केंद्र सरकार ने अंतर मंत्रालयी समूह बना कर अधिकारियों को चार राज्यों में भेजा। कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पूरे देश में लागू लॉकडाउन के लिए केंद्र की ओर से दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं, यह देखने के लिए केंद्रीय समूह महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल भेजा गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर सवाल उठाया और दो टूक अंदाज में कहा कि उन्होंने ऐसे किसी समूह को अनुमति नहीं दी है इसलिए केंद्र सरकार के अधिकारी उनके राज्य में नहीं घुस सकते हैं। कोरोना वायरस के संकट के इस कठिन समय में यह बेवजह का विवाद है, जो पहली नजर में लग रहा है कि केंद्र की ओर से शुरू किया गया है और इसका मकसद विशुद्ध रूप से राजनीति है।
ध्यान रहे कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के क्रम में जितने भी काम होने हैं वो सारे राज्यों को ही करने हैं। राज्यों की चिकित्सा सेवा इस काम में लगी है तो राज्यों की पुलिस को कानून व्यवस्था सुनिश्चित करनी है और अगर गरीब लोगों को राशन पहुंचाने का काम हो रहा है तो वह काम भी राज्यों को ही करना है। मोटे तौर पर कोराना वायरस से लड़ने में केंद्र की भूमिका बहुत सीमित है और वह सिर्फ संसाधन उपलब्ध कराने तक है। केंद्र की प्राथमिक भूमिका हवाईअड्डों के जरिए इस वायरस को पूरे देश में पहुंचने से रोकने की थी, जिसमें वह लगभग पूरी तरह से विफल रही है। इसके बाद केंद्र को दुनिया देशों से मेडिकल उपकरण, टेस्टिंग किट आदि मंगाने हैं और राज्यों के लिए धन की व्यवस्था करनी है। इसके अलावा बाकी सारे काम राज्यों के हैं।
इसमें केंद्र की भूमिका कितनी नगण्य है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपने एक लेख में लिखा है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीच बीच में राष्ट्र को संबोधित करने के लिए टीवी पर नहीं आते रहे तो लोग भूल भी जाएंगे कि देश में कोई प्रधानमंत्री भी है। ऐसे ही अगर केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों के अधिकारी रोज साझा प्रेस कांफ्रेंस न करें तो केंद्र की भूमिका के बारे में भी लोगों को कुछ पता नहीं चलेगा। वैसे भी इस प्रेस कांफ्रेंस में जो बातें कही जाती हैं उनका और राज्यों की बातों में कोई खास तालमेल नहीं होता है। संक्रमितों की संख्या, मरने वालों की संख्या और यहां तक कि जांच की संख्या तक में भी फर्क होता है। इसके बावजूद अगर केंद्र की ओर से राज्यों के कामकाज में दखल दिया जाता है तो यह सवाल उठता है कि आखिर इसकी क्या सीमा हो सकती है?
जैसे केरल की सरकार ने अपने यहां नए मामलों की संख्या कम होने और पुराने मामलों में से ज्यादातर के ठीक होने के बाद अपने यहां बसों की आवाजाही शुरू करने, सैलून आदि खोलने का फैसला किया तो केंद्र ने इस पर आपत्ति की, जिसके बाद केरल ने कुछ फैसले वापस ले लिए। यहां तक बात समझ में आती है कि केंद्र परामर्श जारी करे। पर केंद्र जबरदस्ती करे और अपने हिसाब से शर्तें या दिशा-निर्देश राज्यों से लागू कराए तो यह देश के संघवादी ढांचे और संविधान की पूरी परिकल्पना के विरूध होगा। दूसरे, यह कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने में भी कोई फायदा नहीं पहुंचाएंगा क्योंकि केंद्र को यह बात समझ लेनी चाहिए कि एक तरह के दिशा-निर्देश हर जगह लागू नहीं हो सकते हैं। केरल का मॉडल बिहार में या बिहार का मॉडल महाराष्ट्र में नहीं चलेगा। तभी हर राज्य को इस बात की छूट मिलनी चाहिए कि वह अपनी जरूरत के हिसाब से अपने यहां लॉकडाउन के नियम तय करे। क्योंकि राज्य अपना हित बेहतर तरीके से समझते हैं।
जैसे तेलंगाना ने लॉकडाउन सात मई तक बढ़ा दिया है तो क्या केंद्र सरकार इसमें दखल दे सकती है और राज्य सरकार से कह सकती है कि जब केंद्र ने तीन मई तक लॉकडाउन रखा है तो तेलंगाना ने इसे सात मई तक कैसे किया? ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, पंजाब जैसे कई राज्यो ने केंद्र की घोषणा से पहले अपने यहां 30 अप्रैल तक लॉकडाउन लागू करने का ऐलान किया था। अगर 30 अप्रैल के बाद वे अपने यहां कुछ कामकाज शुरू कराना चाहें तो क्या उनको केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी? हर राज्य की आर्थिकी का अपना मॉडल है। जैसे गोवा पर्यटन की अर्थव्यवस्था पर निर्भर है तो बिहार कृषि और झारखंड खनन की अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। तो क्या अगर कर्नाटक में ज्यादा मामले होने पर वहां खनन गतिविधियों पर रोक लगेगी तो कोई मामला नहीं होने के बावजूद झारखंड में भी खनन गतिविधियों पर भी रोक लग जाएगी या उसे अपना फैसला करने की छूट होगी? केंद्र सरकार को कहीं से सूचना मिली कि पश्चिम बंगाल के सात जिलों में लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हो रहा तो केंद्र ने वहां अंतर मंत्रालयी समिति भेजने का फैसला कर लिया।
पर दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर लाखों मजदूर इकट्ठा हुए, मुंबई से लेकर सूरत और केरल के कई जिलों में मजदूर पलायन करने के लिए बाहर निकले, उत्तर प्रदेश सरकार ने विशेष बसों का बंदोबस्त करके कोटा से छात्रों को निकलवाया, क्या यह सब केंद्र सरकार की ओर से जारी लॉकडाउन के दिशा-निर्देश के अनुरूप हुआ है? अगर नहीं तो फिर इन राज्यों की जांच क्यों नहीं कराई गई या इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कोई सख्त निर्देश क्यों नहीं दिया गया? यह विशेष कृपा पश्चिम बंगाल पर इसलिए की गई है क्योंकि वहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं और राज्य सरकार को निकम्मा या जन विरोधी साबित करना चुनावी रूप से फायदेमंद हो सकता है। महराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी टीम भेजी गई है पर ये राज्य कोलेटरल डैमेज का शिकार हुए हैं। यह इनको भी पता है।
तन्मय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)