केरल हाईकोर्ट के निर्णय ने महर्षि दधीचि की देहदान और अंगदान की परम्परा को कलंकित होने से बचा लिया। वरन मानव कल्याण के इस कार्य में जाति, धर्म, संप्रदाय अपराधी और निरपराधी खोजे जाने लगते। दान की पूरी परंपरा और मानव कल्याण की व्यवस्था भंग हो जाती । देहदान और अंगदान की प्रक्रिया जाति, धर्म ओर संप्रदाय में बंटकर रह जाती। मानव कल्याण के लिए देहदान की बात महर्षि दधीचि की कहानी से मिलती है। देवता और दानव में युद्ध चल रहा था ! दानव देवताओं पर भारी पड़ रहे थे। देवताओं को समझ नहीं आ रहा था कि युद्ध में कैसे विजय पाई जाए। इसके लिए वे ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने सुझाव दिया कि महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने अस्त्र से दानवों को पराजित किया जा सकता है। देवता महर्षि दधीचि के पास गए। याचना की। दधीचि द्वारा दी गई अस्थियों से बने वज्र से राक्षस ब्रजासुर का बद्ध हुआ। दानव पराजित हुए।
आर्यव्रत की हजारों साल पुरानी देहदान और अंगदान की इस परंपरा में आज भी लोगों की रुचि नहीं है। मुझे याद है कि लगभग 30 साल पहले बिजनौर के स्टेडियम में खेल प्रतियोगिता के दौरान भाला लगने से एक कर्मचारी घायल हो गया था। उसे खून की जरूरत थी। कहे जाने पर भी परिवार जनों ने खून नहीं दिया था। उसकी मदद के लिए स्टेडियम के खिलाड़ी आगे आये। उनके रत देने से कर्मचारी की जान बची। अंगदान की प्रक्रिया बहुत लाभकर है पर जिस तेजी से बढऩी चाहिए, उस तेजी से नहीं बढ़ी। अभी भी दुनिया के करोड़ों लोग इसलिए मर जाते हैं क्योंकि क्योंकि उनकी देह के अंग कार्य करना बंद कर देते हैं। यदि अन्य मरने वाले के सही अंग उनके परिवारजन दान करने लगें तो बहुतों की जान बच सकती है। अंगदान के नाम पर आंख देना ही शुरू हुआ है। यह भी न के बराबर। जबकि मानव कल्याण के लिये अंगदान का प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है।
रत दान में जरूर तेजी आई है। आज काफी संख्या में स्वेच्छा से पूरी दुनिया में रतदान होता है। केरल में अंग-प्रत्यारोपण प्राधिकरण समिति ने एक अपराधी के ऑर्गन डोनेट के आवेदन को खारिज कर दिया था। उसका कहना था कि अंग दान करने वाला अपराधी है। इसलिए उसके अंग नहीं लिए जा सकते। केरल हाईकोर्ट ने अंग-प्रत्यारोपण प्राधिकरण समिति के इस निर्णय को गलत ठहराया। जज पीवी कुन्हीकृष्णन ने समिति के फैसले को खारिज कर दिया।उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी व्यति का ऑर्गन डोनेट करने से उसके अपराधी होने का कोई संबंध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि किसी का लीवर, किडनी क्या दिल आपराधिक नहीं होता। पीवी कुन्हीकृष्णन ने समिति के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि हम सभी के शरीर में एक जैसा खून है।
कोर्ट ने कहा है कि 1994 के मानव अंग एवं उत्तक प्रतिरोपण अधिनियम को सांप्रदायिक सौहार्द एवं धर्मनिरपेक्षता का पथप्रदर्शक बनने दें। ताकि विभिन्न धर्मों एवं आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग अलग जातियों, नस्ल, धर्म क्या पूर्व में अपराधी रहे जरूरतमंद लोगों को ऑर्गन डोनेट कर सकें। केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय देहदान अंगदान की कलंकित होने जा रही परंपरा को रोकने में एक मील का पत्थर साबित होता। फांसी पर चढऩे वाले अपराधी भी अपने अंगदान कर सकेंगे । अंगदान के लिए कई अच्छे स्लोगन सामने आए हैं। मरने के बाद भी यदि दुनिया की खूबसूरती देखते रहना चाहते हों तो आंखे दान करो। मरने के बाद भी दिल की धड़कन महसूस करनी हों, तो दिल दान करों। इस तरह के और रोचक नारे और स्लोगन बनाकर बढिय़ाकर प्रचार करने महर्षि दधीचि की देहदान की परम्परा को ओर आगे बढ़ाया जा सकता। और लोगों की जान बचायी जा सकती हैं।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)