निशाने पर चुनाव आयोग

0
152

पश्चिम बंगाल में मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा के बाद चुनाव आयोग द्वारा प्रचार में एक दिन की कटौती करने की घोषणा से पूरा विपक्ष बौखला गया है। आयोग की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। उसे मोदी सरकार के दबाव में निर्णय लेने का दोषी बताया जा रहा है। राहुल गांधी, मायावती और ममता बनर्जी की तरफ से सवाल है कि केन्द्र सरकार के इशारे पर क्षेत्रीय दलों की जहां सरकारें हैं, वहां भेदभावपूर्ण फैसले लिए जा रहे हैं। खास तौर पर पश्चिम बंगाल में एडीजी सीआईडी रहे राजीव कुमार को केन्द्र में भेजा जाना ममता बनर्जी को काफी अखर रहा है। ये वही राजीव कुमार है, जो बीते महीनों में ममता बनर्जी के धरने में साथ बैठे थे। हालांकि उन्हें कर्मठ और ईमानदार अधिकारी के तौर पर देखा जाता रहा है। वामपंथी दौर में वे तत्कालीन मुगयमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के बहुत निकट हुआ करते थे।

बाद में ममता से भी उनकी नजदीकी बढ़ गई। चिटफंड घोटालों की जांच के लिए बनी विशेष टीम के अगुवा भी रहे हैं राजीव, उनकी उस भूमिका की भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई जांच कर रही है। इस सबके बीच चुनाव के आखिरी चरण में सियासी सूरमाओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आरोप-प्रत्यारोप और तीखा हो गया है। त्रिशंकु लोक सभा की उम्मीद लिए विपक्ष सोनिया गांधी की पहल पर एक बार फिर नतीजों से पहले एक जुट ब्लॉक तैयार कर रहे हैं जिसमें यूपीए के घटक स्टालिन से भी उनकी चर्चा हुई है। इसी तरह कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमार स्वामी का भी मन टटोला जा चुका है। वैसे उनकी कोशिश को मायावती और ममता जैसे नेताओं की तरफ से केन्द्र की संभावित तस्वीर में उचित हिस्सेदारी के लिए समर्थन दिया जा चुका है।

अब तो कांग्रेस भी मान बैठी है कि उसकी टैली 2019 में सुधर तो सकती है पर पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनाने की संभावना दूर.दूर तक नजर नहीं आती। इसीलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने भी कहा है कि केन्द्र में मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए पार्टी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी नहीं करेगी। इससे साफ है यदि एक बाद फिर नतीजों से पहले विपक्ष एक जुटता के लिए हाथ-पांव मार रहा है। महत्वाकांक्षाओं को कब तक दबाया जा सकेगा यह देखने वाली बात होगी। पर यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की सक्रियता और मायावती और ममता बनर्जी की आक्रामकता का सीधा ध्येय हर हाल में मोदी कोरोकना है। शायद इसीलिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी चौकन्ना है। वैसे मोदी को लगता है कि विपक्षी एकता की क वायद आकार लेने से पहले महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ जाएगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here