रामायण में सुग्रीव ने दो राजकुमारों को आते हुए देखा। वो दो राजकुमार राम और लक्ष्मण थे। सुग्रीव अपने बड़े भाई बाली से बहुत डरे हुए थे, क्योंकि बाली उन्हें मारना चाहता था। सुग्रीव अपने कुछ वानर साथियों के साथ ऋषिमूक पर्वत पर रह रहे थे। दोनों राजकुमारों को देखकर सुग्रीव को ये लगा कि इन्हें बाली ने भेजा है। सुग्रीव ने अपने मंत्री हनुमान से कहा कि जाकर देखो, वो दो राजकुमार कौन हैं? तुम एक ब्रह्मचारी का वेश बनाकर जाना। अगर वो दोनों बाली के भेजे हुए हों तो हमें इशारा कर देना, हम यहां से भाग जाएंगे। हनुमान जी जब चले तो उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया और राम जी के सामने पहुंच गए।
इस कहानी में एक सवाल उठता है कि राजा का आदेश था ब्रह्मचारी बनकर जाओ और हनुमान जी ने ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया तो क्या ये आदेश की अवहेलना है? दरअसल हनुमान जी का ये निर्णय हमें समझा रहा है कि जब भी किसी आदेश का पालन करना हो तो अपना विवेक भी जरूर प्रयोग करना चाहिए। अंजान व्यक्त से मिलने हनुमान जी जा रहे थे, उस समय ब्राह्मणों का बहुत मान-सम्मान होता था। हनुमान जी को लगा कि सामने अगर कोई शत्रु भी है तो ब्राह्मण को देखकर एकदम प्रहार नहीं करेगा। इस कथा से हमें सीख मिलती है कि जब भी हमें किसी का आदेश मिले तो अपनी बुद्धि का भी उपयोग करना चाहिए। हालात देखकर काम में कुछ जरूरी बदलाव भी कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रखें कोई नियम नहीं तोडऩा चाहिए।
पं. विजयशंकर मेहता