आर्थिकी पर अब गहरा संकट

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भारतीय जनता पार्टी के नेता, केंद्र सरकार के मंत्री और यहां तक कि सरकार से जुड़ी वित्तीय संस्थानों के प्रमुख इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि देश की आर्थिक हालत खराब हो गई है। देश मंदी के भंवर में फंस गया है। वे अभी तक यहीं कह रहे हैं कि ये मंदी चक्रीय है और जल्दी ही देश की अर्थव्यवस्था उस चक्र से बाहर निकल जाएगी। पर आर्थिकी की सेहत बताने वाला कोई भी संकेतक इस बात की गवाही नहीं दे रहा है। इसका सबूत सरकार की ओर से जारी किया गया जीएसटी का ताजा आंकड़ा है। सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक अभी तक जीएसटी का संग्रह अनुमान से 63 हजार करोड़ रुपए कम है। ऊपर से अब सरकार ने लक्ष्य बढ़ा दिया है। सवाल है कि जब शुरू में जीएसटी वसूली का लक्ष्य नहीं पूरा हो सका तो अब लक्ष्य बढ़ा कर सरकार ज्यादा वसूली कैसे कर पाएगी, जबकि मंदी के हालात अब पहले से ज्यादा गंभीर हो गए हैं।

सरकार को चिंता में डालने वाली दूसरी खबर स्पेक्ट्रम बिक्री को लेकर आई है। केंद्र सरकार 5जी स्पेक्ट्रम और 700 मेगाहर्ट्ज एयरवेब्स की बिक्री करने वाली है। सरकार ने इसके लिए बेस प्राइस पांच लाख 22 हजार करोड़ रुपए की रखी है। अव्वल तो अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले यह कीमत बहुत ज्यादा है। दूसरे भारतीय बाजार की हालात बहुत खराब है। मोबाइल सेवा देने वाली तीन निजी कंपनियों में से दो की हालत तो बहुत ज्यादा खराब है। ग्रॉस एडजस्टेड रेवेन्यू की वसूली के नाम पर सरकार ने उनको 92 हजार करोड़ रुपए का नोटिस दिया हुआ है। तीसरे, इस समय भारत में 5जी की उपयोगिता भी बहुत ज्यादा नहीं है। इस वजह से संचार मामलों के जानकारों का मानना है कि इस कीमत पर स्पेक्ट्रम नहीं बिकने वाले हैं। यह भी कहा जा रहा है कि अगर बहुत ज्यादा बिक्री हुई तो स्पेक्ट्रम से सरकार को 40 हजार करोड़ रुपए मिलेंगे। यानी कीमत के दस फीसदी से भी कम।

सोचें, फिर सरकार की क्या हालत होगी? सरकार स्पेक्ट्रम बिक्री और सरकारी कंपनियों के विनिवेश से बहुत ज्यादा पैसा जुटने की उम्मीद कर रही है। पर उसकी उम्मीदें पूरी होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। इसका एक कारण यह भी है कि सरकार जिन सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने जा रही है उसमें से दो सबसे अहम हैं और इन दोनों के खरीददार अभी नहीं दिख रहे हैं। सरकार भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन को बेच रही है, जिससे उसे 64 हजार करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है। यह मुनाफा कमाने वाली कंपनी है। इसके बावजूद इसकी खरीद पर होने वाला कुल खर्च 90 हजार करोड़ रुपए बैठता है और कोई भी भारतीय कंपनी ऐसी नहीं है, जिसके पास इसे खरीदने के लिए पैसा है। दो विदेशी कंपनियां इसमे रूचि दिखा सकती हैं पर वे भी भविष्य के बाजार का आकलन कर रही हैं।

इससे भी ज्यादा दिक्कत एयर इंडिया की बिक्री में आने वाली है। पहली बार जब सरकार ने इसे बिक्री के लिए प्रस्तुत किया था तब इसे कोई खरीददार नहीं मिला था। उसके बाद सरकार ने इसकी बिक्री की शर्तों को बदला है और यह तय किया है कि इसे चलाने के लिए सरकार ने संचालन खर्च के नाम पर जो कर्ज दिया है वह खरीददार को नहीं चुकाना होगा। यह बहुत बड़ा बदलाव था, इसके बावजूद ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।

पिछले दिनों विमानन मंत्रालय की ओर से एयर इंडिया का ग्राहक खोजने के लिए मुंबई, सिंगापुर और लंदन में रोड शो किया गया था। पर बहुत गिनी चुनी कंपनियों ने इसमें रूचि दिखाई। इक्का दुक्का कंपनियों के अलावा किसी की इसमें दिलचस्पी नहीं है। असल में यह प्रावधान किया गया है कि जो भी विदेशी कंपनी इसे खरीदेगी उसे इस कंपनी में 51 फीसदी हिस्सेदारी किसी भारतीय कंपनी की रखनी होगी। यानी विदेशी कंपनी का मालिकाना हक इस पर नहीं होगा। इसी वजह से विदेशी कंपनियां इसकी खरीद में दिलचस्पी नहीं ले रही हैं। दूसरी ओर सरकार ने दो टूक अंदाज में कहा हुआ है कि अगर यह कंपनी नहीं बिकती है तो सरकार को इसे बंद करना होगा।

सरकार अभी छोटे मोटे उपाय करके संकट से निकलने का प्रयास कर रही है और उसे उम्मीद है कि अगली तिमाही से विकास दर सुधरने लगेगी। ध्यान रहे भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल की विकास दर का अनुमान घटा कर पांच फीसदी कर दिया है। पर अब कहा जा रहा है कि विकास दर इससे नीचे रह सकती है। रेटिंग करने वाली दुनिया की मशहूर एजेंसी मूडीज ने 4.9 फीसदी का अनुमान जताया है तो फिच नेकहा है कि विकास दर 4.6 फीसदी रहेगी। तीसरी एजेंसी आईएचसी का कहना है कि विकास दर 4.8 फीसदी रहेगी। विकास दर पांच फीसदी से नीचे रही तो सरकार की मुश्किलें बढ़ेंगी। इस बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान आया है कि सरकार के पास पैसा नहीं है। नकदी का संकट है। एक तरफ जीएसटी वसूली कम हो रही है और सरकारी कंपनियों को बेच कर निवेश जुटाने की योजना सफल नहीं हो पा रही है तो दूसरी ओर विकास दर लगातार गिरती जा रही है। जाहिर है संकट चौतरफा है और समाधान भी समग्र और व्यापक नीति बनाने से निकलेगा।

तन्मय कुमार
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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