धंधे के लिए दरबारगिरी जरूरी

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दहला देने वाली स्टोरी! और आज के भारत का यर्थाथ! यदि आप इंसान हैं, भारत की ऊर्जा को बलात्कारों से बूझने के खतरे की तनिक भी समझ है तो वीजी सिद्धार्थ के जीवन से सबक लीजिए। सबक सभी के लिए है। उन नरेंद्र मोदी के लिए भी है, जिन्होने पांच साल में भारत की उद्यमिता को सिस्टम के डाकुओं, बलात्कारियों का बंधक बना दिया है। सबक नए-पुराने और सभी उन नौजवान उद्यमियों के लिए है, जो भारत में पैसे का सपना देखते हैं। इन सबको भारत छोड़ना चाहिए। विदेश जा कर उद्यम करें और वहां से पैसा भेज भारत की सेवा करें। भारत छोड़ें, विदेश जाएं। क्योंकि भारत दुनिया का वह देश है, जिसमें जो अच्छे है, पुरुषार्थी है उन्हीं पर सिस्टम की नजर लगती है। उन्हें सिस्टम बरबाद करता है। सो, हर व्यक्ति अपने बच्चों को विदेश में बसने, वहां पैसा कमा कर उसे भारत भेज देशभक्ति की नसीहत दे।

हां, 72 साल के इतिहास में बार-बार प्रमाणित है कि राज नेहरू का हो या नरेंद्र मोदी का, इनकी सत्ता व इनके कारिंदे वैसे ही व्यवहार करेंगे जैसे अकबर और औरंगजेब के राज में था। तब भी दिल्ली का तख्त भारत की जनता के प्रति असंवेदनशील था, लोगों को मूर्ख बनाता था और आजाद भारत में भी दिल्ली इसी मनोविज्ञान में है कि जनता तो चोर है। वह लुटने के लिए है! उससे नजराना लेना है, दरबारगिरी करवानी है। उससे कंपलायंस करवाना है। सरकार (जवाब) मांगेगी, नागरिक (जवाब) देगा। अपनी मर्जी, अपना कानून जो जब चाहे तब किसी की भी जमीन, किसी के भी शेयर जप्त कर ले, राष्ट्रीयकरण या शेय़र से जप्ती। पैसे वाले को तो सताना ही है! उसे चूस कर दिवालिया बनाना है फिर भले कोई नदी में कूद कर आत्महत्या करे या विदेश भागे!

हां, पंडित नेहरू के वक्त राष्ट्रीयकरण से टाटा जैसों की एयरलाइंस ले कर सरकार ने जप्ती का सिलसिला शुरू किया तो आज नरेंद्र मोदी के राज में एनसीएलटी में देश भर की तमाम कंपनियां दिवालिया हो कर बिकने की कतार में हैं। इन सबमें सरकार, सरकारी बाबू और इनकम टैक्स, जज सब अपनी-अपनी लूट मचाए हुए हैं। पिछले पांच सालों में कारोबार और कंपनियां जितनी दिवालिया हुई हैं या उद्योगपतियों के जैसे बाजे बजे हैं, वह भारत के पूरे इतिहास की वह खौफनाक दास्तां है, जिसका इतिहास जब लिखा जाएगा तो दुनिया जानेगी कि भारत की ऊर्जा, उद्यमिता के साथ बलात्कार का कोई सचमुच कलयुग था तो वह मोदी-शाह का राज था!

पर न मोदी-शाह को भान है और न भेड़ समाज को भान है। मोदी-शाह जीवन का आनंद ले रहे हैं। इनके अपने दरबारी उद्योगपति अदानी-अंबानी इनके आगे खुशनुमा तस्वीर बनाए हुए हैं। ये सब सावन के झूले झूल रहे हैं। सो, कैफे कॉफी डे (सीसीडी) के मालिक वीजी सिद्धार्थ ने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली तो इनकी भावना विचलित नहीं होगी। मर गया तो मर गया। राजा को भला इन बातों की क्या चिंता करनी। प्रजा खुश है न!

बहुत शर्मनाक है। मेरा वीजी सिद्धार्थ से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन सिद्धार्थ की आत्महत्या की खबर से मैं वैसे ही विचलित हुआ जैसे 1995 में तिहाड़ जेल में ब्रिटेनिया उद्योग के मालिक राजन पिल्लई की मौत से हुआ था। मैं तब इतना विचलित हुआ कि उन दिनों प्रधानमंत्री दफ्तर के राज्य मंत्री भुवनेश चतुर्वेदी से मैंने गपशप करते हुए बहुत कटु शब्दों में कहा कि आपके नरसिंह राव को शर्म नहीं आई! नाक के नीचे एक उद्योगपति का जेल में ऐसे मरना! मैंने तब भी बहुत तल्खी में गपशप में राजन पिल्लई के हवाले अपने तंत्र का रोना रोया था। जान लें भारत महान की इस हकीकत को कि राजन पिल्लई के खिलाफ भारत में न कोई एफआईआर थी, न जांच, न मुकदमा था लेकिन सीबीआई ने उठा कर उसे जून की गर्मी में तिहाड़ जेल की ऐसी कोठरी में डाला, जिसमें न पंखा था न अमीरी में जीने वाले के लिए साफ पानी। उसकी पत्नी नीना पिल्लई के पास कोई गया कि छह लाख रुपए की दो मारूति (तब इतनी की ही आती थी) भेंट करा दो तो पानी-पंखा मिल जाएगा तब उसकी पत्नी ने भारत अज्ञानता में अंग्रेजी में झाड़ते हुए कहां क्या ऩॉनसेंस है। ऐसे पैसे कैसे? और वह बेचारा अमीर-अरबपति राजन गर्मी, जेल की बदहाली से बीमार हो हॉस्पीटल पहुंचा और बेमौत मर गया।

कैफे कॉफी डे का मालिक वीजी सिद्धार्थ राष्ट्र-गौरव था। इसलिए क्योंकि अपनी याददाश्त में वह पहला नौजवान उद्यमी था, जिसके स्टार्टअप ने भारत का पहला ऐसा ब्रांड (कैफे कॉफी डे याकि सीसीडी) बनाया, जिसकी वाहवाही, क्वालिटी के आगे अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी स्टॉरबक्स सालों तक भारत आने से हिचकती रही। इस बात को समझें कि कैफे कॉफी डे की काट के लिए स्ट़ॉरबक्स ने टाटा ग्रुप से एलायंस करके भारत में एंट्री ली। उन दिनो मतलब 1995 के आसपास दिल्ली या शिमला के मॉल में कैफे कॉफी डे में बैठ कर कॉफी पीना मन में यह भाव बनाता था कि वाह देखो एक भारतीय का क्या क्लिक आइडिया और ब्रांड! और वीजी सिद्धार्थ ने अपने इस ब्रांड को न केवल पूरे भारत में फैलाया, बल्कि विदेश में भी पहुंचाया। अखबारी रपटों के अनुसार सीसीडी के आज दुनिया भर में फैले कोई 17 सौ से ज्यादा कॉफी शॉप है। आस्ट्रिया, मलेशिय़ा, मिस्र, चेक गणराज्य जैसों देशों में भी भारत का कैफे कॉफी डे है!

क्या ऐसे सिद्धार्थ को भारत रत्न मानना चाहिए या भारत का चोर? मगर भारत के दिल्ली दरबार में अदानी, अंबानी की तरह जो मुजरा नहीं करता है और अपनी स्वतंत्रता से जो बिजनेस के प्लान बनाता है वह दिल्ली के तंत्र द्वारा बलात्कार का शिकार होगा ही! यही मुगलों के वक्त भारत का यर्थाथ था तो आजाद भारत का भी है। इसे धीरूभाई अंबानी के उदाहरण से और समझें। धीरूभाई के भारत दोहन में वीपी सिंह का राज अकेली वह छोटी अवधि थी जब दिल्ली दरबार में उनकी एंट्री नहीं थी। वीपी सिंह, विनोद पांडे, भूरेलाल दिल्ली में अंबानी के दलालों को गांठते नहीं थे। तभी धीरूभाई उस पूरे वक्त चिंताओं में छटपटाते रहे और वह छटपटाहट लकवे के रूप में फिर दिखी!

सो, भारत में पैसे वाले की उत्तरोतर श्रीवृद्धि सिर्फ और सिर्फ तभी है जब दिल्ली दरबार की कृपा रहे। 72 साल का यह सत्य बिड़लाजी पर भी लागू था तो आज अदानी के लिए भी है। इंदिरा गांधी-प्रणब ने धीरूभाई को बनाया तो नरेंद्र मोदी के खाते में अदानी हैं, इसे आज भारत का हर उद्योगपति, हर जानकार दो टूक शब्दों में बताता है तो क्या इसे भारत सत्य न माना जाए?

दिल्ली की मेहरबानी है तो इनकम टैक्स, रेवेन्यू विभाग, सीबीआई, ईडी और इनके तमाम कानून अंबानी या अदानी की संपत्ति या शेयर (जैसे सिद्धार्थ के मामले में) जप्त नहीं करेंगे। इनकम टैक्स विभाग का जांच डायरेक्टर देखेगा-सोचेगा ही नहीं कि देश में कोई अंबानी या अदानी नाम का कारोबारी भी है!

यहीं है भारत का सत्व-तत्व। तभी भारत के उन नौजवान उद्यमियों, कारोबारियों को वीजी सिद्धार्थ की कहानी से सबक लेते हुए गांठ बांधनी चाहिए कि या तो विदेश में जा कर धंधा करें या धीरूभाई के चांदी के जूतों को दिल्ली दरबार में पहनाने के फार्मूले की पहले ट्रेनिंग लें।

ऐसा नहीं कि सिद्धार्थ ने 1993 से ले कर 2019 के 26 सालों में ट्रेनिंग नहीं ली होगी। इतने साल कोई धंधा करे और सिस्टम उसे करप्ट न बना दे यह भला भारत में कैसे संभव है? भारत में ज्यों-ज्यों आदमी की महत्वकांक्षा बढ़ती है त्यों-त्यों भ्रष्टाचार के डीएनए खिलते जाते हैं और दरबार-तंत्र- पैसे की वेश्यावृति बेखौफ होती जाती है। मतलब स्वतंत्र-क्रिएटिव उद्यमी की दूसरी गलती होगी यदि वह तंत्र के वरदान के बिना उड़ना चाहे। वहीं सिद्धार्थ ने किया। फिर सिद्धार्थ की तीसरी गलती थी जो नरेंद्र मोदी के वक्त में तब उड़ना चाहा जब उड़ने की हवा ही नहीं है। इस पर कल!

हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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