वे पचास शहीद जिनके अपने न थे, वे उनकी मौत के बाद ही अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी राजनीति में मशगूल हो गए। पार्टियां एक दूसरे पर जिस तरह के आरोप लगा रही हैं, उन्हें देख-सुनकर यकीन नहीं होता कि सियासत इस स्तर तक गिर सकती है। जनता का गुस्सा इस हद तक उबल रहा है कि उन्हें सही-गलत का अहसास ही नहीं हो रहा।।
पुलवामा के आतंकी हमले से मिला जख्म अभी हरा है। अभी तो शहीदों के घरों में मांओं, बेटियों के आंसू सूखे भी नहीं होंगे अभी तो बेटों और पिताओं को यकीन नहीं हुआ कि घर का उजाला हमेशा के लिए चला गया। ऐसा इसलिए कि वह जो शहीद हुआ उनका था। लेकिन वे पचास शहीद जिनके अपने न थे, वे उनकी मौत के बाद ही अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी राजनीति में मशगूल हो गए। पार्टियां एक-दूसरे पर जिस तरह के आरोप लगा रही हैं, उन्हें देख-सुनकर यकीन नहीं होता कि सियासत इस स्तर तक गिर सकती है। जनता का गुस्सा इस हद तक उबल रहा है कि उन्हें सही-गलत का अहसास ही नहीं हो रहा। कई लोगों ने देश के दूसरे हिस्से में रह रहे कश्मीरी नौजवानों की पिटाई तक कर दी।।
सोशल मीडिया में बेहिसाब जहर उगला जा रहा है। स्टेडियमों, कल्बों से पाकिस्तानी खिलाड़ी की तस्वीरें हटा दी गई हैं। बॉलीवुड ने पाकिस्तानी कलाकारों और गायकों पर प्रतिबंध लगा दिया है। पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा तो हमले के अगले दिन ही छीन लिया गया था। सो दोनों देशों के बीच व्यापार भी बंद पड़ा है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पाकिस्तान की और जाने वाली तीन नदियों का पानी रोकने का ऐलान भी कर दिया है। इस बात पर भी जोरों की बहस चल रही है कि भारत को आगामी क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेसना चाहिए या नहीं। अब सवाल यह है कि क्या वाकई हमारी ये तीव्र प्रतिक्रियाएं वाजिब हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं आतंकी हमले में हम अपने एक भी जवान के शहीद होने को बदार्श्त नहीं कर सकते। किया भी नहीं जाना चाहिए। पुलवामा में तो एक साथ पचास जवान शहीद हुए। वैसे इस ओर जनता और सरकार का ध्यान गया या नहीं। लेकिन गृह मंत्रालय के आंकड़ो के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं 2014 ले 2017 तक लगातार बढ़ी है। 2013 में जहां 170 आतंकी घटनाएं दर्ज हुई 2017 में वह संख्या बढ़कर दुगुनी से ज्यादा 342 हो गई। इस दौरान मारे जाने वाले सुरक्षा बलों के जवानों की संख्या 53 से बढ़कर 80 मारे जाने वाले सिविलियनों की संख्या 15 से बढ़कर 40 और मारे जाने आतंकियों की संख्या 67 से बढ़कर 312 हो गई। निसंदेह मारे जाने वाले आतंकियों की संख्या बढ़ी है। लेकिन आतंकी घटनाएं और मारे जाने वाले सिविलियनों के साथ शहीदों की संख्या भी बढ़ी है।।
अगर गौर किया जाए। तो 2013 के बाद सबसे बड़ा बदलाव इस रूप में आया कि केन्द्र में सत्ता बदलाव आया। इस बदलाव के साथ ही जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार के बर्ताव में भी बदलाव आया। इस बदलाव को बह साफ-साफ दो स्थितियों में विभाजित कर सकते है। पहली 2013 तक की स्थिति। जब आतंकी घटनाएं भी कम होती थी। कम सिविलियन मारे जाते थे। सैनिक भी कम शहीद होते थे और आतंकी भी कम मारे जाते थे और मौजूदा स्थिति, जिसमें कि हर आंकड़ा दुगुने से ज्यादा बढ़ गया है। भारत एक शान्ति प्रिय राष्ट्र रहा है। जिसने हमेशा अपनी ऊर्जा उन्नति के पथ पर लगाई और यही उसकी तरक्की की वजह भी बना। हमारी तुलना में पाकिस्तान हमेशा हिंसा और आतंक से ग्रसित रहा है।।
सुंदर चंद ठाकुर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)