तालिबान के डर से शेल्टर होम्स बंद

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अफगान महिलाओं को देश में महिलाओं की सुरक्षा का नेटवर्क बनाने में वर्षों लग गए। अफगानिस्तान के 14 प्रदेशों में महिलाओं के लिए 32 सुरक्षित घर, पारिवारिक सलाह सेंटर और बच्चों के आश्रय स्थल हैं।

ऐसी सेवाओं की बहुत जरूरत के कारण उन्हें सघन अभियान के बूते चलाया गया। लेकिन, अगस्त के पहले सप्ताह में तालिबानी लड़ाकों ने जब शहरों की ओर बढ़ना शुरू किया तो इनके दरवाजे बंद होने लगे थे। निराश्रित गृहों के अधिकतर डायरेक्टरों ने इनके दस्तावेज रख लिए या जला दिए। कुछ सामान समेटा और महिलाओं के साथ भाग गए।

गिने-चुने आश्रय स्थलों के डायरेक्टर रुक गए हैं। वे खामोश हैं। उन्हें भय है कि अगर कुछ कहा तो उनके यहां रह रही स्त्रियों को नुकसान हो सकता है। शेल्टर होम में नए लोगों को जगह नहीं दी जा रही है। वुमन फॉर अफगान वुमन संस्था की सहसंस्थापक सुनीता विश्वनाथ कहती हैं, हमारे शेल्टर होम खत्म हो गए हैं।

हम महिलाओं के लिए जो कुछ करते थे, अब वैसा नहीं कर पाएंगे। कुछ महिला गृहों के स्टाफ ने जेल से छूटे रिश्तेदारों से भयभीत महिलाओं को अपने घर में शरण दी है।

आधे से ज्यादा अफगान महिलाओं पर अत्याचार

तालिबान की वापसी के पहले ही महिलाओं की सुरक्षा के मामले में अफगानिस्तान हर सूची में अंतिम स्थान पर है। सुरक्षित आश्रय स्थलों, काउंसलिंग और महिलाओं की हिफाजत के लिए जरूरी अदालतों के संदर्भ में वह सबसे ऊपर है। महिला मामलों के मंत्रालय की स्टडी के अनुसार आधे से अधिक अफगान महिलाएं शारीरिक प्रताड़ना झेलती हैं। 17 प्रतिशत को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा। लगभग 60 प्रतिशत की जबरन शादी कर दी गई।

दुल्हनों की खरीद-बिक्री

ताजा अध्ययनों के अनुसार खानदान के सम्मान की तथाकथित रक्षा के लिए हत्याएं (ऑनर किलिंग), दुल्हनों की खरीद, कर्ज चुकाने के लिए युवतियों की बिक्री की प्रथा-बाद अब भी कई ग्रामीण इलाकों में जारी है।

मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार के रूप में कार्य स्थलों और सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। महिलाओं पर अत्याचार के बहुत कम मामले पुलिस और अदालतों में दर्ज होते हैं।

1996 में अपने पिछले शासन में तालिबान ने महिलाओं के बाहर निकलने पर बंदिश लगा दी थी। 2015 में कुंदुज शहर पर जब तालिबान ने कुछ समय के लिए कब्जा किया तब वुमन फॉर अफगान वुमन के आश्रय स्थल चलाने वाले संचालक भाग गए थे। उन्हें तालिबानियों ने फोन पर धमकियां दी थीं। शेल्टर होम की महिला प्रमुख को धमकी दी गई कि उसे गांव के चौराहे पर फांसी पर लटका दिया जाएगा।

शेल्टर होम चलाने और उनमे रहने वाली महिलाओं के भागने का कारण केवल तालिबान की भय ही नहीं है। दरअसल, तालिबान लड़ाकों ने अभी हाल में कुछ सेंटरों पर पहुंचकर धमकियां दी हैं। सुनीता विश्वनाथ बताती हैं, कई बार बिल्डिंग में तोड़फोड़ की घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन, किसी को नुकसान पहुंचाने की कोई खबर नहीं है।

चिंता का सबसे मुख्य कारण तालिबानी कूच के साथ जेलों से बड़ी संख्या में रिहा कैदी हैं। उनमें ऐसे पुरुष शामिल हैं जिन्हें महिला सुरक्षा कानून के तहत सजा मिली है। महिला रिश्तेदारों की शिकायत पर इनके खिलाफ कार्रवाई की गई थी। ये लोग सुरक्षा गृहों के डायरेक्टर, सलाहकारों और वकीलों के भी खिलाफ हैं। महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में सबूत जुटाने वाली एक महिला ने बताया कि वह हर दिन रात में अपने सोने की जगह बदलती है।

उसे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। उन्होंने बताया, शहरों पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इनमें वे भी कैदी शामिल हैं जिन्हें मेरे काम की वजह से सजा मिली है। अब वे मुझे धमका रहे हैं।

अफगानिस्तान में महिला आश्रय स्थल लंबे समय से निशाने पर हैं। परिवार से अलग रहने वाली महिला को खराब नजर से देखा जाता है। कुछ लोग आश्रय स्थलों को वेश्यावृत्ति का रास्ता मानते हैं। हालांकि, पिछले 15 वर्षों में महिलाओं ने शेल्टर होम की शरण में जाना शुरू किया है।

अक्सर पिटाई से बुरी तरह घायल या हाथ-पैर की टूटी हडि्डयों के साथ महिलाएं स्वयंसेवी संगठनों के शेल्टर होम में जाती हैं। ऐसी सेवाओं का जारी रहना तालिबान पर निर्भर करता है। फिलहाल, तो तालिबान ने आश्वस्त किया है कि महिलाओं को काम करने की इजाजत रहेगी। उन्हें पुरुष रिश्तेदार के साथ यात्रा पर जाने की छूट होगी।

एलिसा रूबिन
(लेखिका पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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