कालाष्टमी का त्योहार प्रत्येक माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है, जिन्हें शिवजी का एक अवतार माना जाता है। इसे कालाष्टमी, भैरवाष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा और व्रत का भी विधान माना गया है। यह इस बार 14 मई को है। नारद पुराण के अनुसार कालाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए। इस दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए। इस दिन कुत्ते को भोजन करवाना शुभ माना जाता है।
कथा के अनुसार एक दिन भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठ होने का विवाद उत्पन्न हुआ। विवाद के समाधान के लिए सभी देवता और मुनि शिवजी के पास पहुंचे। सभी देवताओं और मुनि की सहमति से शिवजी को श्रेष्ठ माना गया। परंतु ब्रह्माजी इससे सहमत नहीं हुए। ब्रह्माजी, शिवजी का अपमान करने लगे। अपमानजनक बातें सुनकर शिवजी को क्रोध आ गया, जिससे कालभैरव का जन्म हुआ। उसी दिन से कालाष्टमी का पर्व शिवजी के रुद्र अवतार कालभैरव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने लगा। कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं और काल उससे दूर हो जाता है। इसके अलावा व्यक्ति रोगों से दूर रहता है। साथ ही उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।