कोरोना खा रहा रोजाना खरबों डालर !

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उफ! कोरोना वायरस कितने खरब डालर खाएगा? जवाब क्या कोई हो सकता है? नहीं, क्योंकि अभी तो शुरुआत है। डोनाल्ड ट्रंप ने बात-बात में अगस्त तक हालात बेकाबू रहने का जुमला बोला है। लेकिन न ट्रंप के बस में कुछ है और न किसी और माईबाप के बस में मंदी से दुनिया को बचा सकना है। पिछले एक सप्ताह में शेयर बाजार, वित्तीय बाजार में जो हाहाकार हुआ है वह लंबी मंदी में दुनिया के जाने की शुरुआत है। सवाल है ऐसा कैसे सोचा जा सकता है? जवाब में मोटी हकीकत पिछले दो दिनों का घटनाक्रम है। 48 घंटों में दुनिया के अमीर देशों ने सामूहिक तौर पर, पूरे तालमेल के साथ अपने केंद्रीय बैंकों से पैसा लुटाने की घोषणाएं कराई ताकि कोरोना के वायरस से मंदी नहीं बने। मगर उलटा मैसेज गया! हां, ऱविवार, सोमवार के दो दिन में अमेरिका, कनाडा, योरोपीय संघ, ब्रिटेन, स्वीट्जरलैंड, जापान जैसे तमाम देशों ने अपने केंद्रीय उर्फ रिजर्व बैंक से पैसा उड़लवाने के खरबों डालर के फैसले किए। मतलब आओ और बिना प्याज के पैसा ले जाओ ताकि वित्तीय धंधा आबाद रहे। शेयर बाजार में भरोसा व तेजी बनी रहे। आपतकाल के अंदाज में, आईसीयू की गंभीरता में अमेरिका के फेडरल बैंक ने जो किया है उससे सब हैरान हैं तो उससे संकट की गंभीरता भी निवेशकों को समझ आई।

अमेरिका का फेडरल बैंक हमेशा तय वक्त की अपनी बैठक से, अपने पूर्व निर्धारित कलेंडर में ही प्याज दर याकि मौद्रिक नीति के फैसले लिया करता था। लेकिन उसने रविवार के दिन बिना किसी पूर्व तैयारी-बैठक के अचानक प्याज दर को लगभग जीरो प्रतिशत बना दिया ताकि सोमवार के दिन शेयर बाजार संभला रहे। बाजार के सेंटीमेंटस को कोरोना वायरस न लगे और अमेरिका के साथ तालमेल में बाकी अमीर देशो के रिजर्व बैंको ने भी मौद्रिक नीति को उदार बना, ताबड़तोड़ पैसा उड़ेलने का फैसला लिया। लेकिन हुआ क्या? अमेरिका का शेयर बाजार उलटे सोमवार को और अधिक लुढ़का। अमेरिकी बाजार को खुलते ही बंद करना पड़ा क्योंकि हर कोई शेयर बेचने का प्रस्ताव लिए हुए था। एक दिन में अमेरिकी शेयर बाजार सात प्रतिशत गिरा तो लंदन और योरोपीय देशों के बाजारों में भी 7-8 प्रतिशत की गिरावट। सोचें, रविवार को अमेरिका के रिजर्व बैंक ने 700 बिलियन डालर का पैकेज व जीरो प्रतिशत प्याज पर कर्ज मुहैया कराने की नीति बनाई लेकिन बावजूद इसके भरोसा नहीं और हर कोई शेयर बाजार से भागता हुआ। शेयर बाजार में भरोसा, शांति बननी थी लेकिन उलटे निवेशको ने माना कि फेडरल बैंक घबरा रहा है तो बचना क्या है भागो शेयर बाजार से।

दुनिया के अमीर देशों द्वारा आर्थिकी को बचाने, काम-धंधों को बचाने, वित्तिय बाजार को बचाने की जितनी कोशिश अभी हुई है उसका उलटा असर होना प्रमाण है कि जमीनी हकीकत छुपाए नहीं छुप सकती। और आज के वक्त की जमीनी हकीकत अकेली व एक है और वह है कोरोना वायरस। कोई माने या न माने कोरोना वायरस ने जितनी जाने अभी तक ली हैं उससे कई गुना अधिक उसने दुनिया की आर्थिक संपन्नता, उत्पादकता, पैसा, विकास और खजानों को मारा है, उन्हे खाली किया है। बीमार होने वालोंका आंकड़ा है, मौत का आंकड़ा है लेकिन दुनिया की बरबादी इतनी सघन, इतनी भारी है कि उसका अनुमान लगा सकना भी लगभग असंभव है। और जान लिया जाए कि इससे दुनिया का हर व्यक्ति, गरीब-अमीर, अमेरिकी नागरिक या भारतीय नागरिक, दिल्ली का नागरिक या झारखंड, अरूणांचलप्रदेश सभी तरफ के लोग प्रभावित है या होंगे। सभी का गरीब होना, बरबाद होना सामूहिक है। जैसे भारत के छोटे से, पिद्दी शेयर मार्केट याकि सेंसेक्स-निफ्टी में सोमवार को क्रमश: 2713व 757 पाइंट की गिरावट सबको प्रभावित करने वाली बात है। ध्यान रहे वित्तीय बाजार व खासकर शेयर बाजार में तमाम पेंशन फंड, बीमा फंड मसलन भारत में एलआईसी पैसा लगाए हुए होते है। इनके खरीदे हुए शेयरों के जब दाम घटेंगे तो इनका घाटा लोगों की पैंशन, बचत, बीमा, प्याज कमाई में नुकसान है।

दुनिया के अमीर देशों की लोगों को पेंशन देने की व्यवस्था में जितने फंड बने हुए हैं वे शेयर बाजार में पैसा लगा कर, वहां से मुनाफा काम कर पेंशनधारियों को पैंशन देते हैं तो सोचें कि वैश्विक शेयर बाजारों में जिस तेजी से भाव लुढ़क रहे हैं तो आगे पेंशनधारियों को क्या मिलेगा, क्या उनके साथ धोखा नहीं होगा? पेंशन फंड, बैंकों की सेहत, सरकार के खजाने सबकी आर्थिक सेहत शेयर बाजार, वित्तिय सेक्टर के कारोबार से जुड़ी हुई है। यदि ये कोरोना वायरस से दुबले हुए तो लोगों का जीना भी दुबला और दूभर होगा, इस बेसिक बात को भारत के हम लोगों को, हमारे नियंताओं को जल्द समझते हुए कोरोना वायरस के आर्थिक संकट से जुझने का रोडमैप बनालेना चाहिए। पर क्या ऐसा भारत में होता हुआ लग रहा है? पर फिलहाल विचारणीय मसला दुनिया के अमीर देशों का है। इनकी आर्थिकी जितनी तेजी से कोरोना वायरस का शिकार हो रही है वह बाकि दुनिया के लिए मंदी की गारंटी है। आज न्यूजीलैंड के रिर्जव बैंक द्वारा काम-धंधों को चलवाएं रखने के लिए 12 बिलियन डालर के प्रोत्साहक याकि स्टियलसस्टू पैकेज की घोषणा की खबर आई। एक छोटा सा देश अपनी आर्थिकी, अपने काम-धंधों को बचाने के लिए बिना प्याज पर पैसा बांटने के कैसे उपाय कर रहा है, इसे समझना जरूरी है।

ऐसे ही दुनिया की बड़ी आर्थिकी अमेरिका, कनाडा, योरोपीय संघ देशों, जापान, चीन आदि की सरकारों ने वायरस की तालाबंदी में काम- धंधों को बचाने के लिए खरबों डालर के खर्च की जो घोषणाएं कर रही है उन सबका सीधा अर्थ है कि मंदी नहीं आने देने के लिए अगले छह महिनों में खरबों डालर बांटे जाएंगे।पर क्या उससे मंदी रूक सकती है?अमेरिका और अमीर दुनिया के शेयर बाजार इसका जवाब नहीं बता रहे हैं। निवेशक मान रहे हैं कि मंदी तो आएगी। इनका सोचना भी गलत नहीं है। यदि मई-जून तक एयरलाइंस बरबाद होगी या दिवालिया होने के कगार पर होगी तो इनकी कंपनियों के शेयर क्या अर्थ लिए हुए होंगे? आखिर कैसे यात्रा-पर्यटन के धंधे को बचाया जा सकता है? यदि छह महीने आवाजाही रूकी रहे और एयरलाइंस, होटल-रेस्टोरेंट बंद रहे तो इन धंधों को बचाने के लिए रिर्जव बैंक के जरिए बैंकों से बिना प्याज के कर्ज दे कर खर्चे, वर्किंग केपिटल को मुहैय्या कराना क्या संभव है? सबसे बड़ी बात कि क्या गारंटी की छह महिने से पहले योरोप, अमेरिका, जापान आदि देश अपने नागरिकों को घूमने की छूट दे।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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