देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला ग्राउंड से आम जनता को मुखातिब करते हुए नागरिक संशोधन विधेयक के संदर्भ में अपनी बात रखी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कानून देश के किसी भी नागरिक के खिलाफ नहीं है। उन्होंने अल्पसंख्यकों की नागरिकता और सुरक्षा की गारंटी ली। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में विपक्ष और अपने धुर विरोधियों पर जमकर निशाना साधे। किंतु अपने इस भाषण से उन्होंने लोगों का विशेषकर देश के अल्पसंख्यक वर्ग के मुस्लिम समाज का भय और भ्रम दूर करने का प्रयास किया था। लेकिन उनका यह प्रयास देर से उठाया कदम ज्यादा दिखाई दिया। जनता तक मन की बात पहुंचाने में माहिर प्रधानमंत्री को आम जनता से इस संपर्क संवाद की जरूरत तभी समझ लेनी चाहिए थी जब सर्वोच्च न्यायालय ने क हा था कि नागरिक ता संशोधन अधिनियम पर व्यापक प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। किंतु सरकार ने जितनी सक्रियता इस विधेयक को संसद में पेश करने में दिखाई उतनी सक्रियता मुस्लिम वर्ग की शंका और आशंकाएं दूर करने में दिखाई होती तो शायद जो हुआ वो नहीं होता।
किंतु ऐसा लगता है कि लोकसभा और राज्यसभा में मंजूरी की मोहर लगते ही सरकार ने यह मान लिया कि अब इस मसले पर कुछ कहने सुनने की जरूरत ही नहीं है और ना ही विरोध कर रहे लोगों की चिंताओं का समाधान करने की जरूरत है। यही कारण रहा है कि आम जनता तो क्या कुछ शिक्षित और बुद्धिजीवी लोग भी इस विधेयक की बारीकियों और उसके जोर जबर से अनजान रहे, बस इसी का फायदा चंद विपक्षी दलों ने उठाया और सरकार के खिलाफ तीर कमानों को धार देने लगे। मुस्लिमों में यह बात बैठाई गई कि आने वाले दिनों में उनको भारत की नागरिकता से बेदखल कर दिया जाएगा। नतीजा सामने रहा। शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन के नाम पर कुछ शैक्षणिक संस्थानों से लेकर सडक़ों तक अराजकता का खुल्लम-खुल्ला प्रदर्शन किया गया। देश के लगभग हर राज्य के हर छोटे-बड़े शहरों से उपद्रव और हिंसा की खबरें आने लगीं। व्यवसाय और यातायात के साधन प्रभावित हुए। इंटरनेट और दूरसंचार सेवाएं बंद कर दी गई। जानमाल की क्षति होने लगीं।
किसी भी लोक तांत्रिक देश में किसी भी राजनीतिक या सामाजिक मसले का शांतिपूर्वक विरोध किया जा सकता है। यह नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन नागरिक संशोधन कानून को लेकर जिस तरह से देशभर में बड़े पैमाने पर आक्रोश में तोडफ़ोड़ और हिंसक घटनाएं हुई वो ना केवल गंभीर चिंता का विषय हैं बल्कि आत्मचिंतन करने की जरूरत है। बहुत ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि जब सरकार इस सबके बारे में जान रही थी कि लोगों को भ्रमित किया जा रहा है। उन्हें अफवाहों और झूठ के सहारे भयभीत किया जा रगा है। फिर सरकार की ओर से आम लोगों तक समय रहते पहुंचने का काम क्यों नहीं किया गया। विपक्ष का काम सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना हो सकता है। किन्तु विपक्ष ने अपना गैर जिम्मेदाराना रवैया अख्तियार किया। खासकर उन लोगों ने जिन्होंने इस विधेयक पर अपनी सहमति भी दी थी।
अपनी राजनीतिक स्वार्थ के चलते उन्होंने अपने सुर बदले और वो भी भेड़चाल चलते दिखे। धर्म निरपेक्ष देश में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त है। इन अधिकारों में कोई सरकार, कोई कानून किसी भी तरह की कटौती नहीं सकता। ऐसा करने पर न्यायपालिका हमारी सरपरस्ती करने को मौजूद है। देश के नागरिकों को विशेषकर मुस्लिमों को अपनी नागरिकों के संदर्भ में बिल्कुल संदेह की आवश्यकता नहीं है। जिस तरह से सभी धर्म के लोग संविधान में प्रदत्ता नागरिकता की गारंटी और भाईचारे के साथ इस देश में रह रहे हैं वो ऐसा ही भाईचारा कायम रखते हुए संपूर्ण गौरव और सम्मान के साथ देश में रहें उन्हें देश के संविधान कार्यपालिका और न्यायापालिका में पूर्ण विश्वास रखें। सरकारें आती जाती रहती हैं। राजनीतिक मतभेद चलते रहते हैं। किंतु देश के नागरिकों को राष्ट्र की सुरक्षा और कल्याण के लिए एकजुट और सतर्क रहना चाहिए।
डॉ. सरताज अहमद
(लेखक सुभारती ला कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर एवं समाजसेवी हैं ये उनके निजी विचार हैं)