न्यूजीलैंड की दो मस्जिदों पर हमला हुआ और 50 लोग मारे गए। ये मारे जानेवाले कौन थे? ये मुसलमान थे। वे नमाज पढ़ने गए थे, मस्जिदों में ! इन्हें मारने वाला कौन था ? एक आस्ट्रेलिया नागरिक ! वह ईसाई था। तो आपने क्या नतीजा निकाला? यही न कि आतंकवाद सिर्फ इस्लाम की बपौती नहीं है। वह हत्यारा ईसाई है याने ईसाइयत को भी अब आप आतंकवादी घोषित कर सकते हैं।
कई आतंकवादी, जो कि ईसाई हैं, उन्होंने फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका में भी सैकड़ों निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। तो क्या हम इसे अब ईसाई आतंकवाद कहें या और अधिक ठीक-ठीक कहना चाहें तो क्या हम इसे गौरांग आतंकवाद कहें। इस तरह के आतंकवादी अपने आपको ऊंची जाति का मानते हैं और एशियाई-अफ्रीकी लोगों को नीच या घटिया मानते हैं।
सभ्यताओं के संघर्ष में उन्हें असभ्य मानते हैं। जिस गोरे आतंकवादी ने न्यूजीलैंड की मस्जिदों में मुसलमानों को मारा है, उसने यही कहा है कि इन घटिया लोगों ने आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की जमीन पर कब्जा क्यों कर लिया है। उस मूर्ख को क्या पता नहीं कि वह खुद आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों का वंशज नहीं है। उसके पुरखे भी किसी पश्चिमी देश से आकर वहां बसे होंगे। वास्तव में आतंकवाद को न तो किसी धर्म से जोड़ा जा सकता है, न राष्ट्र से, न रंग से और न ही सिद्धांत से। यह कुछ सिरफिरे मूर्खों का धर्म है, जो निहत्थों का खून बहाकर अपनी कायरतापूर्ण बहादुरी का प्रदर्शन करते हैं।
इस प्रदर्शन में वे मजहब, रंग, जाति, राष्ट्र, सिद्धांत आदि का सहारा लेते हैं। वरना न्यूजीलैंड जैसे शांत और सुव्यवस्थित देश में ऐसी खूंरेजी का कोई कारण नहीं है। 50 लाख लोगों के इस देश में मुश्किल से 45 हजार मुसलमान रहते हैं। उनमें से 15 हजार भारतीय मुसलमान हैं।
इस हमले में हमारे पड़ौसी देशों के मुसलमान ज्यादा मारे गए हैं। हमारे भी लगभग दर्जन भर नागरिक मारे गए। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन हत्याओं पर गहरा दुख जाहिर किया है और इस हमले की कड़ी निंदा की है, यह अच्छी बात है। इस्लाम के नाम पर भारत में आतंकवाद फैलानेवाले लोग इस घटना से सबक लें, यह भी जरुरी है।
डा. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं