मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में अपने गिरते स्तर से चौथा स्तंभ कमजोर हुआ है। सोशल मीडिया और मेन स्ट्रीम मीडिया के एक सेशन में खबरों को सांप्रदायिक रंग देकर परोसने से इसकी विश्वसनीयता घटी है। कई बार फेक न्यूज से सांप्रदायिक जहर घोला जाता है तो कई बार प्राइम टाइम डिबेट से धार्मिक भावना भड़काई जाती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है। हाल के वर्षों में दृश्य मीडिया से खोजपरक, विकासात्मक व व्यवस्थागत खामियों की रिपोटिंग गायब है, और राजनीतिक व सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाली रिर्पोटिंग का चलन बढ़ा है। भारत जैसे विविध संस्कृति, सोच, धर्म, जाति-समुदाय वाले देश के मीडिया का संजीदा होना जरूरी है। सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया को जरा सी लापरवाही से समाज का तानाबाना छिन्न-भिन्न हो सकता है, देश की सामाजिक समरसता वैमनष्यता में बदल सकती है।
राष्ट्र को एकजुट रखना सबकी जिमेदारी है। सोशल मीडिया के आने के बाद से मेन स्ट्रीम मीडिया की जिमेदारी बढ़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया के एक सेशन में सांप्रदायिक टोन में रिपोटिंग को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इस तरह की खबरों से आखिरकार देश का नाम खराब होता है। चीफ जस्टिस एनवी रमना ने चिंता जताई कि समस्या यह है कि मीडिया का एक सेशन देश में हर एक घटना को कयुनल एंगल से दिखा रहा है। वह जो नहीं है, उसे वह काम नहीं करना चाहिए। सरकार व अदालतों की ओर से मीडिया को अपने को स्व-नियमित करने के लिए बार-बार कहने के बावजूद मीडिया के एक वर्ग का सांप्रदायिक चश्मे से खबर को देखने का आचरण नहीं बदला है। चाहे तबलीगी जमात के मामले में रिपोटिंग हो या महाराष्ट्र में साधुओं की हत्या का प्रकरण हो, विवादित राजनीतिक बयानों पर प्राइम टाइम डिबेट हो, मीडिया के एक वर्ग सांप्रदायिक टोन में अपनी खबरों को प्रस्तुत करते हैं।
चूंकि ओपिनियन बिल्डिंग में मीडिया की अहम भूमिका होती है, इसलिए उसका निष्पक्ष बने रहना जरूरी है। गलत खबर, गलत विचार, दिवस्टिटेड खबर व विचार जनमानस को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। मीडिया अगर गंभीरता से काम करेगा तो, हमारे शासन तंत्र की खामियां दूर होंगी, देश प्रगति की ओर बढ़ेगा, पीडि़तों को न्याय मिल सकेगा, राजनीति की दिशा बदलेगी, राष्ट्र के लिए भविष्य का एजेंडा तय होगा। सर्वेच्च अदालत ने सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही फेक न्यूज को लेकर वेब पोर्टल की जवाबदेही तय करने पर बल दिया है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। आजकल हर खबर को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश एक बड़ी समस्या बनकर सामने आई है। इससे भारत की धमनिरपेक्ष, संविधान से चलने वाली लोकतांत्रिक छवि बदरंग हो रही है।
मीडिया में असहिष्णुता जैसे मनगढ़त विचारों को तूल देने से भारत की छवि ही खराब होती है। सोशल व मेन स्ट्रीम मीडिया राष्ट्र को एकजुट रखने की अपनी जिमेदारी को समझें और फेक खबरों से सांप्रदायिक जहर घोलने से बचें। चीफ जस्टिस का कहना कि ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जजों को जवाब नहीं देते हैं और बिना किसी जवाबदेही के संस्थानों के खिलाफ लिखते रहते हैं, चिंतनीय बात है। नए आईटी रूल्स सोशल और डिजिटल मीडिया कोरेग्युलेट करने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन ये प्रभावी नहीं हो रहे हैं। वेब पोर्टलों और यू-ट्यब चैनलों पर फर्जी खबरों को लेकर नियंत्रण होना जरूरी है। यू-ट्यूब पर न्यूज व विचार चैनल शुरू करने के लिए नियम- कायदे सत बनाए जाने चाहिए।