अहंकार छोड़कर आईने में देखने का समय

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नाम में क्या रखा है? कोविड-19 को हम कोई भी नाम दें, वह बीमार करेगा ही। इसलिए, कोई वायरस के सबसे नए रूप बी-1.617 को ‘इंडियन’ नाम दे रहा है तो हम क्यों भड़क जाते हैं? चीनियों ने इस वायरस का नाम चीन या वुहान के नाम पर रखने का दुस्साहस करने वाले पर हमला करके नया कायदा तय कर दिया है। हम, भारत के लोग अपने तुनुकमिज़ाज पड़ोसी की नकल में अपने संवेदनशील राष्ट्रवाद से प्रेरणा ले रहे हैं। अगर आप पतली चमड़ी वाले भारतीय राष्ट्रवादी हैं, तो हमारे सामने कठिन सवाल हैं। मैं सिर्फ सबको आईना दिखाने की कोशिश कर रहा हूं। दक्षिण एशियाई मामलों के अमेरिकी विशेषज्ञ स्टीफन कोहेन कहा करते थे, ‘कभी भी तीसरी दुनिया या सुपरपावर जैसे शब्दों का प्रयोग मत कीजिए। ये सब व्यापक के ठप्पे हैं।

ये विश्लेषण करने, बारीकियों और जटिलताओं को समझने के लिए हमारा दिमाग बंद कर देते हैं।’ लेकिन ये जुमले चल गए। हमने देखा है कि कैसे कई देश तीसरी दुनिया के खांचे से बाहर निकलने और सुपरपावर बनने की महत्वाकांक्षा रखने में गर्व महसूस करते रहे हैं। हम भी इनमें शामिल हैं। और इसकी वजह भी है। 1990 से 2020 के बीच तीन दशकों में हमने 30 करोड़ लोगों को घोर गरीबी से बाहर निकाला। हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गई।

विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार हमने बना लिया। भारतीय मूल के लोग ग्लोबल कारपोरेशन चला रहे हैं, अमेरिका के उप-राष्ट्रपति से लेकर ब्रिटेन के वित्त तथा गृह मंत्री और पुर्तगाल के प्रधानमंत्री जैसे अहम पदों पर बैठे हैं। दुनिया में भारत का कद ऊंचा हुआ है, यह हकीकत है। रणनीतिक लिहाज से हमारे बढ़ते वजन का अंदाजा ‘क्वाड’ जैसे संगठन की हमारी सदस्यता से मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनियाभर में समकालीन नेताओं में लोकप्रिय और सम्मानित हैं।

पर एक समस्या महसूस हो रही है! सुपरपावर देशों और तीसरी दुनिया के अलावा एक भौगोलिक क्षेत्र है, जिसका राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व है, और वह है उप-सहारा अफ्रीका। दुनिया में जब बुरी स्थिति की मिसाल देनी होती है, तो इसका नाम लेते हैं।

मसलन यह कि उस देश के संकेतक तो उप-सहारा अफ्रीका के संकेतकों से भी बदतर हैं। कोविड महामारी के दौरान भारत को केन्या से दी गई ‘सहायता’ को लेकर हाल ही में सोशल मीडिया पर छोटा-सा बवंडर उठा। केन्या ने कॉफी, चाय, मूंगफली के रूप में कुल 12 टन की छोटी-सी सहायता भेजी थी।

सोशल मीडिया पर एक खेमा इसलिए नाराज था कि कोई देश लगभग सुपरपावर बन चुके देश को इतनी मामूली कैसे सहायता भेज रहा है? दूसरी, नाराजगी कुछ ऐसी थी, ‘ #शुक्रिया मोदी जी, भारत की आपने वह हालत कर दी कि उसे मदद में चाय, कॉफी, मूंगफली लेनी पड़ रही है।’ लेकिन दोनों खेमों में एक ही तरह की भावना दिखी कि केन्या एक अफ्रीकी देश है, वह भी उप-सहारा अफ्रीका का।

उस महादेश के बारे में हमारे मन में जो ‘भूखा-नंगा’ वाली छवि बनी है उसके विपरीत, 20 अफ्रीकी देश ऐसे हैं जिनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी का आंकड़ा भारत से कहीं बेहतर है। और इनमें से अधिकतर देश उप-सहाराके ही हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश (आईएमएफ) के आंकड़े यही दिखाते हैं कि हमसे ज्यादा अमीर 20 अफ्रीकी देशों की कुल आबादी 68 करोड़ है। कुल 128 करोड़ की आबादी वाले अफ्रीकी महादेश की कुल जीडीपी 2.6 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है। भारत की करीब 3 ट्रिलियन डॉलर है, लेकिन आबादी भी ज्यादा है।

आईएमएफ ने 2021 के लिए 195 देशों के प्रति व्यक्ति जीडीपी के आंकड़े का जो अनुमान लगाया है उस पर गौर करें। इस साल भारत कुछ पायदान नीचे गिर कर 144वें स्थान पर है जबकि घाना, कोंगो, आइवरी कोस्ट और मोरक्को उसके ऊपर हैं। दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया और मॉरिशस और ज्यादा ऊपर हैं। अगर बिहार एक देश होता तो वह 195 में से 184वें स्थान पर होता। नाइगर, इरिट्रिया, अफगानिस्तान, सिएरा लिओन, सोमालिया, और दो और देशों से ठीक ऊपर।

अब बताइए, क्या आबादी वाला बहाना चलेगा? बिहार की आबादी तो 185 से 195 नंबर वाले देशों की कुल आबादी से ज्यादा है। इसी तरह उत्तर प्रदेश एक देश होता तो वह 172वें नंबर पर होता और माली की बराबरी कर रहा होता। यूपी-बिहार मिलकर यह तय करते हैं कि भारत पर कौन राज करेगा, लेकिन इन दोनों राज्यों में घोर गरीबी में जी रही कुल आबादी उप-सहारा अफ्रीका की कुल आबादी से ज्यादा ही होगी।

इससे दो निष्कर्ष निकलते हैं। एक यह कि ‘अश्वेत महादेश’ के साथ, ‘उप-सहारा अफ्रीका से भी बदतर’ एक बेहद नस्लवादी और अन्यायपूर्ण क्षेत्र मौजूद है। दूसरा यह कि भारत को दुनिया आज जिस नज़र से देख रही है, उसके चलते इस देश के एक हिस्से के लिए इसी तरह के बुरे विशेषण बोले जा सकते हैं। हमारी नदियों में बहते शवों की तस्वीरें महान भारतीय हृदय-प्रदेश की स्थायी ध्वस्त छवि बनकर रह जा सकती हैं।

क्या हो अगर कल को कोई किसी की यह कहकर तुलना करने लगे कि उसके मानव संकेतक भारतीय-गंगा क्षेत्र के मैदानी इलाके के संकेतकों से भी बुरे हैं? क्या यह बी-1.617 वायरस को ‘भारतीय वायरस’ कहने से भी बुरा नहीं है? कुशासन, पहचान को लेकर घटिया किस्म की राजनीति, भ्रष्टाचार, झूठे अहंकार, आत्म-प्रशंसा, खोखली जीत के जश्न हमारी छवि को इस कदर खराब कर रहे हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर पा रहे। बाहर की दुनिया बड़ी बेरहम, बड़ी क्रूर है।

केन्या से मदद पर बवाल

कोविड महामारी के दौरान भारत को केन्या से दी गई ‘सहायता’ को लेकर हाल ही में सोशल मीडिया पर छोटा-सा बवंडर उठा। केन्या ने कॉफी, चाय, मूंगफली के रूप में कुल 12 टन की छोटी-सी मदद भेजी थी। अलग-अलग खेमों में नाराजगी थी। उनमें एक ही भावना दिखी, केन्या उप-सहारा अफ्रीका का देश है। यह सब भेजकर भारत की हैसियत इतनी नीचे कैसे कर सकता है?

शेखर गुप्ता
(लेखक एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’ हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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