सरकार की योजना आखिर है क्या ?

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हर आदमी इस बात को लेकर हैरान है कि सरकार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए किस योजना के तहत काम कर रही है? यह हैरानी इसलिए है कि जिस समय समझदार लोग जिस बात की उम्मीद कर रहे होते हैं, सरकार उसके उलटा कदम उठा लेती है। या समझदार, जानकार, विशेषज्ञ लोग जो सलाह देते हैं सरकार उसे मानने की बजाय उसके उलटा काम करती है। जिस समय भारत में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं उस समय सरकार ने लॉकडाउन में ढील देना शुरू किया है। ऐसा लग रहा है कि सरकार ने संक्रमण की चेन तोड़ने की अपनी पहली प्राथमिकता छोड़ दी है। याद करें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले भाषण में कहा था कि लोग 21 दिन घरों में रहें तो संक्रमण की चेन टूट जाएगी। अब लोग करीब 50 दिन से घरों में बंद हैं और टूटने की बजाय संक्रमण की चेन बढ़ती जा रही है।

तभी सरकार इसे तोड़ने की बजाय इसके साथ ही रहने के सुझाव दे रही है। वहां तक भी ठीक है पर उसमें भी लगातार ऐसी ढील दी जा रही है, जिसे हो सकता है कि फिर वापस लेना पड़ा। जैसे देश में सबसे ज्यादा संक्रमित महाराष्ट्र में सरकार को कई इलाकों में शराब की बिक्री का आदेश वापस लेना पड़ा। लोगों की इतनी भीड़ जुट गई कि सरकार ने ज्यादा संक्रमण वाले इलाकों में शराब की दुकानें बंद कीं और लोगों के घरों तक शराब पहुंचाने की व्यवस्था में जुटी है। इसी तरह अब सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के अलावा दूसरी विशेष यात्री ट्रेनें भी चला दी हैं, जिनके जरिए राजधानी दिल्ली को देश के अलग अलग शहरों से जोड़ा जाएगा।

ये दोनों फैसले भी हैरान करने वाले हैं क्योंकि समझदार लोग पहले दिन से सुझाव दे रहे थे कि प्रवासी मजदूरों को निकालने का बंदोबस्त किया जाए। पर संक्रमण की चेन तोड़ने में लगी सरकार ने किसी के सुझाव पर ध्यान नहीं दिया। लॉकडाउन के बीच लाखों मजदूर सड़कों पर चलते रहे, कुचल कर मरते रहे, भूख से मरते रहे या थक कर, बीमार होकर मरते रहे। लेकिन सरकार ने लॉकडाउन के दो चरणों के 40 दिनों तक उन पर ध्यान ही नहीं दिया। दो चरण का लॉकडाउन पूरा होने के बाद तीसरे चरण में एक दिन अचानक सरकार ने विशेष ट्रेनें चलवा दीं और बसों या निजी गाड़ियों से भी लोगों के आने-जाने की अनुमति दे दी। इतना ही नहीं सामान्य यात्रियों के लिए भी ट्रेनें शुरू करवा दी गई हैं। हालांकि इनमें भी फिलहाल वे ही लोग सफर करेंगे, जो कहीं फंसे हुए हैं।

हैरान करने वाली आगे की बात यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दूसरे कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मजदूरों से रूकने की अपील करते हुए कहा कि वे शहर छोड़ कर नहीं जाएं क्योंकि बहुत जल्दी लॉकडाउन खत्म होगा और कामकाज शुरू हो जाएगा। सवाल है कि बहुत जल्दी लॉकडाउन कैसे और क्यों खत्म हो जाएगा? इस समय प्रतिदिन औसतन तीन हजार से ज्यादा मामले आ रहे हैं, देश में नए हॉटस्पॉट बन रहे हैं, जैसे जैसे टेस्टिंग बढ़ेगी वैसे वैसे मामले बढ़ेंगे, फिर लॉकडाउन कैसे खत्म हो जाएगा? यह समझने की बात है कि लॉकडाउन में ढील देने और टेस्टिंग बढ़ाने से मामले बढ़ेंगे, जिससे लोगों में पैनिक भी बनेगा।

दूसरे, सरकार को यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि वह ग्रीन जोन में सब कुछ चालू कर देगी और रेड जोन में सब बंद कर देगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी। हकीकत यह है कि किसी जोन का काम दूसरे जोन के बिना नहीं चल सकता है। अगर ग्रीन जोन में कोई फैक्टरी है तो जरूरी नहीं है कि उसे चलाने के लिए सारा कच्चा माल या दूसरे कंपोनेंट भी उसी इलाके में मिलते हों। उसे हो सकता है कि रेड या ऑरेंज जोन से लाना पड़े। इसी तरह आपूर्ति की शृंखला भी सभी जोन में एक समान रूप से बनानी होगी तभी उत्पादन बढ़ाने का कोई फायदा होगा।

असल में सरकार को बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि उसे कैसे आगे बढ़ना है। उसने सबसे पहले लॉकडाउन को रामबाण समझ लिया था पर वह फेल हो गया। सो, इसके आगे सरकार के पास कोई आइडिया नहीं है। ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन में होने वाले नुकसान का प्रोजेक्शन भी सरकार ने तैयार नहीं कराया था, तभी जब उत्पादन बंद हुआ, बिक्री घटी, सरकार को राजस्व मिलना बंद हुआ, निर्यात से होने वाली आय एकदम बंद हो गई और विदेश से रेमिटेंसेज यानी प्रवासियों की कमाई भारत आनी बंद हो गई तो सरकार के हाथ-पांव फूल गए। 40 दिन की बंदी में सरकार कंगाली की स्थिति में पहुंच गई और अब उसे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है कि इससे कैसे निकलें। अब उसके पास जो एकमात्र आइडिया है वह ये है कि लॉकडाउन धीरे धीरे खोलें, हॉटस्पॉट में सब बंद रखें और दूसरी जगह काम चालू कराएं। पर पहली नजर में ही इस आइडिया की खामियां दिख जा रही हैं।

सरकार ने लोगों को राहत पहुंचाने का जो उपाय निकाला उससे भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है। बिना ब्याज माफ किए कर्ज की किश्तों पर तीन महीने की रोक से आम लोगों को कोई फायदा नहीं होगा। कर्ज के लिए बैंकों में तरलता बढ़ाने का भी कोई फायदा नहीं है क्योंकि इस हालात में कौन कर्ज लेगा और उसका क्या करेगा। इसलिए कायदे से सरकार को इस समय सिर्फ दो पहलू से विचार करना चाहिए। पहला तो यह कि सरकारी और निजी सेक्टर में खासतौर से संगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का वेतन सुनिश्चित हो। इसके लिए सरकार फंड बना दे। दूसरा काम यह करे कि संगठित क्षेत्र से बाहर की पूरे देश की आबादी के लिए भी एक फंड बना दे, जिससे उनको जरूरत की सारी चीजें मुहैया कराई जाएं। यह काम तभी होगा, जब सरकार वित्तीय घाटे की परवाह किए बगैर काम करे।

शशांक राय
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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