1984 को देश की राजनीति का उथल-पुथल का वर्ष माना जाता है। विश्व बैंक से इस्तीफा देकर किसान राजनीति में शामिल हुए शरद जोशी महाराष्ट्र किसानों के बड़े नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे। चौधरी चरण सिंह के साथ मैं और पूर्व सांसद अजय सिंह, शरद पवार के निमंत्रण पर अहमद नगर में आयोजित किसान रैली में शामिल हुए। इस रैली का पूरा प्रबंधन शरद पवार द्वारा किया जा रहा था। रैली में कई लाख की भीड़ एकत्र हुई थी। सभी ने आह्वान किया कि आगामी चुनाव में कांग्रेस पार्टी के खिलाफ मतदान किया जाए। हमारे मुंबई पहुंचते तक देश की राजनीति अपने उबाल पर आ चुकी थी। तेलुगु फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता और मुख्यमंत्री एनटी रामाराव अपने दिल के ऑपरेशन के लिए अमेरिका में थे, वहीं उन्हें तख्ता पलट होने का संदेश मिला। उन्हीं के मंत्रिमंडल के एक सहयोगी एन. भास्कर राव ने अपने को टीडीपी का असली नेता बताते हुए सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। हिमाचल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रामलाल उस समय आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे।
हिमाचल में भ्रष्टाचार में कई मामले में उनकी संलिप्तता साबित हो चुकी थी। उन्होंने एन. भास्कर राव को बगैर संख्या बल की परीक्षा किए ही आनन-फानन शपथ दिला दी। इस घटना क्रम ने समूचे विपक्ष को एकजुट कर दिया। कांग्रेस पार्टी के लिए आंध्र प्रदेश सबसे मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। 1977 के आम चुनाव में जब श्रीमती गांधी स्वयं चुनाव हार गई थीं, उस समय भी कांग्रेस पार्टी को आंध्र प्रदेश में 42 में से 41 सीटें मिली थीं और बाद में वह एक उपचुनाव में स्वयं भी वहीं की मेडक लोकसभा सीट से निर्वाचित हुई थीं। इंदिरा गांधी के शासन काल में राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अदला-बदली का दौर निरंतर बना रहता था। ऐसे ही एक अपमानजनक घटनाक्रम में वहां के मुख्यमंत्री टी. अन्जैया को हटाया गया जिससे तेलुगु स्वाभिमान हिल गया। उसी दौर में एनटी रामाराव ने राजनीति में अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। तेलुगु स्वाभिमान के नाम पर उन्होंने तेलुगु देशम पार्टी की स्थापना की थी। मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद एनटी रामाराव ने इस अस्मिता को एक बार फिर से जगाया।
एक रथ में सवार होकर समूचे प्रदेश में जनजागरण के लिए निकल पड़े। इसी बीच विपक्षी एकता के प्रयास भी तेज हो रहे थे। लोकसभा चुनाव में 6 महीने ही रह गए थे। एनटी रामाराव स्वयं भी राष्ट्रीय राजनीति में आने के संकेत देने लगे जब उन्होंने दिल्ली आकर सभी शीर्ष नेताओं से मिलना-जुलना शुरू कर दिया। अपने हैदराबाद स्थित बंजारा हिल्स आवास में हिंदी के दो अध्यापकों की नियुक्ति भी की। उन दिनों एक आम चर्चा थी कि किसी ज्योतिषी के कहने पर प्रधानमंत्री बनने की अभिलाषा से वह रात्रि में नारी वस्त्र भी धारण करने लगे थे। चौधरी चरण सिंह ने दिल्ली लौटकर विपक्षी एकता के प्रयास तेज कर दिए। पार्टी कार्यालय में बड़े विपक्षी नेताओं के जमावड़े लगने शुरू हो गए जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख, चंद्रशेखर, ईएमएस नंबूदिरीपाद, सी राजशेखर राव, शरद पवार, फारुख अदुल्ला और मेनका गांधी समेत कई नेता उपस्थित रहते थे। इन्हीं नेताओं का एक प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति जैल सिंह से मुलाकात की और रामलाल की भूमिका की शिकायत की कि किस प्रकार एक अल्पमत की सरकार को शपथ दिलाकर उन्होंने संविधान की अवमानना की है।
राष्ट्रपति जैल सिंह ने एनटी रामाराव के समर्थन में खड़े विधायकों से मिलने का समय तय कर दिया। उस समय आज की तरह अतिरिक्त जहाजों की सुविधा उपलध नहीं थी। लिहाजा विधायकों का समूह ट्रेन से हैदराबाद से दिल्ली के लिए रवाना हुआ। इस समूचे घटनाक्रम से दिल्ली की हुकूमत भी विचलित हुई। ट्रेन की गति 20 किमी प्रति घंटा कर दी गई और गाड़ी 10 घंटे देर से दिल्ली पहुंची। ऐसे में राष्ट्रपति से मिलने का समय भी समाप्त हो गया। विपक्षी दलों तथा मीडिया के दबाव में अगले दिन राष्ट्रपति को उनसे मिलना पड़ा और रामाराव 150 से अधिक विधायकों की परेड कराने में सफल रहे। रामलाल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। शंकर दयाल शर्मा नए राज्यपाल बने और उनकी देखरेख में रामाराव विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर पुन: मुख्यमंत्री बने।
केसी त्यागी
(लेखक जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता हैं, ये उनके निजी विचार हैं)