राष्ट्रपति से अपील क्यों नहीं करते?

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आमतौर पर किसी भी संकट की स्थिति में राजनीतिक दल राष्ट्रपति से अपील करते हैं। जब उनको लगता है कि सरकार विफल हो रही है या सरकार समस्या को सुलझाने के लिए प्रयास नहीं कर रही है तो पार्टियां राष्ट्रपति से अपील करती हैं। लेकिन अभी इतने बड़े संकट में कोई भी पार्टी राष्ट्रपति से अपील नहीं कर रही है। आखिरी बार केंद्रीय कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन को लेकर विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति से दखल देने की अपील की थी। उसके बाद से कोई पहल नहीं की गई है। यहां तक कि विपक्षी पार्टियां अब सीधे प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख रही हैं। पहले आमतौर पर चिट्ठी राष्ट्रपति को लिखी जाती थी। लेकिन हाल ही में 12 पार्टियों के नेताओं ने साझा चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिखी है। राज्यों के मुयमंत्री भी कोरोना संकट के बीच चिट्ठी प्रधानमंत्री को ही लिख रहे हैं। यह अलग बात है कि इन चिट्ठीयों का जवाब प्रधानमंत्री नहीं देते हैं। बहरहाल, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पिछले दिनों ऑपरेशन हुआ था। कोरोना वायरस का टीका लगवाने के थोड़े दिन बाद उनको हृदय संबंधित कुछ समस्या आई थी, जिसके बाद ऑपरेशन करना पड़ा था। लेकिन अब अस्पताल से लौट कर आए हुए उन्हें काफी समय हो गया है। इसके बावजूद उनकी कोई सक्रियता नहीं दिख रही है।

क्या राजनीतिक दल उनकी सेहत की वजह से उनको चिट्ठी नहीं लिख रहे हैं और उनसे अपील नहीं कर रहे हैं या ऐसा करने की औपचारिकता निभाना भी जरूरी नहीं समझ रहे हैं? वैसे इस मसले पर राष्ट्रपति भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि देश में कोरोना से हालात बेहद खराब हैं। आरएसएस भी कह चुकी है कि सरकारी स्तर पर गफलत ले डूबी है। वैसे भी पहले दौर के मुकाबले कोरोना की इस महामारी के सिर पर अब एक नया सींग उग आया है। वह है- बी.1.617.2. यह बहुत तेजी से फैलता है। यह तो फैल ही सकता है लेकिन डर भी लगता है कि भारत की तरह अफ्रीका और एशिया के गांवों में यह नया संक्रमण फैल गया तो या होगा ? हमारे गांवों में रहनेवाले करोड़ों लोग भगवान भरोसे हो जाएंगे। न उनके पास दवा है, न डॉक्टर है और न ही अस्पताल। उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वे शहरों में आकर अपना इलाज करवा सकें। इस समय भारत में 18 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन अगर कोरोना का तीसरा हमला हो गया तो या पता कि अकेला भारत ही दुनिया का सबसे अधिक दुखी देश बन जाए? तब भारत अपने भोलेपन पर शायद खुद पछताए।

उसने छह करोड़ से ज्यादा टीके दुनिया के दर्जनों देशों को बांट दिए लेकिन अब भी कई देशों के पास करोड़ों टीकों का भंडार भरा हुआ है लेकिन वे उन्हें भारत को देने में आनाकानी कर रहे हैं। रुस जैसे देश दे रहे हैं लेकिन जो टीका भारत में 100-150 रुपए का बनता है, उसे वह हजार रुपए में बेच रहा है। यह भी कितना विचित्र है कि भारत की कुछ कंपनियां, जो रेमडेसिविर इंजेशन बनाती है, सिर्फ निर्यात के लिए, उनको अभी तक भारत सरकार ने देश के अंदर इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी है। लाखों इंजेशन मुंबई हवाई अड्डे पर पड़े धूल खा रहे हैं। यह ठीक है कि दुनिया के कई छोटे-मोटे देश भारत को ऑसीजन-यंत्र, दवाइयां, कोरोना-किट आदि भेंट कर रहे हैं लेकिन वे यह यों नहीं सोचते कि भारत के बुजुर्गों को टीके सबसे पहले लगने चाहिए। उन देशों के बच्चों और नौजवानों को उतना खतरा नहीं है, जितना भारत के बुजुर्गों को है। जो भी हो, भारत के 140 करोड़ लोगों को अपनी कमर कसनी होगी। अगर तीसरा हमला हुआ तो उसका मुकाबला भी डट कर करना होगा। टीका, इंजेशन, ऑसीजन वगैरह तो जुटाएं ही जाएं, उनके साथ-साथ मास्क, शारीरिक दूरी, प्राणायाम, काढ़ा, घरेलू इलाज और अपना मनोबल बुलंद बनाकर रखा जाए। इसके अलावा चारा भी तो कुछ नहीं।

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