जम्मू-कश्मीर के सवाल को मोदी सरकार ने हमेशा के लिए हल कर दिया है। भाजपा की इस सरकार ने जैसी हिम्मत दिखाई है, वैसी हिम्मत अब तक की कोई भी सरकार नहीं दिखा पाई। यदि इंदिरा सरकार को मैंने 1971 में बांग्लादेश के लिए ‘महाप्रतापी सरकार’ कहा था तो अब 2019 में कश्मीर के लिए मैं मोदी सरकार को भी ‘महाप्रतापी’ ही कहूंगा।
गृहमंत्री अमित शाह ने सरदार पटेल और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मनोकामना को आज पूरा किया है। पिछले एक माह में मैं तीन-चार बार लिख चुका हूं कि कश्मीर में 70 साल से चल रहे ढोंग को खत्म किया जाए। अब धारा 370 और 35 ए के खत्म होने पर कश्मीर सच्चे अर्थों में आजाद हो गया है। यह प्रांत अब उसी तरह से आजाद हो गया है, जैसे देश के दूसरे प्रांत हैं। इन धाराओं की बेड़ियां आज भंग हो गई हैं। अब कश्मीर भारत के दूसरे प्रांतों की तरह सिर ऊंचा करके रह सकेगा।
अब तक वह केंद्र के आगे भीख का कटोरा फैलाता था। अपनी विशेष हैसियत के नाम पर वह अब तक अधर में लटका हुआ था लेकिन अब वह अपने पांव पर खड़ा होगा। यह कश्मीर का पुनर्जन्म है। अब कश्मीर को आतंकवाद, विदेशी दखलंदाजी और भ्रष्ट नेताओं से मुक्ति मिलेगी। कश्मीर की जनता और देश के सभी दलों को सरकार के इस फैसले का तहे-दिल से स्वागत करना चाहिए।
कश्मीर और जम्मू को केंद्र-प्रशासित राज्य की बजाय पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाता तो वह कहीं बेहतर होता और धारा 35 ए की जगह ऐसी धारा लाई जाती कि जिससे ‘कश्मीरियत’ की रक्षा होती तो अटलजी के कथन पर अमल होता। जहां तक स्वायत्तता का प्रश्न है, कश्मीर ही क्यों, देश के सभी प्रांतों को बराबरी की स्वायत्तता मिलनी चाहिए। सच्चा संघवाद इसी में है। इस फैसले पर कश्मीर के प्रांतीय नेताओं और दलों की नाराजी स्वाभाविक है। पाकिस्तान की प्रतिक्रिया भी काफी तीव्र होगी, क्योंकि यह कश्मीरी अलगाववाद की राजनीति का अंत है।
कश्मीर में हिंसा भड़काने के प्रयासों का डटकर मुकाबला करना होगा। फौज की उपस्थिति दुगुनी करनी पड़ी तो वह भी की जाएगी। आज पाकिस्तान की हालत पस्त है। वह कागजी गोले फेंकने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। भारत के विदेश मंत्रालय को महाशक्ति राष्ट्रों के साथ विशेष कूटनीतिक तैयारी करनी होगी। जहां तक भारत की जनता का सवाल है (कुछ नेताओं को छोड़ दें), लगभग सभी के दिल में खुशी की लहर दौड़ रही है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं