चीन का घमंड राक्षसी , चेते दुनिया !

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चीन इक्कीसवीं सदी का नंबर एक खतरा है और इस बात को खुद राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने जगजाहिर किया है। उन्होंने खम ठोक दुनिया से कहा है कि 21वीं सदी हमारी है। मतलब जो चीन चाहेगा उसे दुनिया को मानना होगा। चीन अपने माफिक दुनिया बनाएगा। चीन अब अपने को पृथ्वी का केंद्र बिंदु मानता है। इतिहास में जैसे चीन के बादशाह अपने साम्राज्य को मिडिल किंगडम समझते थे और दुनिया को मातहत, वहीं घमंड अब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में है। तभी स्थापना के सौ साल पर उसका दुनिया में ढिंढोरा है कि उसने वह स्वर्ग बनाया है, जो दुनिया में कहीं नहीं बना। निश्चित ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेताओं व चीनी लोगों के लिए गर्व की बात है कि चीन अब विकसित है। दुनिया की औद्योगिक फैक्टरी है। महाशक्ति देश है और लोग काफी हद तक खुशहाल। बावजूद इसके वह न स्वर्ग है और न मानवता की अनुकरणीय विकास यात्रा। उलटे पृथ्वी के पौने आठ अरब लोगों में से 19 प्रतिशत (कोई 145 करोड़ लोग) चीनियों को कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसी मशीनों, ऐसे रोबोट में कनवर्ट किया है, जो गुलाम माफिक काम करते हैं और पिंजरों में रहते हैं। चीन की सोने की लंका असलियत में राक्षसी पार्टी का वह उपक्रम है, जिसमें इंसान मशीन बना है। लोगों के मशीनीकरण से वह विकास है, जिसके हवाले राक्षसों में दंभ है कि चीन की दीवार अब ‘इस्पात की दीवार’ है। कोई धमकाए नहीं, उसे रोके नहीं अन्यथा खून की नदियां बहा देंगे।

राष्ट्रपति शी का ऐसा अहंकार और घमंड हिटलर, स्तालिन और माओत्से तुंग के वैश्विक संदेशों में कभी नहीं था। तभी राष्ट्रपति शी का भाषण वर्चस्वता की जंग का अघोषित बिगुल है। समझें कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने कोविड-19 वायरस को फैलाने के बाद हिमाकत, बेफिक्री, घमंड में जो व्यवहार बनाया है और जिस भाव-भंगिमा से दुनिया में नैरेटिव बना रहा है वह थोथा चना बाजे घना वाला मामला नहीं है। सचमुच यह उस भस्मासुर की ललकार है, जिसने हर तरह का जुनून और ताकत जुटा ली है। ताकत का अर्थ सिर्फ सैनिक-आर्थिक-वित्तीय शक्ति नहीं है, बल्कि कम्युनिज्म के जंगलीपन और चाइनीज सभ्यता-संस्कृति की मंचू राष्ट्रीयता के साझे में 145 करोड़ लोगों का पकाया गौरव भी है।

हां, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने न केवल लोगों को मशीन बनाया है, बल्कि उन मशीनों में राष्ट्रवाद की चाबी भरी है। मशीनों में, रोबोटों में यह आर्टिफिशियल प्रोग्रामिंग बन गई है कि हमें दुनिया जीतनी है। दुनिया में वह वर्चस्व बनाना है, जिससे उसका मनचाहा होता जाए।

इसलिए 21वीं सदी का राष्ट्रपति शी का डंका अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता के लिए खतरा है तो भारत के लिए सर्वाधिक खतरनाक। अमेरिका और पश्चिमी देश चीन से निपटने या महायुद्ध लड़ाई लड़ने में समर्थ हैं लेकिन भारत क्या करेगा? चीन आंखे गड़ाए बैठा है। वह भारत की सीमाओं पर दादागिरी करेगा। अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख तक उसे भारत की भूमि कब्जानी है। भारत को पक्का-गुलाम बाजार बनाना है। भारत को दक्षिण एशिया में अछूत बनाना है। भारत को चैन से विकास नहीं करने देना है। सो, भारत के सामने विकल्प है कि या तो वह चीन के आगे सरेंडर करे और जैसे वह चाहे वैसी आर्थिकी-विदेश नीति बनाए या उसकी दादागिरी का प्रतिरोध करे।

राष्ट्रपति शी जिनफिंग का भाषण केवल आक्रामक नहीं था, बल्कि चीन की मंशा का रोडमैप भी है। इसमें हांगकांग, ताइवान, भारत तीन प्रमुख लक्ष्य हैं। वह अमेरिका, यूरोप, जापान आदि देशों से लड़ेगा, कंपीटिशन करेगा जबकि हांगकांग, ताइवान और भारत में वह साम्राज्यवादी विस्तार का निश्चित टारगेट लिए हुए है। फिर भले वह सेना भेज कर हो या आर्थिकी में भारत को निर्भर बना कर। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और हान सभ्यता की गौरव पताका के ख्याल के रणनीतिकारों-विचारकों ने तय किया हुआ है कि दुनिया के किस देश को कैसे हैंडल करना है। दुनिया को कॉलोनी बना कर कहां से कच्चा माल लेना है, कहां से तकनीक-विज्ञान लेना है। कहां सामान बेचना है और कहां मजदूरी करवानी है। कहां वित्तीय खेल खेलना है तो कहां सैनिक चौकियां बनानी हैं। दूरदराज के लातीनी अमेरिका के अर्जेंटीना में बैटरी के कच्चे सामान लिथियम की खान, ब्राजील के जंगल, जांबिया की तांबा खानों से लेकर मध्य एशिया में सस्ते लेबर के शोषण का पूरा तानाबाना चीन का बना हुआ है। तभी राष्ट्रपति शी ने अहंकार से ऐलान किया कि 21वीं सदी चीन की।

यह अहंकार हिटलर, स्तालिन आदि से अलग तरह का है। इसमें विश्व व्यवस्था को अपनी इच्छा पर नचाने का उद्देश्य है तो पृथ्वी के लोगों के मशीनीकरण का मकसद भी है। राष्ट्रपति शी और उनकी मंडली मानती है कि लोगों को अनुशासित कर जैसे संपन्नता बनाई गई है वह मानवता के लिए आर्दश है। इंसान का माइंड वाश कर उन्हें एफिशिएंट मशीन बना कर ओलंपिक जीता जा सकता है तो नंबर एक आर्थिकी, नंबर एक ताकत भी बना जा सकता है। नेता और सरकार जैसा कहें, जैसा चाहें वह जनता करे। सोचें कोविड-19 वायरस का बनना और उसका दुनिया में फैलना चीन का क्या नंबर एक पाप, उसकी असफलता नहीं थी? राष्ट्रपति शी और कम्युनिस्ट पार्टी में अपराध बोध होना था लेकिन उलटे दुनिया में हल्ला बना रखा है कि चीन का सिस्टम कैसा कमाल का जो वहां वायरस नहीं फैला। लोग नहीं मरे। पार्टी-सरकार की सख्ती से व्यवस्था चुस्त रही।

इस तरह की बहस, इस तरह का हल्ला चीन की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। दुनिया के 195 देशों में बहुसंख्यक देश तानाशाह, अर्द्ध तानाशाह, मुस्लिम देश हैं। सो, इन सब देशों के नेताओं, व्यवस्थाओं के लिए चीन की तानाशाह व्यवस्था का राजनीतिक मॉडल लोकप्रिय हो, यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मिशन है। दुनिया के तमाम तानाशाह देशों के नेताओं को चीन का राजनीतिक समर्थन होता है और यह तथ्य अपने आपमें इस रणनीति का संकेत है कि आगे की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तानाशाहों के ही दम पर चीन अपने को अमेरिका से रिप्लेस करेगा। मतलब वह दुनिया का पुलिस थाना, निर्णयकर्ता बनेगा। भारत के अगल-बगल में ही देखें। पाकिस्तान में भले लोकतंत्र हो और पश्चिमी देशों से उसके रिश्ते भी हैं लेकिन पाकिस्तानी हुक्मरानों के आगे अमेरिका बनाम चीन को चुनने के विकल्प की यदि घड़ी आई तो पाकिस्तानी हुक्मरान चीन को चुनेंगे।

सो, चीनी आभामंडल व्यवस्था, राजनीति, लोगों को मशीन बना कर उनसे काम लेने के वैकल्पिक विकास मॉडल के कई पहलू लिए हुए है। राष्ट्रपति शी जिस दुस्साहस से अमेरिका और यूरोपीय देशों, लोकतांत्रिक विचारधारा को चुनौती दे रहे हैं वह विश्व को अपने ढर्रे में ढालने, दानवी संसार बनाने का प्रारंभ है। जाहिर है 21वीं सदी अकल्पनीय खतरे लिए हुए हो गई है। मानव समाज दो हिस्सों में बंट सकता है। एक तरफ मनुष्य चेतना, आजाद बुद्धि से उड़ते हुए लोगों का समाज तो दूसरी तरफ अनुशासित-पिंजराबंद वैश्विक व्यवस्था चाहने की जिद्द वाला दानव समाज।

सोचें, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल में चीन जैसा बना है, यदि अगले सौ सालों में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने दुनिया को चीन जैसा बना दिया तो मानवता का क्या होगा? कल्पना ही दहला देने वाली है। तभी हर स्वतंत्रचेता इंसान को चीन की महत्वाकांक्षाओं को न केवल गंभीरता से लेना चाहिए, बल्कि 21वीं सदी में मानवता को बचाने का संकल्प भी धारना चाहिए। विशेष कर भारत के लोगों को चीन से हर तरह से सतर्क बनना चाहिए।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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