उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव में कमाल हुआ है। नामांकन के आखिरी दिन तक ऐसा लग रहा था कि बहुजन समाज पार्टी की टिकट पर नामांकन करने वाले रामजी गौतम का नामांकन रद्द होगा क्योंकि उनके नामांकन पत्र पर दस्तखत करने वाले बसपा के पांच विधायकों ने कहा कि वे रामजी गौतम के प्रस्तावक से अपना नाम वापस ले रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके दस्तखत फर्जी बनाए गए हैं। इसके बाद ऐसी अफरा-तफरी मची कि बसपा प्रमुख मायावती ने यहां तक बयान दे दिया कि अगर समाजवादी पार्टी को हराने के लिए जरूरी हुआ तो वे भाजपा की भी मदद करेंगी। हालांकि राज्यसभा का चुनाव खत्म होते ही उन्होंने इसका खंडन कर दिया। पर वह एक अलग मसला है। नामांकन के आखिरी दिन लग रहा था कि रामजी गौतम का नामांकन खारिज होगा और ऐन आखिरी मौके पर सपा के समर्थन से चुनाव में उतरे प्रकाश बजाज का नामांकन मंजूर हो जाएगा।
इस तरह सपा दो सीटें जीत जाएगी। पर हुआ उसका उलटा। बसपा के रामजी गौतम का नामांकन मंजूर हो गया और सपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश बजाज का नामांकन खारिज हो गया। बसपा के रामजी गौतम का नामांकन मंजूर होने और उनके निर्विरोध चुने जाने से भाजपा और बसपा की मिलीभगत का सबूत और पुख्ता हुआ है। लेकिन यह पूरा मामला कानूनी दांव-पेंच में भी उलझ गया है। बसपा का दावा है कि एक बार प्रस्तावक बनने के बाद प्रस्तावक से नाम वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। यह बात मान भी लें तो इसका मतलब है कि रामजी गौतम का नामांकन सही था। लेकिन यह निर्दलीय उम्मीदवार प्रकाश बजाज का नामांकन खारिज होने का आधार नहीं हो सकता है। अगर बजाज का नामांकन खारिज नहीं होता तो राज्य की खाली हुई 10 सीटों पर 11 उम्मीदवार हो जाते और फिर चुनाव होता। अगर राज्य की आखिरी सीट के लिए मतदान की नौबत आती तो मुकाबला दिलचस्प हो जाता क्योंकि सात विधायकों की बगावत के बाद बसपा के पास सिर्फ 11 विधायक बचे थे और जीतने के लिए 37 वोट की जरूरत थी।
फिर खुल कर भाजपा को अपने विधायकों से बसपा उम्मीदवार के लिए वोट डलवाना होता और साथ ही अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों को भी साथ लेना होता। इससे बसपा और भाजपा की मिलीभगत जाहिर होती। दूसरी ओर सपा के पास अपने बचे हुए 11 वोटों के अलावा बसपा के सात वोट आ गए थे और कांग्रेस के सात विधायकों का समर्थन भी निर्दलीय प्रकाश बजाज को मिल सकता था। फिर अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों की पूछ बढ़ जाती। पर बजाज का नामांकन खारिज हो गया, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनको हाई कोर्ट जाने को कहा है। उार प्रदेश की आठ और उत्तराखंड की एक सीट जीतने के बाद उच्च सदन में उसके सांसदों की संख्या 92 हो गई है। कर्नाटक की एक सीट पर भाजपा से चुने गए अशोक गस्ती का कोरोना वायरस की वजह से निधन हो गया।
सीट भाजपा को मिल जाने के बाद राज्यसभा में उसके सांसदों की संख्या 93 हो जाएगी। अपनी दो सहयोगी पार्टियों के अलग हो जाने के बाद भी भाजपा और उसके बचे हुए सहयोगियों और बाहर से समर्थन देने वाली पार्टियों को मिला कर भाजपा के पास 110 से ज्यादा सीटें हैं। बहरहाल, भाजपा को कभी भी उच्च सदन में इतनी सीटें नहीं रही हैं। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की संख्या अब 40 से नीचे आ गई है। कांग्रेस की कभी इतनी कम संख्या नहीं रही। अब भाजपा का लक्ष्य किसी तरह से अपने सांसदों की संख्या तीन अंकों में पहुंचाने का है। सवाल है कि या पार्टी इसके लिए 2022 तक इंतजार करेगी या उससे पहले ही ‘ऑपरेशन कमल’ चला कर अपनी संख्या बढ़ाएगी?