अपनी मूल लोकतंत्रिक संस्कृति को रौंदकर किसी भी अपसंस्कृति को बड़ा नहीं किया जा सकता। सन्नहवीं लोकसभा के इस महासंग्राम में बहुत सारा अजूबा एवं अलोकतांत्रिक घटित हो रहा है, हर क्षण जहर उगला जा रहा है। जो राजनीतिक मूल्यों को नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को ही समाप्त कर रहा हैं।
इस चुनावों में इस तरह के राजनैतिक स्वार्थों ने हमारे लोकतांत्रिक इतिहास एवं संस्कृति को एक विपरीत दिशा में मोड़ दिया है और आम जनता ही नहीं, बल्कि प्रबुद्ध वर्ग भी दिशाहीन मोड़ देख रहा है। अपनी मूल लोकतांत्रिक को रौंदकर किसी भी अपसंस्कृति को बड़ा नहीं किया जा सकता। सन्नहवीं लोकसभा के इस महासंग्राम में बहुत सारा अजूबा एवं अलोकतांत्रिक घटित हो रहा है, हर क्षण जहर उगला जा रहा है। जो राजनीतिक मूल्यों को नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को ही समाप्त कर रहा हैं। नैतिकता, सच्चाई लोकतांत्रिक मूल्यों से बेपरवाह होकर जिस तरह की राजनीति हो रही है उससे कैसे आदर्श भारत का निर्माण होगा। कैसे राष्ट्रीय मूल्यों को बल मिलेगा। कैसे लोकतंत्र मजबूत बनेगा। ये ऐसे सवाल है, जिन पर सार्थक बहस जरूरी है। आखिर कब तक झूठे, भ्रामक एवं बेबुनियाद बयानों की आधार बनाकर चुनाव जीतेने प्रयत्न होते रहेंगे। राहुल गांधी का चौकीदार चोर है। बयान इस चुनाव की गरिमा एवं गौरव पर एक बदनुमा दाग की तरह है। क्योंकि ऐसे बयान और उससे जुड़े तथ्य न केवल आधारहीन है, बल्कि शर्मनाक है।
राहुल गांधी अब तो जिम्मेदार बने, अपनी नासमझी एवं अपरिपक्कता को उतार फेंके। सच-झूठ की परवान न करने के क्या नतीजे होते है, इसका ज्वलंत उदाहरण है राहुल गांधी का चौकीदार चोर है बयान, जिसके लिए उन्हें खेद जताना पड़ा है। उन्हें सार्वजनिक तौर पर इसलिए खेद व्यक्त करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हलावा देते हुए यह कह दिया था कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी मान लिया कि चौकीदार चोर है। जबकि सर्वोच्च-न्यायालय ने ऐसा कोई निर्णय नहीं दिया, सिर्फ उसने राफेल-सौदे पर बहस को मंजूरी दी थी। चूंकि उन्हें अदालत की अवमानना का सामना करना पड़ता इसलिए उन्होंने बिना किसी देरी के खेद व्यक्त करके खुद को बचाया, लेकिन इससे भरपाई आसानी से नहीं होने वाली है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। इस गैर जिम्मेदाराना हरकत से होने वाले चुकसान को देखते हुए राहुल ने अपने पक्ष में यह सफाई दी की ये चुनावी जल्दबाजी और जोश में वैसा बोल गए।
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय अभी तक तो भाजपा सासंद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर विचार कर रहा था लेकिन उसने अब राहुल को अदालत की अवमानना का औपचारिक नोटिस भी जारी कर दिया है। राफेल-सौदे पर सर्वोच्च न्यायालय राहुल के वकील अभिषेक सिंघवी के तर्कों से प्रभावित नहीं हुई और उसने 30 अप्रैल को दुबारा सुनवाई की तारीख तय कर दी है। लेकिन यहां प्रश्न यह है कि आखिर देश के शीर्ष राजनीतिक दलों के सर्वेसर्वा ही अदालत की अवमानना करेंगे तो आमजनता को क्या प्रेरणा देंगे। राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्कता एवं हठधर्मिता न केवल अदालत को अवमाना करती रही है, बल्कि देश की जनता की भावनाओं से भी उन्होनें खिलवाड़ किया है। अपने तथाकथित इस बयान पर अदालत को दिये गये लिखित खेद प्रकट की कार्रवाही के घंटे भर बाद मे ही चौकीदार चोर है का नारा रायबरेली में भी लगवाया उनकी कथनी और करनी में जितना अन्तर है, इससे जाहिर होता है।
ललित गर्ग
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।