उपलब्धियों पर निशाना

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मोदी सरकार के इस कार्यकाल में हुई कुछ फैसलों को भाजपा ऐतिहासिक उपलब्धि के तौर पर रेखांकित कर रही है। ये फैसले हैं आर्टिकल 370 और 35ए का खात्मा और तीन तलाक जैसी कुप्रथा का अंत। पार्टी इन फैसलों के जरिये मोदी के रूप में सशक्त और निर्णायक नेतृत्व की छवि गढ़ते हुए आगामी विधानसभा चुनावों में लाभ लेने के लिए तत्पर दिखती है। जवाब में कांग्रेस ने खासतौर पर मोदी सरकार के इस कार्यकाल की उपलब्धियों को अराजकता और अव्यवस्था के रूप में रेखांकित किया है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव होने वाले हैं। भाजपा हाल के फैसलों को लेकर अपने लिए जीत की राह प्रशस्त करने में जुट गयी है। इसमें दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य के दर्जे को खत्म करने का फैसला आसान नहीं रहा होगा।

इस फ सले से अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को अपने पाले में लाने की चुनौती रही होगी, साथ ही पाकिस्तान की तरफ से मिलने वाली चुनौतियों का भी ध्यान रहा होगा। इसके अलावा कश्मीर के भीतर अपनी चुनौतियां अलग से, जिस पर पूरे विपक्ष का अडिय़ल रुख लेकिन जिस समझ से राज्यसभा, जहां बहुमत ना होने के बावजूद सरकार का संकल्प का नहीं, कुल मिलाकर मौजूदा नेतृत्व को मजबूती प्रदान करती है। इसी तरह तीन तलाक का मसला भी काफी संवेदनशील था पर कुप्रथा को समाप्त करने का इतिहास रचा गया। इन दोनों फै सलों को लेकर जनता के बीच जिस लाभ को लेने के लिए भाजपा उपलब्धी बखान रही है, उसी के जवाब में विपक्ष ने भी मोदी सरकार की दुखती रग को दबाने की नीति अपनाई है।

कांग्रेस ने तो इस कार्यकाल के फैसलों को अव्यवस्था, आतंक और अराजकता का नमूना बताकर निशाना साधा है। इस सरकार की सबसे कमजोर कड़ी अर्थव्यवस्था है। ठीक है कि वैश्विक मंदी का माहौल है, फिर भी देश के भीतर जो आर्थिक हालात हैं, वे चिंता बढ़ाने वाले हैं। आरबीआई के रिजर्व फंड की मदद के बाद हालांकि सरकार ने उम्मीद जताई है कि आटो सेक्टर और रियल स्टेट में आयी सुस्ती को दूर करने के लिए अनुकूलता पैदा होगी। बैंकों की तरलता बनाये रखने के लिए सरकार ने आपात फंड का खजाना खोला है लेकिन इसके अपने खतरे भी हैं। जीडीपी पांच फीसदी तक पहुंचने की स्थिति में है। मानसून की अनियमितता से कृषि भी प्रभावित हुई है। कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ ने पूरी ग्रामीण अर्थव्यवस्था बिगाड़ कर रख दी है। उत्पादन के क्षेत्र में सुस्ती का आलम यह है कि मारुति जैसी कंपनियां शट-डाउन की नीति अपनाने को मजबूर हो रही हैं।

घरेलू मोर्चे पर भी मांग नहीं पैदा हो पा रही है। इन सबके पीछे नोटबंदी और जीएसटी को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नोटबंदी को संगठित लूट कहा था और उनका जो अनुमान था कि तीन-चार बरस तक देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित रहेगी तो वह सच प्रतीत हो रहा है। खुद आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में स्वीकारा गया है कि नोटबंदी से पहले 17 लाख करोड़ नकदी प्रवाह में थी। इसका मतलब कैशलेस अर्थव्यवस्था का सपना पूरा नहीं हो पाया,उलटे असंगठित क्षेत्र से रोजगार कम हो गया। जीएसटी में भी एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का संग्रह नहीं हो पा रहा है जबकि इसमें उत्तरोतर वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। ऐसे कठिन सवालों को लेकर विपक्ष मोदी सरकार की उपलब्धियों की चमक मंद करना चाहता है।

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