पिछले एक सप्ताह से उत्तराखंड की भाजपा में जो घमासान चल रहा था उसको पार्टी हाईकमान ने गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना ही उचित समझा, जो वहां के विधायक चाहते थे। मंगलवार को इस सियासी सरगर्मी का पटापेक्ष करते हुए वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना त्यागपत्र देकर पार्टी हाईकमान के फैसले को माना। भाजपा में जहां अनुशासन को सर्वोपरि माना जाता है। वहीं पार्टी हाईकमान भी हर मामले को गंभीरता से लेकर उसपर तत्काल फैसले लेता है। अब वहां हाईकमान धन सिंह रावत को सीएम बनाना चाहता है, जिसके लिए बुधवार को पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई गई, जिसमें हाईकमान द्वारा भेजे गए पर्यवेक्षक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह, महासचिव और राज्य के प्रभारी दुष्यंत गौतम शीर्ष नेताओं के द्वारा प्रस्तावित धनसिंह रावत को विधानमंडल का नेता चुना जाना है।
इसमें यह कल्पनना नहीं की जा सकती है कि वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के समर्थक इसपर हायहुल्ला करेंगे। पार्टी की गाइड लाइन के अनुसार उन्हें हाईकमान का फैसला सर्वमान्य होगा। उत्तराखंड में पार्टी ने सीएम का चेहरा क्यों बदला, अंदरूनी कारण तो कुछ भी हों लेकिन बाहरी कारण त्रिवेंद्र सिंह रावत से विधायकों का असंतुष्ट होना है। पत्रकारों के एक सवाल पर त्रिवेंद्र सिंह रावत का केवल इतना कहना था कि सामूहिक विचार के बाद ही होते हैं भारतीय जनता पार्टी में फैसले होते हैं। कभी सोचा नहीं था पार्टी मुझे इतना सम्मान देगी, ऐसा सिर्फ भाजपा में ही हो सकता है। त्रिवेंद्र इस दो टूक के जवाब से समझा जाता सकता है कि यह फैसला हाईकमान का फैसला है। पार्टी ने स्थानीय नेताओं के पार्टी की छवि खराब होने की शिकायत पर हाईकमान से फैसला लेने आग्रह किया था।
हाईकमान ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल सीएम चेहरा बदलने का निर्णय लिया। आगामी विधानसभा में पार्टी सत्ता में लौटेगी या उत्तराखंड विपक्ष के हाथों में चला जाएगा यह तो आने वाले विधानसभा चुनाव में ही तय होगा लेकिन पार्टी के तत्काल फैसले ने उन विपक्षी पार्टियों के लिए सीख दी है जो अपने विधायकों की मांगों को नजरअंदाज करते हुए केवल सीएम पर भी भरोसा जताती हैं। अभी दो दिन पहले कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में सरकार गिरने के बाद अपना दर्द बयान करते हुए कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया यदि धैर्य से काम लेते तो आज सीएम बने होते। आज वह भाजपा की पिछली पंक्ति में बैठते हैं उनका यह कहना उनकी लाचारी व कांग्रेस पार्टी हाईकमान की विवशताओं को उजागर करता है।
जिस तरह भाजपा ने उत्तराखंड में तत्काल अपना सीएम चेहरा बदला है, यदि उसी तरह कांग्रेस भी मध्य प्रदेश में टालमटोल न करके ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में तत्काल निर्णय लेती तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार न गिरती। राहुल के बयान से लग रहा है कि वह ज्योतिरादित्य सिंधिया का पक्ष तो लेते थे लेकिन पार्टी के दूसरे नेता उनकी चलने नहीं देते थे। उनकी जिद के कारण कांग्रेस को एक राज्य की साा से बाहर होना पड़ा। बहरहाल भाजपा शीर्ष कमान ने यह साबित कर दिया कि वह जो निर्णय लेता है उसका मानना पार्टी के सभी नेता, पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं के लिए लाजिम होता है। चार साल सीएम रहने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कारण जानने की बजाय हाईकमान के फैसले का मानकर अपना त्याग पत्र दे दिया। उनके ऐसा करने से पार्टी में उनका कद छोटा नहीं बल्कि बढ़ा है। हाईकमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को केंद्र में भी ले सकता है।