जम्मू कश्मीर की खबरें मुख्यधारा की मीडिया से और सोशल मीडिया से भी बाहर हो गई हैं। वह तो चर्चा इसलिए हुई क्योंकि एक साथ कई मामले सुप्रीम कोर्ट में आ गए। तमिलनाडु के राज्यसभा सांसद वाइको ने हेबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर करके अदालत से कहा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को एक कार्यक्रम के लिए चेन्नई जाना था पर छह अगस्त से उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है। इस पर सोमवार को अदालत में सुनवाई हुई। उससे ठीक पहले रविवार की रात को राज्य प्रशासन ने फारूक अब्दुल्ला को नागरिक सुरक्षा कानून, पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया।
सोमवार को अदालत में सुनवाई हुई तब तक हालांकि सरकार के वकील ने यहीं कहा कि उनको पता नहीं है फारूक अब्दुल्ला हिरासत में हैं या नहीं। वकील ने कहा कि वे सरकार से पूछ कर बताएंगे। सोमवार को ही अदालत ने एक दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को अपने राज्य जाने की इजाजत दी। इस वजह से कश्मीर की खबरें अखबारों के पहले पन्ने पर आ गईं। अन्यथा अंदर के पन्नों में हर दिन यह खबर आ रही थी कि आज अनुच्छेद 370 से आजादी का 40वां, 41वां या 42वां दिन है और जनजीवन अस्तव्यस्त है।
बहरहाल, जब सरकार ने प्रदेश के सबसे लोकप्रिय और मुख्यधारा की लोकतांत्रिक पार्टी के नेता को पीएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया है तो इससे अंदाजा लगता है कि राज्य में हालात जल्दी सामान्य नहीं होने वाले हैं और लंबे समय तक ऐसी ही स्थिति बनी रहनी है। लैंडलाइन फोन चालू हो जाएंगे, पोस्ट पेड मोबाइल फोन भी चालू हो जाएंगे, कुछ इलाकों में हो सकता है कि इंटरनेट सेवा भी बहाल कर दी जाए पर लोगों की आवाजाही नहीं शुरू होनी है, न कारोबार की पुरानी स्थिति बहाल होनी है और न राजनीतिक गतिविधियां शुरू होने वाली हैं।
जम्मू कश्मीर का नागरिक सुरक्षा कानून यानी पीएसए सत्तर के दशक में बना एक कानून है, जो संयोग से फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला की सरकार ने बनवाया था। यह बेहद सख्त कानून है, जिसके तहत पुलिस बिना कोई आरोप लगाए और बिना अदालत के सामने पेश किए किसी भी व्यक्ति को हिरासत में रख सकती है। अगर किसी हेबियस कार्पस की याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इस कानून के तहत गिरफ्तार किसी व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दे दे तो रिहाई के तुरंत बाद पुलिस फिर उस व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है।
कहने का मतलब है कि इस मामले में रिहाई तभी संभव है, जब सरकार चाहे। पीएसए के तहत पकड़े गए व्यक्ति को कानूनी राहत की गुंजाइश बहुत कम रहती है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले फारूक को पीएसए के तहत गिरफ्तार करके सरकार ने अपना इरादा जाहिर कर दिया है। उसका इरादा अभी नेताओं को राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने से रोके रखना है। इसका कारण यह है कि सरकार भले कहती रहे कि जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं पर उसे पता है कि वास्तविक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। जब तक सरकार राज्य में कुछ बड़ा नहीं कर देती है और एक साथ बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करने वाले कुछ फैसले या कुछ काम नहीं होते हैं तब तक आम लोगों के साथ संवाद बहाल नहीं हो सकता है। इस बीच अगर सरकार ने नेताओं को राजनीतिक गतिविधियों की खुली छूट दे दी तो वे लोगों का दिल दिमाग ज्यादा प्रभावित करेंगे। फिर सरकार के लिए स्थिति पर नियंत्रण और मुश्किल हो जाएगा।
पिछले दिनों भाजपा के एक बड़े नेता ने फारूक अब्दुल्ला को हिरासत में रखे जाने के सवाल पर कहा कि आजाद भारत के इतिहास में शेख अब्दुल्ला सबसे ज्यादा समय तक जेल में रहने वाले नेता हैं। भाजपा ने कहा कि फारूक के पिता दस साल जेल में रहे। कहने का मतलब था कि फारूक को महीनों या बरसों जेल में रहने के लिए तैयार रहना चाहिए। इससे भी जाहिर होता है कि सरकार की रणनीति क्या होगी।
सरकार की रणनीति यथास्थिति बनाए रखने की है। इसका पहला पड़ाव 27 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाला भाषण है। 27 अगस्त को पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलेंगे और उसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का भाषण होगा। इमरान खान यह कह कर अमेरिका जा रहे हैं कि वे संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे और कश्मीरी लोगों को निराश नहीं करेंगे। जाहिर है मोदी और इमरान के भाषण के बाद विश्व बिरादरी में कश्मीर को लेकर चर्चा तेज होगी। भारत की नजर उस चर्चा पर होगी।
एक और खास बात यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 23 सितंबर को ह्यूस्टन में होने वाले हाउडी मोदी कार्यक्रम में शामिल होंगे। वहां मोदी और ट्रंप दोनों भाषण करेंगे। स्वाभाविक रूप से मोदी के भाषण में कश्मीर का जिक्र होगा। ट्रंप इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और उसके कुछ घंटों बाद ही वे जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलेंगे तब क्या कहते हैं, इससे भी कश्मीर की आगे की लाइन तय होगी।
मोटे तौर पर दुनिया का समर्थन अभी भारत के साथ है। पर वह फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता को पीएसए के तहत गिरफ्तार करने से पहले की बात है। अब स्थिति बदल गई। चुने हुए प्रतिनिधि की पीएसए के तहत गिरफ्तारी से यह साफ हो गया है कि सरकार ने खुले तौर पर मान लिया है कि तमाम दावों के बावजूद जमीनी हालात अभी अनुकूल नहीं हैं। इसलिए यह तय मानना चाहिए कि अभी काफी समय तक जम्मू कश्मीर में मौजूदा हालात बरकरार रहेंगे, पाबंदियां जारी रहेंगी और नेता हिरासत में रखे जाएंगे।
शशांक राय
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं