थोड़ी स्वायत्तता देना भी जरूरी

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नई शिक्षा नीति (एनईपी) 10 साल का एजेंडा है। इस नीति को इस तरह ड्राफ्ट किया गया है कि आने वाले 5 सालों में इसके अधिकांश लक्ष्य हासिल किए जा सकें। तीन से चार सालों में 60 फीसदी काम हो जाएगा। शोध संस्थान बनाने, स्कूल स्ट्रक्चर बदलने जैसे लक्ष्य जल्दी हासिल किए जा सकते हैं। बाकी बचे दूरगामी लक्ष्य जैसे नए संस्थान बनाना, तकनीक अपग्रेड करना, इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाना, शिक्षकों को प्रशिक्षित करने में 10 साल का समय लग सकता है। 2030 तक ये सारे लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह इसके लिए कितने संसाधन झोंकती है।

नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क पर भी लगातार काम हो रहा है। काम पूरा होने के बाद इसकी रुपरेखा राज्य सरकारों को सौंप दी जाएगी। स्कूल करिकुलम फ्रेमवर्क का काम एक साल में पूरा हो जाएगा, उसके बाद किताबों का काम शुरू होगा। यह सारा तीन साल में पूरा हो सकता है। अगर शिक्षक नए करिकुलम के लिए तैयार हैं, तो उसे भी जल्दी ही शुरू किया जा सकता है। यह संबंधित राज्यों पर निर्भर करता है कि करिकुलम फ्रेमवर्क के बाद वह इसे किस तरह और कितना जल्दी अपने राज्य में लागू करते हैं। रही बात मातृभाषा पर चल रही बहस की, तो इसके पीछे उद्देश्य सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाना है।

इस बात को सभी स्वीकारते हैं कि मातृभाषा में सीखना आसान होता है। विज्ञान-तकनीक की कठिन अवधारणाएं बच्चों को मातृभाषा में समझना आसान होगा। मिडिल स्कूल तक पढ़ाई की भाषा में मातृभाषा चुनने की अनुशंसा की गई है। शिक्षा नीति में तीन भाषाओं की बात की गई है। यह राज्य और संबंधित स्कूल पर निर्भर करता है कि वह कौन-सी भाषा का विकल्प चुनते हैं। अगर अभिभावक चाहते हैं कि बच्चा अंग्रेजी माध्यम में पढ़े, तो वह ऐसा कर सकते हैं, पॉलिसी उन्हें हिंदी या कोई अन्य भाषा के लिए बाध्य नहीं करती।

शिक्षा नीति का उद्देश्य रोज़गारोन्मुखी शिक्षा है। बच्चे स्कूल में हुनर भी सीखें, इसके लिए वोकेशनल ट्रेनिंग, कोडिंग, इंटर्नशिप जैसी व्यवस्थाएं की गई हैं। स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्चर इसमें एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन स्कूल बच्चों को स्किल सिखाएंगे। प्रायोगिक परीक्षण और प्रशिक्षण बच्चे संबंधित संस्था में जाकर ले सकेंगे। इसके लिए स्थानीय स्तर पर कई सारे टाइअप्स करने होंगे। यह स्कूल का भी अप्रोच होगा कि वह इसे कैसे आगे बढ़ाएंगे। बजट का सवाल रह-रहकर सामने आता है कि क्या सरकारी स्कूल के लिए फंड पर्याप्त हैं? हमें अपनी जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करना होगा, यह खर्च नहीं बल्कि निवेश होगा। इसके लिए सरकार से मांग की है।

विश्वविद्यालय स्तर पर शोध पर भी यदा-कदा प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं कि ये सिर्फ कागजी होते हैं। शोध न सिर्फ उद्योगों को लाभ पहुंचाएं, बल्कि आमजन और समाज के लिए फायदेमंद हों, इसके लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाने की अनुशंसा की गई है। यह फाउंडेशन विश्वविद्यालयों में शोध के लिए जरूरी संसाधन और क्षमताओं को बढ़ाएगा। नई शिक्षा नीति में कॉलेज की स्वायत्तता की बात की गई है। इसका उद्देश्य शिक्षा संस्कृति में बदलाव करना है।

हमें शिक्षा का प्रबंधन करने के लिए नए तरीके खोजने होंगे। सही विकास के लिए थोड़ी स्वायत्तता देना भी जरूरी है। इसका मतलब यह नहीं कि कोई नियम नहीं होंगे। कॉलेज में पर्याप्त शिक्षक है कि नहीं, परिणाम क्या है, सुरक्षा है कि नहीं? इस सबकी पब्लिक ऑडिटिंग होगी और पब्लिक डोमेन में इसकी जानकारी भी साझा की जाएगी।

डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन
(लेखक एनईपी का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष और पूर्व चेयरमैन, इसरो हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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