बेहतर ही होगा ये साल

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साल 2019 खत्म हो गया है। कईयों के लिएयह राहत की बात है। आखिर बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है यह साल। अप्रत्याशित और हास्यास्पद बातों वघटनाओं को लिए हुए।कई नई चुनौतियां, कई अनिष्ट हुए। वर्ष 2019 में कुछ नए चेहरों का उदय हुआ है जैसे- अबीय अहमद, ग्रेटा थुर्नबर्ग, जेसिंडा आर्डेन, जोशुआ वोंग, जबकि नरेंद्र मोदी, जस्टिन थ्रुडु और बोरिस जॉनसन के पुराने चेहरो का जलवा कायम रहा। नए चेहरों, नई चुनौतियां, अनिष्टकारी घटनाओं ने 2019 में बहुत मामूली उम्मीदें पैदा की जबकि चिंताएं ज्यादा बनी।

दुनिया ने 2019में काफी कुछ देखा है। हांगकांग में महीनों से जिस तरह से प्रदर्शन हुए, उससे वह बाकी दुनिया के लिए एक मिसाल बना। अफ्रीका में इथियोपिया और इरीट्रिया के बीच दो दशक से चला आ रहा संघर्ष खत्म हुआ। जलवायु संकट को लेकर आयोजित वैश्विक सम्मेलन के दौरान ग्रेटा थर्नबर्ग ने गुहार लगाते हुए जिस तरह से दुनिया के नेताओं का ध्यान खींचा, वह अपने में बड़ी घटना थी। जलवायु परिवर्तन की चिंता सवर्त्र फैली। डोनाल्ड ट्रंप को छोड़कर दुनिया के तमाम नेता इस मुद्दे पर चिंता करते मिले।

इस्लामिक स्टेट के स्वयंभू खलीफा और दुनिया की नाक में दम कर देने वाले आतंकी सरगना अबु बकर अल बगदादी की मौत की खबर से दुनिया जहां खुश हुई, वहीं न्यूजीलैंड और श्रीलंका में बम-विस्फोटों और आतंकी हमलों की घटनाएं यह अहसास कराती रहीं कि हमें वाकई आतंकवाद में ही जीना है। दुनिया ब्रेक्जिट को ले कर हैरान रही, ब्रेक्जिट होगा या नहीं की हैरानी के बीच दुनिया ने एक दिन अचानक यह भी जाना कि भारत में जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद 370 से बाहर निकल गया है। मतलब भारत के घरेलू मोर्चे में 75 साल पुरानी कश्मीर समस्या नया रूप ले चुकी है।

2019 में भी दुनिया नडाल और फेडरर से चमत्कृत हुएरही तो हम-आप की जिंदगी में, वैश्विक पैमाने पर मनोरंजन में अमेजन प्राइम व नेटफ्लिक्स अनिवार्यता बनता चला गया। साथ ही ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम की बेमतलब दुनिया में भी हमारा वक्त, दिमाग जाया होता गया।

दुनिया के लिए, भारत के लिए 2019 का मतलब यह भी है कि अर्थव्यवस्था सबको हलकान किए हुए है। चुनौतियों और आशंकाओं के बीच हर साल की तरह 2019में भी नेताओं, राजनीतिज्ञों को लेकर उम्मीदों का बनना जारी रहा। नेताओं ने ही सुर्खिया बटोरी। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने मसखरेपन से लोगों का मनोरंजन करते रहे और दुनियाभर में विवादास्पद रहे, तो बोरिस जॉनसन भी इस मुकाबले में उनसे कहीं अलग नहीं दिखे और दो बार सत्ता में आए। दुनियाभर में लोकलुभावनवाद की लहर में नेताओं की सत्ता बनती गई, उसमें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने अगले पांच साल के लिए अपनी कुर्सी वैसी ही पक्की बनाईजैसे इजराइल में बेंजामिन नेतन्याहू और भारत में नरेंद्र मोदी ने।

शक नहीं कि भारत के लिए 2019 का साल नेताओं का रहा, न कि जनता का। 2019 का साल इतिहास में ऐसे साल के रूप में दर्ज होगा जिसे शायद ही कोई भारतीय कभी भुला पाए। आखिर भारत के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण रहा यह साल? सोचे तो साल की शुरुआत बुरी हुई। फरवरी में पुलवामा कांड हुआ जिसमें सीआरपीएफ के 46 जवान शहीद हुए और इसने न केवल पूरे देश को झकझोर दियाबल्कि देश की राजनीति की दशा-दिशा भी बदल डाली। पाकिस्तान हर भारतीय के दिमाग में दुश्मन बन गया। लेकिन दुख की बात जो यह घटना राजनीति का औजार बनी और उसे हर तरह सेलोकसभा चुनाव में पूरी तरह से भुनाया गया।

चुनाव प्रचार के दौरान जगह-जगह देश में शहीदों के पोस्टर लगाए गए। सभाओं के लिए बनाए गए मंचों पर बड़े-बड़े पोस्टर इन शहीदों के थे। सबको लगा, संदेश बना कि भारत की हर समस्या के पीछे पाकिस्तान है। पुलवामा कांड पर जवाबी कार्रवाई में मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक कराई। दुनिया ने उसका अर्थ अलग निकाला और भारत के लोगों ने अलग। मगर साल की शुरूआत में मोदी की चुनाव में वापसी पर जो किंतु, परंतु थे उनके सर्जिकल स्ट्राइक में परखचे उडे। पूरे चुनाव प्रचार में मोदी इसे लेकर चले। चुनाव का बदतर रूप बना और नरेद्र मोदी 2014 के मुकाबले जोरदार बहुमत, ज्यादा ताकत, छप्पन इंची जलवे के साथ सत्ता में वापिस लौटे।

पर2019 के पहले छह महीनों की राजनीतिक चालाकियां पांच अगस्त 2019 के बाद हवा होने लगी। देश के नए गृहमंत्री अमित शाह ने संसद के जरिए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटने का ऐलान किया तो उसका नया गतिरोध भारत से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और कश्मीर घाटी के भीतर आज तक है। कश्मीर घाटी आज भी उसी हाल में है जो वहा पांच अगस्त 2019 के बाद बने थे। एक तरह कीतालाबंदी में बंद।

मानों वह कम था, सरकार यहीं नहीं रुकी। अमित शाह नेताबड़तोड वह नागरिकता संशोधन कानून बनवा डाला जो अप्रत्याशित था तो जोखिमपूर्ण भी। नतीजन अप्रत्याशित विरोध-प्रदर्शन और हिंसा का वह सिलसिला शुरू है जिसने सरकार में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे भी सवाल बना दिया है कि अब आगे कैसे बढा जाए? नागरिकता कानून के विरोध में जिस संख्या में लोग पूरी ताकत, संकल्प के साथ मोर्चे पर डटे हैं उसकी कल्पना 2019 के मध्य में चुनाव नतीजों के बाद नहीं थी। बावजूद इसके अमित शाह दृढ़ निश्चय, बेखौफ और आर-पार के अंदाज में डटे हुए है। हाल में एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में अनुच्चेद 370, सीएए, एनआरसी आदि को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होनेबेफिक्री, लापरवाही भरे अंदाज में कहा– कहां छह आठ महीने, देश पिछले 75 साल से इंतजार कर रहा था।

तभी मोदी के पथरीले रास्ते पर से 2019 शुरू हुआ तो वर्ष का अंत अमित शाह के धमाकों मेंहै। तब मोदी यदि हीरों हुए तो शाह खलनायक से नए नायक के रूप में है। वक्तभले हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नुकसान से खराब हुआ लग रहा है। पहले छह महिने और आखिरी छह महिनों का एक फर्क है। लेकिन उससे मोदी-शाह दोनों जरा भी विचलित नहीं हैं और न ही रुकने वाले है। आने वाले वक्त की दोनों ने2019 में स्क्रिप्ट और लिखदी है।

देश के लोगों का, आम जनता के नाते 2019 का जहां सवाल है तो मिलेजुले भावों का, अनुभव का वर्ष रहा। लोगों में अगर अयोध्या में राममंदिर बनने का रास्ता साफ होने से बवाल खत्म होने, सुकून का भाव बना तो देश की अर्थव्यवस्था काभट्ठा लगातार बैठते जाना यह चिंता बनाए हुए है कि बदहाली कब रूकेगी? उस नाते 2019 ने 2020 के लिए सवाल भी बनाए है। आज देश भर में प्रदर्शन और हिंसा का जो माहौल हैउससे क्या नए साल में मुक्ति मिलेगी? क्या देश में राजनीतिक और आर्थिक माहौल सुधरेगा? कुल मिलाकर क्या ऐसे नए दशक की शुरुआत होगी जिसमें समस्याएं कम से कम हों और उम्मीदों की रोशमी बने? या फिर समस्याएं विकट, विकराल रूप धारण करती जाएंगी? किसी ने सही कहा है कि भविष्य के बारे में भविष्यवाणी करना बुद्धिमानी नहीं होती। ऐसे में भविष्य पर क्या कहा जाए। बहरहाल नए साल की शुभकामनाएं।

श्रुति व्यास
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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