखने की बात से यहां आने से पहले कडवाहट जरूर अगवानी के उत्साह में घोल दी। फिर भी रिश्ते बनाये और बनाए रखने की कवायद चलती रहती है। यही इस दौर की कूटनीतिक सियासत है। बहुध्रुवीय रिश्तों के दौर में हर देश अपने हित से चीजों को देखता परखता है। यह पूरी तरह से व्यवहारिकता की मांग करता है। इस लिहाज से यह अनौपचारिक यात्रा दूसरे संदर्भो में मददगार हो सकती है। ऐसी उम्मीद की जाने चाहिए। यह सच है कि पाकिस्तान, चीन का अभिन्न मित्र है, इसकी बुनियाद 1963 में तब पड गई थी। जब पाकि स्तान ने गुलाम क श्मीर का एक टुक डा व्यापारिक विस्तार के लिए चीन को दे दिया था। इसीलिए चीन की नजर में दोस्ती पहाड जैसी मजबूत और शहद जैसी मजबूत है। भारतीय राजनय इस यर्थाथ को जानता है लेकिन अपने हित को बखूबी समझता भी है। कश्मीर पर साफ कह दिया गया है कि उस पर कोई बातचीत नहीं होगी।
इसके अलावा जो सीमा संबंधी विवाद है और ट्रेड को लेकर मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में अडचने उभरी है उस पर साक्षा कोई कोशिश कामयाब हो सकती है। शायद उस दिशा में बात होगी। दरअसल अमेरिका-चीन ट्रेड वार से चीन ही नहीं भारत भी प्रभावित है। चीन से भारत का व्यापारिक रिश्ता बेशक हजारों साल पुराना है लेकि न नए संदर्भों में यहां चीन से ज्यादा सामान आता है। जबकि भारत की स्थिति यथावत है। चीन भी ट्रेड का आकार बढ़ाने के लिए भारत की तरफ देख रहा है। ऐसा इसलिए भी कि अमेरिका ने इतने टैक्स लाद दिए है कि चीनी उत्पादों की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई है, जिसकी भरपाई शायद वह भारत से करना चाहे। ऐसी स्थिति का भारत कितना अपने पक्ष में लाभ उठा पाता है यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल उम्मीद की कूटनीतिक क वायद जारी है। जहां तक क श्मीर का मसला है तो बडे देशों में अकेला चीन ही पाकिस्तान के साथ खड़ा है लेकिन एक सीमा तक। उसके वहां अपने व्यापारिक हित है, ठीक इसके उलट इस यात्रा से यह बात स्पष्ट हो गई है कि भारत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।