प्रियंका के आने से हाथ में जान तो आएगी

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अरसे से प्रियंका गांधी परदे के पीछे से राजनीति में थी लेकिन अब खुलकर सामने आ गई हैं। महासचिव बनना मायने नहीं रखता। अहम ये है कि सबसे बड़ी परीक्षा में कांग्रेस को मझदार से पार लगाने में प्रियंका कितनी मददगार साबित होंगी? अभी हमले राहुल गांधी पर हैं जल्दी ही प्रियंका पर ही होने लगेंगी।

इस बार का आम चुनाव हर राजनीतिक दल के लिए अहम है। खासकर कांग्रेस के लिए। अंदाजा इसी से होता है कि कांग्रेस ने अपना सबसे बड़ा या कह लीजिए कि आखिरी तुरुप का इक्का भी निकाल लिया है। 21 वीं सदी की शुरुआत से ही प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने की मुहिम तमाम कांग्रेसी छेड़े हुए थे लेकिन हजार बार की ना के बाद अब एक ही बार में हां में बदल ही गई। असरे से प्रियंका गांधी परदे के पीछे से राजनीति में थीं लेकिन अब खुलकर सामने आ गई हैं। महासचिव बनना मायने नहीं रखता। अहम ये है कि सबसे बड़ी परीक्षा में कांग्रेस को मझदार से पार लगाने में प्रियंका कितनी मददगार साबित होंगी? अभी हमले राहुल गांधी पर हैं जल्दी ही प्रियंका पर भी होने लगेंगी। खासकर पति राबर्ट वाड्रा को लेकर। क्या इन हमलों को झेलने की हालत में वो और कांग्रेस होगी? या फिर ये हमले ही कांग्रेस का वोट बैंक बढ़ाएंगे? सबसे बड़ी बात ये है कि जब तक मुट्ठी बंद होती है तो वो लाखों की मानी जाती है और जब खुल जाती है तो है तो खाक की भी निकल जाती है।।

समय ही बताएगा कि प्रियंका के आने से कितना फायदा होगा? लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि वो भाजपा के लिए भी चुनाव तक दिक्कत का कारण बनेंगी और सपा-बसपा गठजोड़ के लिए भी। वो दौर ज्यादा पुराना नहीं है जब भारत का मतदाता प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि देखता था। तो क्या वो छवि अब तक बरकरार है? अगर कांग्रेस को वोट बढ़ेंगे तो फिर घाटे में रहेगा कौन? राजनीति में उनके आने के बाद बहस छिड़ भी चुकी है लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीति में हर नेता अपनी छवि की खाता है। मोदी से मायावती तक। राहुल पप्पू की छवि से मुक्त होते नजर आ रहे हैं। ऐसे में प्रियंका का आना कांग्रेस के लिए फायदे का ही होगा इससे इंकार नहीं किया जा सकता। इसका सबसे बड़ा कारण है जनता से बिना तामझाम के सहज भाव से उनका मिलना। बात सुनना। मीठी बातें करना। ये एक सहज स्वभाव है जो प्रियंका को दूसरों से अलग करता है और राजनीति में जिसका नितांत अभाव है। भारतीय वोटरों के दिलो दिमाग से इंदिरा की छवि आजतक मिटी नहीं है ऐसे में प्रियंका की मानवीयता का फायदा कांग्रेस उठा सकती है। अपने पिता के हत्यारों तक को माफ कर प्रियंका ने साबित भी किया था कि वो लीक से हटकर सोचती भी हैं और बदले को तरजीह नहीं देतीं।।

इसमें भी कोई राय नहीं कि केलव इन्हीं गुणों के आधार पर अलगा चुनाव फतह किया जा सकता है। मोदी व शाह जैसी जोड़ी को हराना कोई हंसी खेल नहीं। लेकिन जो राहुल के अवगुण माने जाते रहे हैं अब भाई-बहन की इस जोड़ी के मिलने के बाद अब कम से कम ये उम्मीद तो की ही जा सकती है कि भाजपा को पिछली बार की तरह वाकओवर तो कतई नहीं मिलेगा। प्रियंका गांधी की मौजूदगी कांग्रस के ठहरे हुए तालाब में हलचक तो पैदा करेगी ही और यही हलचल कांग्रेसियों के लिए क्या काफी होगी? इस जवान जोड़े को अनुभवी शाह-मोदी से लड़ना है। साथ ही राहुल गांधी चाहे लाख इंकार करें लेकिन हकीकत यही है कि सपा-बसपा की ना की वजह से ही उन्होंने ये कदम उठाया। हो सकता है कि अब मायावती और अखिलेश सोचने को मजबूर हो जाएं। ये तय है कि अब भाजपा को राहुल के अलावा प्रियंका से भी निपटना होगा। जो मोदी व शाह के मुकाबले यूपी के औरतों के ज्यादा करीब है। लाख टके का सवाल यही है कि ये वोट में कितना बदलेगा? फिर भी राजनीति में ये बदलाव मायने रखता है।।

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