ड्रोन घटा रहा मलेरिया का आतंक

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इन दिनों कहीं संघर्ष या युद्ध होता है तो हमें सबसे ज्यादा ड्रोन के बारे में सुनने को मिलता है। ड्रोन उन मशीनों को कहा जाता है, जिन्हें रिमोट कंट्रोल से ऑपरेट किया जाता है। इनमें ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और सेंसर लगे होते हैं। ये उड़ सकते हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि दुनिया में बिना पायलट के पहले विमान ने 1916 में उड़ान भरी थी। तब रेडियो सिग्नल की मदद से इसे गाइड किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध में जब तक जर्मनी ने अपने रॉकेट प्रोग्राम के लिए इस आइडिया को नहीं अपनाया, तब तक इस तकनीक में बहुत दिलचस्पी दिखी थी। कैमरायुक्त ड्रोन का पहला प्रयोग साठ के दशक के मध्य में वियतनाम युद्ध में हुआ था।

आज ड्रोन का प्रयोग डेटा जुटाने और कई दूसरे कामों में हो रहा है। ये बेहतर तस्वीरें ले सकें, इसके लिए आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। रोटर कंट्रोल, लंबी बैटरी लाइफ और हायर पेलोड जैसे इनोवेशन से भी इस क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं। मुंबई में बीएमसी मच्छरों के आतंक को खत्म करने के लिए ड्रोन की मदद ले रहा है। वह उन जगहों पर ड्रोन से एंटी-लार्वा तेल का छिड़काव कर रहा है। गौर करने की बात यह है कि इस साल मॉनसून सीजन में मुंबई में मलेरिया के मामले 54 फीसदी कम हुए। बीएमसी आपदा प्रबंधन के लिए भी इनका इस्तेमाल करना चाहता है।

पिछले कुछ दशकों से सेना भी सीमा की निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है। खासतौर पर उन ऊंचे इलाकों में, जहां फौजियों का पहुंचना मुश्किल होता है। आंध्र प्रदेश में नई परियोजनाओं की निगरानी के लिए इन्हें आजमाया जा रहा है। इससे इन प्रॉजेक्ट्स पर काम की रफ्तार तेज और उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद मिल रही है। पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स और इमारतों की निगरानी के लिए भी इनका प्रयोग किया जा सकता है। रिटेल क्षेत्र में हवाई मार्ग से सामान पहुंचाने में भी ये काम आ सकते हैं। इससे डिलिवरी जल्द हो पाएगी और सामान पहुंचाने की लागत भी कम होगी।

बिजली वितरण कंपनियां बिजली की चोरी रोकने के लिए ड्रोन की मदद ले रही हैं। इसी तरह, पानी और गैस पाइपलाइन की निगरानी भी ड्रोन के जरिये की जा रही है। ऑयल प्लैटफॉर्मों और माइंस की निगरानी के लिए इसकी मदद ली जा रही है। खदानों में तो गाड़ियों के बीच संभावित टक्कर को रोकने में भी ड्रोन काम आ रहे हैं। पुलिस के लिए भी ड्रोन काम की चीज है। संवेदनशील इलाकों में इनकी मदद से किसी भी संभावित टकराव को रोका जा सकता है। इसके साथ ही, सड़क यातायात को बेहतर ढंग से मैनेज करने में भी यह तकनीक मददगार है।

ड्रोन का इस्तेमाल खेती में भी बढ़ रहा है। इससे ली गई तस्वीरों से फसल, मिट्टी, सिंचाई और उर्वरक के बेहतर प्रबंधन में मदद मिल रही है। ड्रोन से कीटनाशकों का छिड़काव करना भी फायदेमंद है क्योंकि इसमें किसान की सेहत को नुकसान पहुंचने की आशंका कम होती है। शादी जैसे सामाजिक आयोजनों, ऊंचाई और खास कोण से विडियो बनाने के साथ लाइट इफेक्ट्स के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। सिनेमा और न्यूज मीडिया में हवाई दृश्यों के लिए ड्रोन की मदद ली जा रही है।

सरकार को भी ड्रोन की क्षमता का अहसास है और इस मामले में वह सक्रियता दिखा रही है। हाल ही में उसने 500 किलो तक सामान इससे ढोने की इजाजत दी है। उसने शुल्क में कटौती, रजिस्ट्रेशन के नियम आसान करने और मंजूरियों को आसान बनाया है। पहले सुरक्षा मंजूरी का काम पेचीदा था, जिसे अब आसान किया गया है। इन उपायों से बिजनेस कम्युनिटी को मदद मिलेगी।

यह बात सही है कि ड्रोन को लेकर सबसे बड़े डिवेलपमेंट सैन्य क्षेत्र में होंगे, लेकिन इसका कमर्शल दायरा कहीं व्यापक होगा। जल्द ही एडवांस्ड आर्टिफिशल इंटेलिजेंस क्षमता वाले ड्रोन आएंगे और हवाई टैक्सियों का ट्रायल तो पहले से ही चल रहा है। बहुत छोटे ड्रोन भी आएंगे, जिससे इनका इस्तेमाल बढ़ने के आसार हैं। इससे खासतौर पर निजता के अधिकार को लेकर फिर से बहस तेज हो सकती है।

अनिल नायर
(लेखक सिस्को एपीजेसी के पूर्व एमडी हैं)

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