सरकार ने ई-सिगरेट पर पाबंदी लगा दी है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इसके प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। सरकार इस पाबंदी पर अमल को लेकर इतनी जल्दी में है कि उसने अध्यादेश के जरिए इस पर पाबंदी लगाई है। सरकार ने नवंबर में होने वाले शीतकालीन सत्र तक इंतजार नहीं किया। स्वास्थ्य मंत्रालय और उसकी टीम की बनाई रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने अध्यादेश लाने की मंजूरी दी।
इस अध्यादेश के लागू होने के बाद ई-सिगरेट का इस्तेमाल पूरी तरह से प्रतिबंधित हो जाएगा। सरकार ने इसके निर्माण, आयात-निर्यात, बिक्री, इस्तेमाल, भंडारण, विज्ञापन सब पर रोक लगा दी है। इसके लिए भारी भरकम जुर्माने और एक से लेकर तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। ऐसा नहीं है कि यह फैसला अचानक हुआ है। पिछले कुछ समय से ई-सिगरेट का इस्तेमाल बढ़ने और सेहत पर इसके असर को लेकर चर्चा हो रही थी। दिल्ली सरकार का मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा था और हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इसे नियंत्रित करने का निर्देश दिया था।
बहरहाल, ऐसी चर्चा तो असली सिगरेट, तंबाकू और शराब के असर को लेकर भी होती रहती है। दूसरे, भारत में ई-सिगरेट का बाजार अभी बहुत बड़ा नहीं है। एक आकलन के मुताबिक दो साल पहले तक इसका बाजार कुल एक सौ करोड़ रुपए का था। तभी माना जा रहा था कि ऐसी जल्दबाजी में सरकार इस पर पाबंदी लगाने का फैसला नहीं करेगी। पर सारे अनुमानों को गलत साबित करते हुए सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। अब सवाल है कि सरकार ने असली सिगरेट, तंबाकू, गुटखा, शराब आदि पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई है? देश में लाखों लोग तंबाकू और गुटखा खाकर मुंह और गले के कैंसर का शिकार हो रहे हैं पर सरकार उसकी बजाय ई-सिगरेट पर पाबंदी लगा रही है? कहीं यह पाबंदी सिगरेट, गुटखा और तंबाकू लॉबी के दबाव में तो नहीं लगाया जा रहा है?
सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि ई-सिगरेट क्या है? इसे इलेक्ट्रोनिक निकोटिन डिलीवरी सिस्टम यानी एंड्स के नाम से भी जाना जाता है। यह एक लिथियम ऑयन बैटरी से चलने वाला यांत्रिक सिगरेट है, जिसके तंबाकू की बजाय भाप बन कर उड़ जाने वाले सोल्यूशन का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे खाने पीने की चीजों में कई जगह असली चीजों की जगह उसका फ्लेवर या एसेंस इस्तेमाल किया जाता है। उसी तरह ई-सिगरेट में असली तंबाकू की जगह सोल्यूशन का इस्तेमाल होता है।
यह असली तंबाकू के मुकाबले बहुत कम नुकसानदेह होता है। इसे बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि इसका नुकसान असली सिगरेट के मुकाबले 90 फीसदी तक कम है। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति इसका भी आदी हो सकता है। लोगों को इसकी भी लत लग सकती है पर यह भी हकीकत है कि यह असली सिगरेट से कम खतरनाक है। तभी यह सवाल उठ रहा है कि जब सरकार असली सिगरेट पर पाबंदी नहीं लगा रही है तो ई-सिगरेट पर पाबंदी की हड़बड़ी क्यों है? वह भी तब जबकि भारत में अभी इसका बाजार बहुत बड़ा नहीं हुआ है। इसका एक कारण यह बताया जा रहा है कि असली सिगरेट के मुकाबले नौजवान पीढ़ी ई-सिगरेट की ओर ज्यादा आकर्षित हो रही थी क्योंकि इसके बारे में यह धारणा बन गई थी कि यह कम नुकसानदेह है। पिछले कुछ दिनों में दिल्ली और दूसरे महानगरों में कई जगह स्कूलों बच्चों से ई-सिगरेट का जखीरा बरामद किया गया।
इस पर पाबंदी लगाने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि कई लोग सिगरेट छोड़ने के चक्कर में इसका इस्तेमाल शुरू करते हैं और बाद में उनको दोनों की लत लग जाती है। हालांकि भारत में लोगों का एक से ज्यादा नशे का आदी होना कोई नई बात नहीं है। बहरहाल, इसकी लत को लेकर सारी दुनिया में कई तरह के रिसर्च प्रकाशित हुए हैं, जिनमें कहा गया है कि ई-सिगरेट में इस्तेमाल होने वाला निकोटिन ऐसा होता है, जिससे बहुत जल्दी लोगों को लत लगती है। यानी यह लोगों को एडिक्ट बनाने वाला नशा है।
भले इसका नुकसान कम है पर इसकी लत बहुत जल्दी लगती है। इसे बनाने वाली कंपनियां बहुत आक्रामक तरीके से इसका प्रचार और विस्तार कर रही हैं। पारंपरिक सिगरेट के मुकाबले इनके बहुत ज्यादा ब्रांड आ गए हैं और इनकी डिजाइन भी नौजवानों को आकर्षित करती है। तभी सारी दुनिया में इसका बाजार बहुत तेजी से बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक इसका ग्लोबल बाजार 21 हजार करोड़ रुपए का है। भारत में इसका बाजार छोटा है पर इसके बढ़ने की रफ्तार 60 फीसदी सालाना की है। इसलिए सरकार को आनन फानन में इस बारे में फैसला करना पड़ा।
दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों ने अपने यहां ई-सिगरेट को मंजूरी दे रखी है। अमेरिका में ई-सिगरेट पर रोक नहीं है और यूरोपीय संघ के सारे देशों में कानूनी रूप से इसकी बिक्री होती है। ब्रिटेन से लेकर न्यूजीलैंड, कनाडा आदि देशों में भी इस पर पाबंदी नहीं है। इनके यहां भी इसे लेकर रिसर्च हुए हैं और इन्होंने इसकी लत लगाने वाले निकोटिन से ज्यादा इस बात पर ध्यान दिया है कि असली सिगरेट के मुकाबले इसका नुकसान कम है। भारत सरकार ने दुर्भाग्य से इस पहलू पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है।
फिर भी यह अच्छा कदम है कि सरकार ने इसे रोका। इसके साथ ही उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि पाबंदी पूरी तरह से लागू हो। बहरहाल, यहां भी प्राथमिकता तय करने का मामला है।
अजित कुमार
लेखक पत्रकार है, ये उनके निजी विचार हैं