तीन राज्यों, कर्नाटक, उत्तराखंड और हाल ही में गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने के बाद सवाल पूछा जा रहा है कि भाजपा विभिन्न राज्यों में ऐसा क्यों कर रही है? इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके पीछे आगामी विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी है। विभिन्न राज्यों में नेतृत्व में बदलाव लाने के लिए पार्टी की चुनावी मजबूरी निश्चित रूप से बड़ा कारक है।
ऐसा भी माना जा रहा है कि कुछ राज्यों में सरकार के प्रदर्शन से लोग नाखुश थे। पार्टी नेतृत्व को यह अहसास था कि इसका असर वोट पर पड़ सकता है। कम से कम नए मुख्यमंत्री के रूप में नया चेहरा देने से इस नाराजगी को कम किया जा सकता है। इस अचानक बदलाव में नए चेहरों को कमान देना दर्शाता है कि केंद्रीय नेतृत्व का राज्य नेतृत्व पर नियंत्रण है, जो काफी हद तक कमजोर हैं।
हालांकि यह सवाल उठाया जा रहा है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में भी ऐसा बदलाव क्यों नहीं कर सकती? कर्नाटक में बदलाव का संबंध सीधे तौर पर चुनावी लाभ से नहीं है क्योंकि यहां निकट भविष्य में चुनाव नहीं है। इसका संबंध 75 वर्ष से ज्यादा के व्यक्ति को कोई पद न देने की भाजपा की नीति से है और वाय.एस. येदुरप्पा इस सीमा को पार कर गए थे। लेकिन बाकी राज्यों में बदलाव का संबंध चुनावी लाभ से है।
उत्तराखंड में दो मुख्यमंत्री बदले जा चुके हैं, जहां 2022 में चुनाव हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को लाया गया और फिर पुष्कर सिंह धामी आए। गौरतलब है कि ये सभी राजपूत समुदाय से हैं, जो चुनाव की दृष्टि से राज्य में प्रभावशाली जाति है। भले ही उनके वोट कांग्रेस और भाजपा में बंटे रहे हों, लेकिन सर्वे बताते हैं कि राजपूत भाजपा के प्रति ज्यादा वफादार रहे हैं।
जब भाजपा हारी भी, तब भी उन्होंने बड़ी संख्या में उसे वोट दिए। चुनावों से पहले पार्टी इस समुदाय को सकारात्मक संकेत देना चाहती है। गुजरात में पिछले मुख्यमंत्री को हटाने से ज्यादा, नए मुख्यमंत्री का चुनाव चौंकाने वाला रहा है। भूपेंद्र पटेल का अनुभव राज्य के बाकी वरिष्ठ भाजपा नेताओं से कम है। गुजरात में भाजपा के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल है क्योंकि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों इसी राज्य से हैं।
पिछले कुछ समय से यहां लोगों में राज्य सरकार के प्रति नाराजगी देखी जा रही थी। राज्य ने 2017 विधानसभा चुनावों से पहले बड़े पैमाने पर पाटीदारों के नेतृत्व में आंदोलन देखे थे, जो संख्याबल और आर्थिक रूप से राज्य में सबसे प्रभावी जाति है। नाराजगी के बावजूद बड़ी संख्या में पाटीदारों ने 2017 चुनावों में भाजपा को वोट दिया।
नए बदलाव के साथ भाजपा ने एक पाटीदार को मुख्यमंत्री बनाया है, जिससे इस समुदाय को स्पष्ट संकेत जाता है कि पार्टी पाटीदार समुदाय के वोट जुटाने का प्रयास कर रही है। इसी समुदाय के वरिष्ठ नेता नितिन पटेल की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री चुनना बताता है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व नियंत्रण अपने हाथ में रखना चाहता है।
इस बात के स्पष्ट संकेत थे कि भाजपा उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलना चाहती है क्योंकि वहां की जनता में भी राज्य सरकार के प्रति नाराजगी देखी जा रही थी। उप्र में 2022 में चुनाव हैं और यह राज्य भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से सबसे ज्यादा सांसद आते हैं। भाजपा को डर है कि उप्र में चुनाव हारने पर उसके राजनीतिक दबदबे को नुकसान पहुंचेगा और 2024 लोकसभा चुनावों की डगर मुश्किल हो सकती है।
लेकिन उप्र में जीत का मतलब होगा कि न सिर्फ भाजपा के प्रति तथाकथित नाराजगी के अनुमान गलत साबित होंगे, बल्कि विरोधी खेमे का उत्साह भी ठंडा पड़ जाएगा। हालांकि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उप्र में नेतृत्व परिवर्तन नहीं कर पाया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पद पर बने रहने में सफल रहे, लेकिन यहां भी बदलाव के प्रयास के पीछे चुनावी नुकसान को न्यूनतम और लाभ को अधिकतम करने का उद्देश्य था।
संजय कुमार
(लेखक सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएडीएस) में प्रोफेसर और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)