गठबंधन क्यों नहीं कर पा रही कांग्रेस

0
324

उनकी अनुपस्थिति में पार्टी की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट के जरिए इशारे में ही कांग्रेस को लक्ष्य कर जो अहंकार वाली बात कह दी, वह कांग्रस-नेतृत्व को चुभ गयी। दरअसल इन दोनों के रिश्ते में खटास उसी समय से पलने लगी थी, जब तेजस्वी यादव ने लखनऊ जा कर मायावती और अखिलेश यादव से आत्मीयता भरी मुलाकात की थी।।

गठबंधन के मामले में इस बार कांग्रेस की ग्रह-दशा कुछ ठीक नहीं दिख रही, बात बनते-बनते बिगड़ जा रही है। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार और बंगाल तक यही सूरत-ए-हाल है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के साथ चार छोटे दलों का महागठबंधन जोर-शोर से उभरा जरूर लेकिन सीट-बंटवारे का झटका खाते ही लड़खड़ाने लगा है। यहां तक कि महागठबंधन के दो-फांक हो जाने की आशंका ही जाहिर की जाने लगी है। पिछले तीन-चार दिनों से आरजेडी और कांग्रेस के लिए आठ या नौ से अधिक सीटें छोड़ने को कतई तैयार नहीं है, जबकि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने 11 से एक भी कम सीट कबूल नहीं करने का बयान दे कर आरजेडी की मुश्किल बढ़ा दी है।

जानकार बताते है कि कांग्रेस के इस अडियल रुख से आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव काफी चिढ़ गए और उन्होंने कांग्रेस के लिए आठ से एक भी अधिक सीट नहीं छोड़ने का संदेश तेजस्वी यादव तक पहुंचा दिया। लालू यादव इन दिनों रांची के कारावास के तरह एक अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट के जरिए इशारे में ही कांग्रेस को लक्ष्य कर जो अहंकार वाली बात कह दी, वह कांग्रेस-नेतृत्व को चुभ गयी। दरअसल इन दोनों दलों के रिश्ते में खटास उसी समय से पहले लगी थी, जब तेजस्वी यादव ने लखनऊ जा कर मायावती और अखिलेश यादव से आत्मीयता भरी मुलाकात की थी। कांग्रेस के कान तभी खड़े हो गये थे यह भी तय है की कांग्रेस के साथ गठबंधन को उपयोगी मानते हुए भी आरजेडी अपने जनाधार से जुड़ी शक्ति को क्षीण कर के कोई समझौता नहीं करेगी।

कुछ माह पूर्व तीन प्रदेशों में चुनावी जीत, पटना में रैली के सफल आयोजन और अब प्रियंका गांधी की दलगत सक्रियता में उत्साहित कांग्रेस यहां महागठबंधन में अपनी हैसियत बढ़ाने पर जोर देने लगी है। इसे अस्वाभाविक भी नहीं कहेंगे। उधर महागठबंधन के चार छोटे घटक, यानी उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, शरद यादव और मछुआरा-समुदाय के युवा नेता मुकेश सहीनी ने इसी बीच अपने-अपने दल को मनचाही सीटें दिलाने के दबाव बढ़ा दिए, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को कम से कम तीन सीट चाहिए और पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा पांच सीट की मांग पर अड़े है, जबकि कुशवाहा के साथ कौन रह गया है, पता भी नहीं चल रहा।

अगर सम्बन्धित घटकों के अडियल रवैये की वजह से महाठबंधन टूट गया, तो वैसी सूरत में जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी का आरजेडी के साथ और उपेन्द्र कुशवाहा का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाने जैसा चर्चा भी होने लगी है। और यदि सचमुच ऐसा हुआ तो जाहिर है कि इसे बीजेपी-जेडीयू-एलजेपी गठबंधन को जीत का रास्ता आसान कर देने वाला मौका उपलब्ध कराना समझा जाएगा। लेकिन, मेरे ख्याल से ऐसी नौबत शायद ही आएगी, क्योंकि स्पष्ट तौर पर इससे होने वाले नुकसान को समझते हुए महागठबंधन के सारे घटक अंतत-एक साथ आने को विवश होंगे इस तरह के कुछ संकेत आने भी लगे है क्योंकि टूट के कगार पर पहुंचने के बाद संबंधित सभी पक्षों के रूप में तल्खी के बजाय अब नरमी नजर आने लगी है।

मणिकांत ठाकुर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here