अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस भारत-यात्रा से किसी भी विदेशी राष्ट्रध्यक्ष की यात्रा की तुलना नहीं की जा सकती। कुछ अर्थों में यह अप्रतिम रही है। अब तक आए किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति या किसी अन्य विदेशी नेता ने भारत और उसके प्रधानमंत्री की वैसी तारीफ कभी नहीं की, जैसी कि ट्रंप ने की है। अपने दो दिन के प्रवास में ट्रंप ने एक शब्द भी ऐसा नहीं बोला और कोई भी हरकत ऐसी नहीं की, जिसके लिए वे सारी दुनिया में जाने जाते हैं। दूसरे शब्दों में उनकी भारत-यात्रा ने उन्हें काफी परिपक्व बना दिया। यदि इस परिपक्वता को वे बनाए रखेंगे तो राष्ट्रपति का अगला चुनाव जीतने में उन्हें काफी मदद मिलेगी।
ट्रंप ने अपने अहमदाबाद-भाषण में पाकिस्तान का जिक्र भी बड़ी तरकीब से किया। उन्होंने उसके आतंकवाद से लड़ने की तो कसम खाई लेकिन उसे कोई दोष नहीं दिया। उस लड़ाई में उन्होंने उसकी मदद की बात भी कही। यही उच्च कोटि की कूटनीति है। उन्हें अफगानिस्तान से पिंड छुड़ाने में पाकिस्तान की मदद जो चाहिए। उन्होंने न सिर्फ नागरिकता कानून आदि ज्वलंत मुद्दों को छूने से परहेज कर लिया बल्कि मोदी को धार्मिक स्वतंत्रता के दृढ़ पक्षधर का प्रमाण-पत्र भी थमा दिया। उन्होंने कश्मीर पर मध्यस्थता का अपना पुराना राग जरुर अलापा लेकिन उसे इतने मंद स्वर में गाया कि उसका सुनना या न सुनना, एक बराबर हो गया। उनके वाशिंगटन से रवाना होने के पहले सरकारी बयानों से जो आशंकाएं पैदा हो गई थीं, वे निराधार सिद्ध हो गईं। ट्रंप ने अहमदाबाद में जो छक्के मारे हैं, उन पर अमेरिका के 40 लाख प्रवासी भारतीय क्या तालियां नहीं पीट रहे हैं ? इस चुनावी मौसम में इससे बड़े फायदे का सौदा क्या हो सकता है ? ट्रंप जैसा सेठजी कहीं जाए और खाली हाथ लौट आए, यह कैसे हो सकता है ? उन्होंने चलते-चलते 21 हजार करोड़ रु. के हेलिकाप्टर भी भारत को बेच दिए और अरबों रु. के व्यापार के सब्ज-बाग भी दिखा दिए। ट्रंप ने इस भारत-यात्रा से अपने देश का हित तो साधा ही, मोदी की और खुद की छवि को भी चार चांद लगाने में कोई कसर न छोड़ी।
डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)