अपनी गलती पर करें विमर्श

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कई बार हम चीजों के अपने मन मुताबिक न होने पर दूसरों को दोष देते हैं। कभी हम सरकार को तो कभी अपने बुजुर्गों को, कभी कंपनी को तो कभी भगवान को दोषी ठहराते हैं। जबकि एक इंसान होने के नाते हममें वो शक्ति है कि हम अपने सभी सपनों को खुद साकार कर सकते हैं। एक कथा यूं हैं कि एक आदमी रेगिस्तान से गुजरते वक्त बुदबुदा रहा था कि कितनी बेकार जगह है ये, बिलकुल भी हरियाली नहीं है, और हो भी कैसे सकती है, यहां तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है। तपती रेत में वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। अंत में वो आसमान की तरफ देख झल्लाते हुए बोला कि क्या भगवान आप यहां पानी क्यों नहीं देते?

अगर यहां पानी होता तो कोई भी यहां पेड़-पौधे उगा सकता था, और तब ये जगह भी कितनी खूबसूरत बन जाती। ऐसा बोल कर वह आसमान की तरफ ही देखता रहा, मानो वो भगवान के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो। तभी एक चमत्कार होता है, नजर झुकाते ही उसे सामने एक कुआं नजर आता है। वह उस इलाके में बरसों से आता था पर आज तक उसे वहां कोई कुआं नहीं दिखा था, वह आश्चर्य में पड़ गया और दौड़कर कुंए के पास गया, कुंआ लाबालब पानी से भरा था। उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा और पानी के लिए धन्यवाद करने की बजाये बोला: पानी तो ठीक है लेकिन इसे निकालने के लिए कोई उपाय भी तो होना चाहिए।

उसका ऐसा कहना था कि उसे कुएं के बगल में पड़ी रस्सी और बाल्टी दिख गई। एक बार फिर उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। वह कुछ घबराहट के साथ आसमान की ओर देख कर बोला,लेकिन मैं ये पानी यहां से कैसे ले जाऊंगा? तभी उसे महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से छू रहा है, पलट कर देखा तो एक ऊंट उसके पीछे खड़ा था। इस कहानी का सार यही है कि हमारे पास जो भी संसाधन है उसी के बल पर अपने सपनों को साकार करने का प्रयास करें। शुरुआत में भले लगे कि ऐसा कैसे संभव है पर जिस तरह इस कहानी में उस इंसान को रेगिस्तान हरा-भरा बनाने के सारे साधन मिल जाते हैं उसी तरह हमें भी प्रयत्न करने पर अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए रूरी सारे उपाय मिल सकते हैं।

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