नीतीश दे रहे हैं जनता को टीस

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जानते है बिहार खबरों में कब आता है? जब राज्य में चुनाव होते हैं, कोई बड़ी विपत्ति आती है, कोई बड़ा हादसा होता है या फिर राज्य में कोई बड़ी आपराधिक घटना घटती है। इन सबके अलावा पिछली बार किसी सकारात्मक बात के लिए बिहार की चर्चा कब हुई थी, बता सकते हैं? हमारी पीढ़ी के लोगों की याद में तो कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं जिसे याद किया जा सके या याद रखा जा सके। हां, हमारे पिताजी जब कॉलेज में पढ़ रहे थे, तब एक घटना हुई थी जिसकी उपज हैं आज बिहार पर राज कर रहे सियासतदां। जी हां, आप सही समझ रहे हैं। मैं 1974 के उस छात्र आंदोलन की बात कर रहा हूं जो जेपी की अगुवाई में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा आंदोलन बनकर उभरा और आखिर में ‘संपूर्ण क्रांति’ आंदोलन बनकर इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। पिछले तीन दशक से बिहार पर राज कर रहे लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी इसी आंदोलन का हिस्सा थे। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में लोगों को संबोधित करते हुए जेपी ने तब क्या कहा था, जानते हैं? लोक नायक ने उस समय कहा कि संपूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल हैं- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर संपूर्ण क्रांति होती है।

बिहार पर राज करने वाले इन नेताओं ने भी जेपी को तब सुना होगा लेकिन शायद उनकी बात को याद नहीं रख पाए। बिहार में राजनीतिक क्रांति तो हुई लेकिन बाकी क्रांतियां राज्य में हर साल आने वाली बाढ़ में बह गईं और इसी गेरुआ पानी में इन नेताओं ने अपनी शर्म धो दी है। लगभग 45 साल बाद आज बिहार कहां खड़ा है? ह्यूमेनडिवेलपमेंट इंडेक्स में शायद आखिरी पायदान पर या फिर अंतिम से थोड़ा ऊपर। किसी भी क्षेत्र की बात कर लीजिए और बताइए कि बिहार किस स्थान पर है। पिछले दिनों नीति आयोग ने स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी, बिहार इसमें भी सबसे आखिरी पायदान पर था। स्वास्थ्य-परिवार कल्याण मंत्रालय और विश्व बैंक के सहयोग से तैयार की गई इस रिपोर्ट में राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं में कितना सुधार हुआ, इसके हिसाब से तुलनात्मक रैंकिंग भी दी गई थी। यहां भी बिहार सबसे पीछे रहा लेकिन नीतीश कुमार को इसकी कोई चिंता नहीं थी। चिंता होती तो अक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से 160 से ज्यादा बच्चों की मौत नहीं हुई होती। नीतीश सरकार की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि वह पिछले 13 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर हैं, इसलिए सारा दोष भी उनपर आएगा। नीतीश कुमार यह नहीं कह सकते हैं कि उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिला।

बिहार बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में साल 2016 की टॉपर रूबी राय और 2017 के टॉपर गणेश कुमार को कौन भूल सकता है। बिहार में सभी स्तर की शिक्षा की स्थिति क्या है, इसके बारे में जानने के लिए इन दोनों से बेहतर उदाहरण आपको औरक्या मिलेगा। अमत्र्य सेन द्वारा स्थापित गैर सरकारी संस्था प्रतीचि (इंडिया) ट्रस्ट और पटना की ‘आद्री’ ने संयुक्त रूप से सर्वेक्षण कर पिछले साल एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में जो बातें सामने आई थीं, उनको देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि बिहार में शिक्षा की दिशा बिल्कुल भी ठीक नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर का घोर अभाव है। शिक्षकों की कमी होने के साथ ही मौजूदा शिक्षकों में योग्यता की भारी कमी है। शिक्षक अक्सर स्कूल से गायब रहते हैं और इन सबकी निगरानी करने वाले लोग निष्क्रिय हैं। इन सबके अलावा मौजूदा शिक्षा का स्तर बेहद खराब है। अब ऐसे में बिहार के स्कूलों से रूबी राय और गणेश के ही निकलने की उम्मीद की जा सकती है। अपने गौरवशाली शैक्षणिक अतीत पर गर्व करने वाला राज्य बिहार आज काफी पिछड़ चुका है। इसका मूल कारण नीतीश सरकार की नीति ही है, कोई और नहीं। अपने पहले और दूसरे कार्यकाल के दौरान नीतीश कुमार बिहार की कानून व्यवस्था को काफी हद तक काबू करने में कामयाब रहे थे।

लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि तीसरे, चौथे और पांचवें कार्यकाल में कानून व्यवस्था पर नीतीश की पकड़ कमजोर होती गई या उन्होंने खुद को मजबूत करने के लिए कमजोर होने दी। राज्य में लगातार हो रही व्यापारियों की हत्या, शराबबंदी के बावजूद शराब की तस्करी और महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर नीतीश कुमार काफी कमजोर नजर आते हैं। कानून व्यवस्था का आलम यह है कि बिहार में कुओं, नालियों, खंडहरों, पुराने घरों और बालू के ढेरों से एके -47 जैसे खतरनाक हथियार आसानी से मिल जाते हैं। जहानाबाद के बाद कैमूर में युवती से छेड़छाड़ का विडियो सामने आया था। इन दोनों घटनाओं ने बिहार पुलिस और नीतीश कुमार के सुशासन के दावे की कलई खोल कर रख दी। घटना की जांच के लिए बनाई गई पुलिस और दो विशेष जांच टीमों (एसआईटी) को अपराधियों ने काफी परेशान किया था। इसके बाद मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस सामने आने के बाद राज्य सरकार और पुलिस विभाग ने बिहार की किरकिरी पूरी दुनिया में करवाई थी लेकिन नीतीश कुमार की बेशर्मी देखिए, अंत तक उनकी सरकार आरोपियों को बचाने में लगी रही।

भला हो सीबीआई का जिसने वक्त रहते कार्रवाई की और कुछ आरोपियों को जेल पहुंचाया। मामले में सीबीआई ने 73 पेज की चार्जशीट दाखिल की थी जिसमें बच्चियों के साथ हुई वीभत्सता का खुलासा हुआ। बालिका गृह में रहने वाली 42 बच्चियों को ड्रग्स देकर और उन्हें कुर्सी से बांधकर दुष्कर्म किया जाता था। उन्हें अश्लील गानों पर डांस करने को मजबूर भी किया जाता था। बालिका गृह के मालिक और मामले के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर के अलावा उसके ‘गेस्ट’ रोजाना बच्चियों के साथ रेप और यौन उत्पीडऩ करते थे। ये गेस्ट कौन थे, आज तक इस बात क खुलासा नहीं हो पाया है। सच कहा जाए तो उनके नाम दबा दिए गए हैं। बिहार और बाढ़ की समस्या का साथ ऐसा है, मानो भगवान ने दोनों को साथ ही रहने का आशीर्वाद दिया हो। साल 2017 में आई बाढ़ के कारण 514 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी और 1 करोड़ 71 लाख लोग प्रभावित हुए थे। इस बाढ़ में 8.5 लाख लोग बेघर हो गए थे। आज 2019 में एक बार फिर बिहार बाढ़ के कारण परेशान है। आलम यह है कि राज्य के उप मुख्यमंत्री तक को रेस्क्यू करने की नौबत आन पड़ी है।

रवि सिंह सेंगर
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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