किसने उठाया खर्चा

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हमने चालीस साल विधिवत मास्टरी की जिसमें से छह साल गुजरात में। चूँकि मास्टर थे तो उलटे मन से ही सही लेकिन बच्चे और उनके अभिभावक नमस्ते सर जी, केम छो, साहेब आदि-आदि के द्वारा हमारा ‘अभिवादन’ किया करते थे। अब 45 वर्ष बाद पता चला कि ‘अभिवादन’ कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। यह बहुत खर्चीला काम है। कल अहमदाबाद में तीन घंटे का जो ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम आयोजित हो रहा उसके लिए वहाँ की कोई ‘अभिवादन समिति’ 100 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। हम अपने समय में गुजरात के लोगों द्वारा किए गए अपने ‘अभिवादन’ के लिए ह्रदय से आभारी हैं लेकिन उसके लिए उनका जो भी खर्चा हुआ वह हम लौटाने की स्थिति में नहीं हैं। क्या करें, पेंशनयाफ्ता हैं तिस पर अभी तक जनवरी की पेंशन बैंक खाते में आई नहीं है। कहीं उसे ‘ट्रंप अभिवादन समारोह’ के राष्ट्रीय कार्यक्रम खाते में तो ट्रांसफर नहीं कर दिया? विरोध करें तो संबित पात्रा हमें ओछी नीयत का कह देंगे जो भारत के इस अभूतपूर्व गौरव के पुण्य क्षण में भी खर्चे का प्रश्न उठा रहा है।

किसके घर आते हैं भगवान स्वयं चल कर। कृष्ण का बालसखा सुदामा भी खुद चलकर गया था द्वारिका। और वह गरीब ब्राह्मण भी कृष्ण को भेंट देने के लिए तीन मुट्ठी चावल पड़ोसी से उधार मांगकर ले गया था। और एक हम हैं कि एक महिने की पेंशन को झींक रहे हैं। गौरव के इसी रौरव क्षण में तोताराम के तंज ने हमारी तन्द्रा भंग की, बोला- देख लिया देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का टुच्चापन? हमने पूछा- क्यों क्या हुआ? बोला- पूछ रहे हैं ट्रंप की इस यात्रा का सैंकड़ों करोड़ का खर्च कौन उठा रहा है? अरे, जिस भगवान ने दुनिया के सबसे धनवान लोकतंत्र के महाबली को सबसे बड़े लोकतंत्र के घर अपनी जूठन गिराने की प्रेरणा प्रदान की है वह क्या इस छोटे सी धन राशि का प्रबंध नहीं करेगा? हमारे यहाँ तो लोग उसी के भरोसे जनसंख्या बढ़ाते जाते हैं कि जिसने चोंच दी है चुग्गा भी देगा। क्या तीन लोक का वह स्वामी इतना दरिद्र हो गया कि घर आए एक अतिथि के भोजन और स्वागत सत्कार का जुगाड़ नहीं करवा सकता? और फिर यह रकम इस देश के लिए कौन बड़ी रकम है? हमने कहा- तोताराम, क्या सौ-डेढ़ सौ करोड़ की बड़ी रकम नहीं है?

यदि ऐसी ही रईसी है तो हमारी जनवरी की पेंशन क्यों रोक रखी है? बोला- इस ख़ुशी के मौके पर भी तुझे पेंशन नहीं भूलती। सच है, जिन लोगों को खुश नहीं होना वे रोने का कोई न कोई बहाना निकाल ही लेते हैं। अरे, ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। पता है, नेहरू जी को किसी अमरीकी राष्ट्रपति का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए 12 वर्ष पापड़ बेलने पड़े थे। और एक अपने मोदी जी हैं जिनके साथ मंच साझा करने के लिए अमरीका ही नहीं; चीन, रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन, जापान के नेता मौके के इंतज़ार कर रहे होते हैं। हमने कहा- फिर भी मात्र छत्तीस घंटे के लिए इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत है बोला- क्या खर्चा-खर्चा लगा रखी है? यह भारत है सोने की चिड़िया। एक बार पंख फड़फड़ा दे तो पाँच-सात सौ करोड़ का सोना वैसे ही झर पड़े। माल्या, मोदी,चोकसी जैसे सारी चौकसी के बावजूद हजारों करोड़ मार कर चले जाते हैं और कुछ फर्क नहीं पड़ता तो सौ-दो सौ करोड़ के लिए क्यों हाय तौबा मचा रहा है? यह देश एक दिन में सैंकड़ों करोड़ का गुटका-खैनी खा जाता है। कोई धनवान से धनवान देश भी क्या खाकर इसका मुकाबला करेगा? हमने कहा- लेकिन नेहरू जी ने तो इस तरह किसी नेता के स्वागत के लिए पानी की तरह पैसा नहीं बहाया।

बोला- पैसा खर्च करने के लिए भी दिल चाहिए। उस खानदान ने तो अपने बच्चों की शादी तक में कुछ खर्चा नहीं किया। पता है, प्रियंका की शादी में नरसिंहा राव और नारायण दत्त तिवारी तक को नहीं बुलाया। बस, दोनों बाराती घरातियों ने मिलकर निबटा लिया काम। कंजूस लोग! हमने कहा- लेकिन इतने पैसे में तो जाने कितने अच्छे काम हो सकते थे। ट्रंप ऐसा क्या दे जाएंगे हमें? बोला- आदमी की दुनिया में कोई इमेज भी तो होती होगी |इस कंजूसी के कारण ही तो चर्चिल ने गाँधी को ‘अधनंगा फकीर’ कहा था। और एक हमारे मोदी जी हैं जो खुद को फकीर कहते हैं लेकिन क्या किसी की हिम्मत होगी उनको ‘फकीर’ कहने की? दिन में एक से बढ़कर एक जैकेट-कुरते बदलते हैं कि सामने वाला चकाचौंध हो जाता है। तभी तो जापान वाला बिना बैंक गारंटी के एक लाख करोड़ रुपए की बुलेट ट्रेन के लिए कर्जा दे गया। हमने कहा- फिर भी ? बोला- अब आगे कुछ बोलने की ज़रूरत नहीं है। फिर भी, फिर भी… करके प्राण खा लिए। समझ ले, मैंने किया है यह डेढ़ सौ करोड़ का खर्चा। हमने पूछा- तेरे पास कहाँ से आया इतना पैसा? बोला- यह तेरा काम नहीं हैं |जब इनकम टेक्स वाले आएँगे तो बता दूंगा।

रमेश जोशी
(लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वाÓ (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल -09460155700 l blog-jhoothasach.blogspot.com (joshikavirai@gmail.com)

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