माली हालत की चिंता ज्यादा

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हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारतीयों के बीच कोरोना संक्रमित होने के मुकाबले अर्थव्यवस्था और निजी आमदनी बड़ी चिंता का विषय है। यानी देश में अधिकतर लोग बीमार पड़ने की तुलना में खाना, रोजगार और दवाओं की उपलब्धता को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। ये स्थिति बताती है कि लॉकडाउन ने कैसे लोगों की कमर तोड़ दी और अब कैसे लोग जिंदगी बचाने से ज्यादा अपने जहान को लेकर फिक्रमंद हो गए हैं। संभवतः यही वजह है कि बाजारों से लेकर परिवहन तक में लोगों की भीड़ अब काफी देखने को मिलती है। यानी सोच यह बन गई है कि अगर कोरोना वायरस से बच भी गए तो भूखों मरने की नौबत आ सकती है। इसलिए लोग इस बात की ज्यादा चिंता करने लगे हैं कि जब तक जिंदा हैं, कैसे खाते-पीते जीवित रहें। इस बीच कोरोना का कहर जारी है, हालांकि सरकार ने हाल ही में दावा किया है कि भारत में कोविड-19 अपने चरम पर पहुंच चुका है। यानी अब इसमें गिरावट आएगी। लेकिन यूरोप और अमेरिका का अब जो तजुर्बा है, उसको देखते हुए ऐसी बातों पर सहज यकीन करना आसान नहीं है।

सरकार की तरफ से नियुक्त एक वैज्ञानिक दल के अनुसार देश में रोजाना कोरोना वायरस के नए संक्रमण में गिरावट जारी रहेगी और फरवरी 2021 तक महामारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बशर्ते सभी स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन किया जाए और सरकार आगे भी सोशल डिस्टेंसिग के नियमों में ढील न दे। इस दल ने यह दावा भी किया कि भारत की लगभग 30 प्रतिशत आबादी ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है। लेकिन ये गौरतलब है कि भारत कोरोना संक्रमण के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। फिर अनेक महामारी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि उत्तर भारत में सर्दियों में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण आने वाले महीनों में वायरस संक्रमण में तेजी आ सकती है। वायु प्रदूषण संक्रमण को बढ़ावा देता है। डॉक्टरों का कहना है कि त्योहारों के समय भी वायरस फैल सकता है। यह बीमारी बेहद संक्रामक है और आने वाले कुछ महीनों में बीमारी में एक और उछाल देखा जा सकता है, जैसा यूरोप अभी हो रहा है। तो महामारी की हालत नहीं सुधरी है। मगर आम लोगों की आर्थिक हालत इतनी बिगड़ गई है कि वो बीमारी से ज्यादा अपनी माली सेहत की चिंता करने लगे हैं। यह सचमुच बेहद अफसोसनाक हालत है।

वैसे केंद्र सरकार की मानें तो उसने पिछले हफ्ते अर्थव्यवस्था के लिए तीसरा प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया। यह 2,65,080 करोड़ रुपयों का पैकेज है। इसमें रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना, तनाव से गुजर रहे 26 सेटरों के लिए कुछ कदम, और संपत्ति खरीदने वालों और रियल एस्टेट डेवलपरों के लिए कुछ कदम हैं। इसके तहत ईपीएफओ के साथ पंजीकृत कंपनियां अगर नए लोगों को या मार्च से सितंबर के बीच नौकरी गंवा चुके लोगों को नौकरी पर रखती हैं, तो उन्हें सरकार की तरफ से कुछ लाभ मिलेंगे। मगर सवाल यह है कि जिस वजह से लोगों को निकाला गया अगर वे कायम रहेंगी तो कौन सी कंपनी किसी को नौकरी पर रखेगी? साफ है कि सरकार ने पिछले दो पैकेजों और दूसरे छोटे-छोटे कदमों से कोई सबक नहीं सीखा है। आम अनुभव है कि इस समय त्योहारों का मौसम होने के बावजूद बाजारों में उतनी खरीद-बिक्री नहीं हो रही है, जितनी इस सीजन में होती थी। इस समय सिर्फ टेलीकॉम, फार्मा, आईटी और एफएमसीजी जैसे चुनिंदा क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी सब क्षेत्रों में गिरावट चल रही है। यानी यह नहीं कहा जा सकता कि पूरी अर्थव्यवस्था में सुधार आ गया है। मगर सरकार पैकेज के अपने नजरिए पर कायम है।

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