उत्पत्ति एकादशी व्रत

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उत्पन्ना एकादशी व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। मार्गशिर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी एक देवी हैं, जिनका जन्म भगवान विष्णु के शरीर से हुआ था। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को देवी एकादशी प्रकट हुई थीं इसलिये इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी हुआ। पद्मपुराण के अनुसार इस एकादशी के व्रत से धन-धान्य का लाभ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार, कठिन तपस्या से आप जितना पुण्यफल प्राप्त कर सकते हैं, उतना ही पुण्यफल उत्पन्ना एकादशी का व्रत करके प्राप्त किया जा सकता है। जो भक्त सच्चे मन और साफ हृदय से इस एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। ग्रन्थों की मानें तो, एक बार भगवान विष्णु और मुर नामक राक्षस के बीच युद्ध हो हुआ था। युद्ध करते करते भगवान विष्णु थक गये और बद्रीकाश्रम में एक गुफा में विश्राम करने चले गये। असुरराज मुर भगवान विष्णु का पीछा करते हुए गुफा में पहुंच गया। जब मुर ने भगवान विष्णु को निद्रा में लीन देखा तो उनको मारना चाहा। तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक देवी प्रकट हुईं और और उन्होंने मुर नामक राक्षस का वध कर दिया। भगवान विष्णु देवी के इस कार्य से पहुत प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि तुम मेरे शरीर से एकादशी के दिन उत्पन्न हुई हो इसलिये तुम्हारा नाम उत्पन्ना एकादशी होगा। आज से हर एकादशी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा की जाएगी। सभी व्रतों में तुम सबसे महत्वपूर्ण होगी और जो भी भक्त सभी एकादशी को व्रत रखेगा, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी।

उत्पन्ना एकादशी व्रत करने की विधि – नारदपुराण के अनुसार, व्रती को सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद घट स्थापना करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर पर गंगाजल के छींटे देकर धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीले फूल जरूर चढ़ाएं । इसके बाद घी का दीप जलाएं और आरती करें। पूरे दिन मन ही मन भगवान का ध्यान करें। शाम में आरती पूजन के बाद फलाहार कर सकते हैं। जो लोग बीमार हैं वो दिन में आहार भी कर सकते हैं। अगले दिन सुबह श्रीकृष्ण की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन कराएं और फिर स्वयं व्रत का परायण करें।

इस दिन क्या न करें – शास्त्रों की मानें तो इस दिन सदाचार का पालन करना चाहिए और चावल नहीं खाने चाहिए। इस दिन भक्तों को परनिंदा छल-कपट, लालच, काम भाव, भोग विलास और द्वेष की भावनाओं से दूर रहना चाहिए । द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के पश्चात स्वयं भोजन करें। व्रत के दौरान कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।

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