आमलकी/रंगभरी एकादशी

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आंवले के वृक्ष के नीचे होगी भगवान श्रीविष्णु की पूजा
सहस्त्र गोदान फल के समान है पुण्य फलदायी आमलकी एकादशी व्रत

भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रत्येक माह की तिथियों एवं व्रत त्यौहार का अपना खास महत्व है। फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकदशी तिथि के दिन आमलकी/रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि आमलकी एकादशी के व्रत से द्वादश मास के समस्त एकादशी के व्रत का पुण्यफल मिलता है, साथ ही जीवन के समस्त पापों का शमन भी होता है। एकादशी तिथि के दिन स्नान-दान व्रत से सहस्त्र गोदान के समान शुभफल की प्राप्ति बतलाई गई है। इस दिन स्नान-दान व व्रत के भगवान श्रीरहि यानि श्रीविष्णु जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकदाशी तिथि 16 मार्च, शनिवार की रात्रि में 11 बजकर 33 मिनट पर लग री है जो 17 मार्च, रविवार की रात्रि 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगी। 17 मार्च, रविवार को एकादशी तिथि पड़ने से आमलकी/रंगभरी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। आज के दिन काशी में श्रीकाशी विश्वनाथ जी का प्रतिष्ठा महोत्वस व श्रृंगार दिवस भी मनाया जाता है।।

ऐसे करें भगवान श्रीहरि की पूजा – श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात आमलकी/रंगभरी एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के साथ व्रत करके समस्त नियम-संयम आदि का पालन करना चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि आंवले के वृक्ष के नीचे श्रीहरि यानि श्रीविष्णु का वास माना गया है। धार्मिक परम्परा के अनुसार आंवले के वृक्ष का पूजन पूर्वाभिमुख होकर करना चाहिए। साथ ही आंवले के वृक्ष के पूजन में पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करने चाहिये। पूजन के पश्चात वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करना पुण्य फलदायी माना गया है। आंवले के फल दान करना भी सौभाग्य में वृद्धि करता है। भगवान श्रीविष्णु की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए इनके मन्त्र ‘ऊँ मनो भगवते वासुदेवाय’ का जप अधिक करना चाहिए, अन्न ग्रहण करने का निषेध है। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए। रंगभरी एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन होता है, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।

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