यह सच है कि करतापुर कारिडोर खुलने से भारतीय सिखों को गुरु नानकदेव का दर्शन लाभ मिलेगा, इसी तकह पाकिस्तान के सिखों को भी भारत में स्वर्ण मंदिर समेत तमाम सिख तीर्थस्थलों का आसानी से लाभ मिल सकेगा और निश्चित तौर पर इससे दोनों देशों के नागरिकों के बीच संवाद बढऩे से संबंध मजबूत होगा। इससे रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल सकती है। यह नए रिश्तों का कारिडोर हो सकता है। लेकिन दिक्कत यही है कि पाकिस्तान कहता कुछ और करता कुछ है। उसके डबल फेस से ही कभी भी रिश्ते सामान्य नहीं हो पाये। ताजा मसला करतारपुर कमेटी से जुड़ा है। पहले पाकिस्तान ने कमेटी में खालिस्तानी नेता गोपाल सिंह चावला को शामिल कर लिया था। भारत के ऐतराज के बाद इमरान सरकार ने पाकिस्तानी सिख गुरु द्वारा कमेटी से हटा दिया लेकिन दूसरे खालिस्तानी नेता अमीर सिंह को इसमें शामिल कर दिया। यह कमेटी कारिडोर पर समन्वय की भूमिका निभायेगी। माना जाता है कि अमीर सिंह कुख्यात खालिस्तानी बिशन सिंह का भाई है।
बहरहाल पाकिस्तान की इसी तरह की हरकत के कारण करतारपुर पर अफसरों के बीच 2 अप्रैल को होने वाली बातचीत टल गई थी। पर अब गोपाल सिंह चावला के कमेटी से हटने के बाद रविवार को अटारी-बाघा बार्डर पर कई मुद्दों पर बातचीत हुई। कितने श्रद्धालु रोजाना इस कारिडोर का इस्तेमाल करेंगे, यह तय हुआ और यात्रा के दस्तावेज व सुरक्षा संबंधी मामलों पर भी बातचीत हुई। शुरूआत तो हुई है। कारिडोर मसले पर भारत आगे बढ़ तो रहा है लेकिन जरूरत है कदम फूंक -फूंक कर रखने की। क्योंकि पाकिस्तान इस कारिडोर के जरिये छाया युद्ध शुरू कर सकता है। यह शंका इसलिए कि दशकों पहले पाकिस्तान के इशारे पर ही पंजाब में खालिस्तान की मांग को लेकर उग्रवाद पनवा था। वर्षों की लड़ाई के बाद पंजाब को पाक प्रायोजित आतंक वाद से मुक्त कराया जा सका था। इस मोर्चे पर मुंहकी खाने के बाद पाकिस्तान के ही इशारे पर कश्मीर को अस्थिर करने का खेल शुरू हुआ जो अब तक बदस्तूर जारी है।
हालांकि मौजूदा स्थिति में पाक प्रायोजित आतंक वाद के लिए अनुकूल माहौल पहले जैसा नहीं रह गया है। क श्मीर पर सगत नीति के चलते अलगाववाद को पाल-पोस रहे लोगों पर शिकंजा कसता जा रहा है। इस सबके बीच यह संभावना जतायी जा रही है कि पाकिस्तान, भारत के लिए कश्मीर के साथ ही पंजाब का फ्रंट भी खोलना चाहता है और इस कोशिश को करतारपुर कारिडोर से नई ताकत मिल सकती है। वैसे पहले से ही पाकिस्तान की तरफ से नशे की खेप पंजाब पहुंचाकर युवाओं को लती बनाया जा रहा है। इसलिए पाकिस्तान खालिस्तानी जिन्न को खुला छोडक़र भारत के लिए नई चुनौती खड़ा कर सकता है। इन आशंकाओं की वजह साफ है कि पाकिस्तान की तरफ से अब तक किसी भी तरह की कोशिश में ईमानदारी के सुबूत नहीं मिले हैं। इसीलिए कारिडोर मसले पर सतर्कता के साथ आगे बढऩा जरूरी है। वैसे सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने सीमा पार से आतंकी गतिविधि के लिए पाकिस्तान को ना बगशने की एक बार फिर चेतावनी दी है। इस सबके बीच सिखों के पहले गुरू का दीदार सबके लिए सुलभ हो, यह भी जरूरी है।