कश्मीर का एकीकरण संभव

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जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांट कर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना देने के केंद्र सरकार के फैसले से क्या जम्मू कश्मीर का एकीकरण पूरा हो जाएगा? ध्यान रहे केंद्र के इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा प्रचार इस बात का हो रहा है कि अब कश्मीर का भारत में पूरी तरह से एकीकरण हो गया, कश्मीर मुख्य धारा में शामिल हो गया, वहां के लोगों का अलगाव खत्म हो गया और अब वहां विकास की गंगा बह निकलेगी।

ये चारों बातें कितनी सही होती हैं, वह तो समय बताएगा पर पिछले 50-60 साल के इतिहास को देखें तो अलग ही तस्वीर निकल कर आती है। आजादी के बाद जिन देशी रियासतों का विलय भारत में हुआ था उनका एकीकरण लगभग संपूर्ण है। पर उसके बाद भाषा के आधार पर बने राज्यों के साथ या प्रशासनिक ईकाई के तौर पर दूरदराज के राज्यों के साथ या बाद के समय में देश में मिले राज्यों के साथ हमेशा कुछ न कुछ समस्या रही।

वैसी समस्या कश्मीर को लेकर भी आ सकती है। कश्मीर को लेकर कई किस्म की ऐतिहासिक ग्रंथियां अलग हैं। भाजपा के नेताओं ने भी कश्मीरियत का इतना हल्ला मचाया है कि उसे बचाए रखने की बड़ी चुनौती होगी। खुद भाजपा की प्रदेश ईकाई के नेता देश भर में मचे हल्ले से घबराए हैं।

पहले दिन से यह माहौल बना है कि कश्मीर जमीन का एक प्लॉट है, जिसमें सबको हिस्सेदारी लेनी है और कश्मीर की सुंदर लड़कियों से शादी करनी है। देश भर के भाजपा समर्थक सोशल मीडिया में ऐसे उत्पात मचाए हैं जैसे कश्मीर की जमीन और वहां की लड़कियां सबके लिए उपलब्ध हैं। भाजपा के एक मुख्यमंत्री भी इस उत्पात में शामिल हो गए हैं। तभी ऐसा लग रहा है कि एकीकरण को संपूर्ण बनाने और राज्य के लोगों को देश के साथ जोड़ने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत होगी।

देश के साथ कश्मीर के एकीकरण को सबसे पहले तो इस नजरिए से देखने की जरूरत है कि क्या अब यह राज्य देश की मुख्यधारा की प्रशासनिक व्यवस्था का अंग बन गया है? क्या देश के लोकतांत्रिक ढांचे का पूरा लाभ वहां के लोगों को मिलने लगेगा? और देश के दूसरे हिस्सों में उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलेगा? इनका जवाब अभी नहीं दिया जा सकता है।

केंद्र सरकार ने अभी तो जम्मू कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया है। यानी केंद्र के प्रशासन से वहां का प्रशासन सीधे जुड़ा होगा। कायदे से इसका लाभ प्रदेश को मिलना चाहिए पर दिल्ली और पुड्डुचेरी जैसे विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों का केंद्र के साथ जैसा संबंध है उसे देखते हुए लगता नहीं है कि अगर जम्मू कश्मीर में भाजपा की सरकार नहीं बनी तो तालमेल बेहतर हो पाएगा। प्रशासनिक एकीकरण के लिए उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच बेहतर समन्वय सबसे पहली जरूरत है।

केंद्र की भाजपा सरकार की ओर नियुक्त हुए उप राज्यपालों का दिल्ली और पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्रियों के साथ बहुत तनाव का संबंध है। प्रशासनिक एकीकरण की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके लिए भाजपा और उसकी केंद्र सरकार को ईमानदारी से काम करना होगा। सबसे पहले परिसीमन का काम ऐसी ईमानदारी से होना चाहिए, जिससे राज्य के लोगों को यह न लगे कि भाजपा की सरकार बनवाने के लिए मनमाने तरीके से विधासनभा सीटें बढ़ाई जा रही हैं और उनका भूगोल बदला जा रहा है।

उसके बाद स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना चाहिए और अंत में राज्य की चुनी हुई सरकार और केंद्र के नियुक्त उप राज्यपाल के बीच दुश्मनी वाले संबंध नहीं होना चाहिए। उसके बाद जितनी जल्दी ही केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा खत्म करके राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए। लोगों का भरोसा जीतने के लिए यह पहली जरूरत है।

जहां तक आर्थिक विकास की बात है तो वह एक काल्पनिक सी चीज है, जिसका दावा पिछले पांच साल से किया जा रहा है। यह कहना सरासर गलत है कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था इसलिए वहां विकास नहीं हुआ। अगर ऐसा है तो बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश या पूर्वोत्तर के दूसरे राज्य कैसे पिछड़े रह गए? वहां तो 370 नहीं लागू था! दूसरी बात यह है कि सारे देश की विकास की गाड़ी खुद ही पटरी से उतरी हुई है तो कश्मीर में विकास की गाड़ी कैसे दौड़ेगी?

ऊपर से जम्मू कश्मीर की हालत तो और खराब है। पिछले पांच साल में आतंकवाद की घटनाएं बढ़ी हैं, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ भी बढ़ी है, ऊपर से राज्य में बुनियादी ढांचे की घनघोर कमी है और किसी भी उद्योग या कारोबार के लिए कुशल कामगारों का भी अभाव है। ऐसी स्थिति में वहां विकास की बात बरगलाने वाली ही लग रही है। सरकार बुनियादी ढांचा ठीक करने की बात करे तो आगे हालात ठीक हो सकते हैं।

सबसे आखिर में भावनात्मक लगाव की बात आती है। ध्यान रहे भारत में ऐसी बहुलता और विविधता है कि उसका सम्मान किए बगैर भावनात्मक लगाव की बात सोची ही नहीं जा सकती है। भारत में हमेशा इसकी कमी रही है, जिसकी वजह से आज भी दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के राज्यों का शेष भारत के साथ लगाव नहीं बन पाता है। भौगोलिक एकीकरण के बावजूद सांस्कृतिक व भाषाई विविधता आड़े आती है।

सो, कश्मीर के साथ भी भावनात्मक एकीकरण तभी पूरा होगा, जब कश्मीरियत का सम्मान होगा। अभी इस के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। 370 हटाए जाते ही जिस तरह से सोशल मीडिया में उत्पात शुरू हुआ और जिस तरह से कश्मीर को जमीन के एक टुकड़े की तरह और वहां के लोगों को दुश्मन देश के लोगों की तरह देखा जाने लगा वह खतरनाक है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल दूरदराज गांवों में जाकर लोगों से मिल रहे हैं इस तरह की मेल मुलाकात सिर्फ सुरक्षा घेरे में नहीं होनी चाहिए, बल्कि आम लोगों के बीच इसे बढ़ावा देना चाहिए।

शशांक राय
लेखक स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

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