अफगानिस्तान के खराब हालात को देखकर प्रत्येक देश अपने नागरिकों को वहां से निकालने में लगा है। सबको अपनी आपाधापी पड़ी है। अपने देशवासियों को बचाने,अफगानिस्तान से निकाल कर ले जाने की चिंता है। चिंता है कि उनके देशवाले किसी तरह बाहर आ जाएं। अफगानिस्तान रहने वालों को किसी का ख्याल नहीं , उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा । वहां की महिलाओं और युवतियों का किसी को ख्याल नहीं।अफगानिस्तान की जनता जाए भाड़ में । किसी को उससे कुछ लेना ?देना नहीं। तालिबानी युग में वहां के लोगों का जीवन कैसा होगा? वह कैसे जीवन जिएंगे, इससे किसी को कोई लेना देना नही। काबुल एयरपोर्ट के हालत से लगाया जा सकता है। कि अफगानिस्तान की हालत या होगी? तालिबान शासन में उन पर क्या बीतेगी?
काबुल एयरपोर्ट के हालात, वहां के चित्र , वीडियो तो वह हैं, जो हम तक पंहुच रहे हैं। जहां मीडिया की पंहुच नहीं, उसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। तालिबानी युग में जनता पर क्या? क्या जुल्म होंगे ये उसकी चिंता जाहिर करने को बहुत हैं । एयरपोर्ट के बाहर लगे कटीले तारों की बाढ़ से अपने आप अंदर आने में असमर्थ महिलाएं अपने बच्चें को बचाने के लिए तारों के ऊपर से जिस तरह बच्चों को फेंक रही है, उसे देखकर वहां के हालात की गंभीरता समझी जा सकती है। दरअस्ल अफगानिस्तान में तालिबान कहे कुछ भी पर आज वह वहां विजेता है। औरतों को भोगना उसका शगल। यही काबुल एयरपोर्ट पर एकत्र भीड़ का सोच है। ीतने के बाद वहीं आपा खो बैठती है। यहां तो लुटेरों के गिरोह है। वे किसी के नियंत्रण में नहीं हैं।
अपनी मर्जी के मालिक हैं। दूसरे अमेरिका कह रहा है कि सेना की मदद करने वालों को वह निकालेगा। लेकिन सबको निकालकर ले जाना तो संभव नहीं हैं। पाकिस्तान और चीन में सक्रिय बड़े आतंकी भी। अमेरिका का भी करोड़ों डालर का इनामी एक आंतकवादी यहां सरेआम घूमता नजर आ रहा है। अमेरिका के सेना वापसी के कदम ने एक काम बढिया किया है कि अब तक तालिबान की मदद कर रहे, चीन, पाकिस्तान और रूस अब अपनी बचाने में लग गए हैं। उन सबको अपना खतरा नजर आ रहा है। लग रहा हैं कि अफगानिस्तान पर कब्जा पाने के बाद ये तालिबानी उनके सामने परेशानी खड़ी कर सकतें हैं।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)