बनारस की लंका में बजेगा प्रियंका का सियासी डंका

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मोदी को वाकओवर देने के मूड में नहीं विपक्ष, 27 को भर सकती हैं पर्चा, कांग्रेस चाहते हैं इलाहाबाद से चुनाव लड़े

सब जातने हैं कि नेता भी ज्योतिषियों पर भरोसा करते हैं। परसों की बात है। ऋषिकेश के एक ज्योतिषी से कांग्रेस के आला नेताओं ने जानना चाहा कि प्रियंका गांधी लखनऊ, इलाहाबाद और बनारस सीटों में सि किस पर लोकसभा चुनाव लड़े और किसी दिन पर्चा भरे तो मुफीद रहेगा। ज्योतिषी ने गणना की, जवाब दिया-बनारस और 27 अप्रैल। बात बाहर निकली और फैल गई। राजनीति के हल्कों में इस समय ये चर्चा जोरों पर है कि प्रियंका गांधी ही बनासर की सीट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को टक्कार देंगी। राजनीति के जानकार भी कहते हैं कि ये सपा-बसपा और कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है और प्रियंका के वहां से लड़ने पर नरेन्द्र मोदी को वाक ओवर नहीं मिलेगा। मुकाबला तगड़ा होगा और भारत की ये सबसे चर्चित सीट बन जाएगी।।

कौतुक के कई अर्थ हैं। पहला कांग्रेस और सोनिया-राहुल-प्रियंका तीनो का पहला मकसद पूरा हुआ। उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी से कांग्रेस को जोरदार कमान मिली। दूसरे, राहुल के बाद प्रियंका का बतौर स्टार प्रचारक देशव्यापी हल्ला संभव है। तीसरे, मीडिया और खास कर टीवी चैनलों में नरेन्द्र मोदी को जिताना स्पेस मिलता था। उसमें से काफी समय अब प्रियंका गांधी की कवरेज के कारण घटा है। मतलब टीवी चैनल न चाहते हुए भी प्रियंका गांधी के कार्यक्रमों को दिखाने को मजबूर हैं, क्योंकि दर्शकों में उनकी टीआरपी है। चौथी बात, प्रियंका बतौर हिन्दू खुद को थोड़ा बहुत उनके पास ले गई है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि गंगा और अयोध्या यात्रा के प्रियंका के शो ने औरत हिन्दू ब्राह्मण परिवारों व महिलाओं में खासी पैठ बनाई है। पुराने राजनीति के धुरंधर भी कहते हैं कि प्रियंका में इंदिरा गांधी की भाव-भंगिमा बूझने, पूजा-पाठ, सहज कम्युनेकेशन से मोटे तौर पर लोगों में धारणा बना है कि प्रियंका में दम तो है और यदि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वे वाराणसी में चुनाव लड़ती है तो मोदी के लिए चुनौती होगी।

वाराणसी में आखिरी चरण में 19 मई को चुनाव है। यानी 29 अप्रैल तक नामांकन भरा जाना है। जाने-माने पत्रकार हरिशंकर व्यास कहते हैं कि वाराणसी से प्रियंका का चुनाव लड़ना शक्ति को जाया करना होगा। क्योंकि यह चुनाव देश के लोकतंत्र, भविष्य के लिए आर-पार वाली है। मोदी की पुनःतख्तपोशी का अर्थ राहुल-प्रियंका का आखरी चुनाव भी है। तभी कांग्रेस राहुल, प्रियंका को केवल बनारस की सीट पर फोकस केन्द्रति करवाने की रणनीति नहीं बनानी चाहिए। उसके बजाय पूरे देश के अपने प्रभाव क्षेत्र में प्रियंका गांधी सघन कैंपेनिंग होनी चाहिए। प्रियंका गांधी के लिए वाराणसी में चुनाव लड़ना देशव्यापी इमेज, फोकस के नाते भले ठीक हो लेकिन कांग्रेस के व्यापक हित में उलटा होगा। फायदा कम और नुकसान ज्याया होगा। श्री व्यास करते हैं कि इस सीट पर मोदी के हारने की संभावना नहीं है। मोदी और योगी में इतना दम है कि ये चुनाव में हार के खतरे को देख कुछ भी कर सकते हैं। इसलिए प्रियंका को यदि वाराणसी में अपने सियासी करियर का पहला चुनाव लड़ना भी है तो हारने की हकीकत में लड़ना होगा।

यह सोचते हुए कि हार कर भी जीता जा सकता है। यदि आम चुनाव के नतीजों में नरेन्द्र मोदी की पुनःतख्तपोशी नहीं हुई तो प्रियंका को हराकर भी जीत मिलेगी। उधर कुछ कांग्रेसियों का तर्क है कि बिना चुनाव लड़े जनता में नेता की साख नहीं बनती। अमित शाह का चुनाव लड़ने का शो इसी के चलते है। तब अपना मानना है कि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के लिए आदर्श सीट प्रयागराज की है। ध्यान रहे नेहरू-गांधी परिवार का मूल घर, परंपरागत सीट इलाहाबाद, फूलपुर है। इसमें फूलपुर में सपा ने उपचुनाव में भाजपा को हरा कर अपना दबदवा बना रखा है तो इस सीट पर कांग्रेस-सपा-बसपा में सहमति नहीं हो सकती। उस नाते इलाहाबाद की सीट इसलिए प्रियंका के लिए पुख्ता है क्योंकि ब्राह्मण दबदबे वाली इस सीट में भाजपा ने रीता बहुगुणा जोशी को उतारा है। डॉ. मुरली मनोहर जोशी को टिकट नहीं और उनकी जगह दलबदलू रीता बहुगुणा की उम्मीदवारी प्रियंका के लिए फायदे वाली स्थिति है। एलायंस में यह सीट सपा को आई हुई है। सपा का अपना प्रतिष्ठादायी ऐसा उम्मीदवार नहीं है जो बातचीत या सौदेबाजी की कोशिश में अखिलेश यादव इस सीट को प्रियंका गांधी को छोड़ने से एकदम इनकार कर दे।

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