बिखराव ही दे रहा है घाव

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पिछले साल ऑनलाइन एजुकेशन को लेकर देश का दृष्टिकोण बदला है। अब यह सभी संस्थानों के लिए बड़ी गतिविधि बन जाएगी। दिल्ली आईआईटी समेत विभिन्न शिक्षण संस्थान कई ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म से अनुबंध कर रहे हैं। इनकी मदद से अब सर्टिफिकेट कोर्सेस दिए जाएंगे, जिनमें बाकायदा परीक्षाएं होंगी। इससे यह धारणा बदलेगी कि ऑनलाइन कोर्सेस, सामान्य कोर्स की तुलना में कमजोर होते हैं। साथ ही इसमें ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ सकेंगे। आगे जाकर इसी तरह से डिप्लोमाडिग्री कोर्स कराने की संभावनाओं पर भी विचार चल रहा है। हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को देखें तो इसमें भी उच्च शिक्षा में कुल प्रवेश (एनरोलमेंट) अनुपात को करीब 26 फीसद से बढ़ाकर 50 फीसद करने का लक्ष्य रखा गया है। यह ऑनलाइन एजुकेशन के माध्यम से संभव हो सकता है। दूसरा बदलाव उच्च शिक्षा व्यवस्था में हो सकता है, जो अभी बिखरी हुई लगती है। जैसे आपको मेडिकल की पढ़ाई करनी है, तो एस जाना होगा, मैनेजमेंट के लिए आईआईएम जाइए। इससे आप किसी एक विषय के विशेषज्ञ तो बन जाते हैं, लेकिन समस्याओं के समाधान की क्षमता कम ही रहती है।

क्योंकि समस्याओं का कोई विषय नहीं होता। उदाहरण के लिए अगर आप किसानों की आय दोगुनी करना चाहते हैं तो इस किस विषय के अंतर्गत आएगा? यह सभी विषयों के तहत आएगा क्योंकि इसमें विभिन्न टेनोलॉजी की जरूरत होगी। इसीलिए भले ही हम उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हों, लेकिन बिखराव के कारण हमारा काम समाज में नजर नहीं आता। देश में एक भी ऐसा समूह नहीं है, जहां डॉक्टर व इंजीनियर लंबे समय तक साथ काम करते हों। अब देश के शीर्ष शिक्षण संस्थाओं का साथ आना जरूरी है। हमें बहुविषयक (मल्टीडिस्पिलिनरी) विश्वविद्यालय मॉडल की जरूरत है, जिसके बारे में एनईपी में भी चर्चा है। अभी नॉलेज यानी ज्ञान तो बहुत उत्पन्न हो रहा है, लेकिन वह नॉलेज, वेल्थ (धन-संपत्ति) में नहीं बदल पा रही। यानी ज्ञान को पर्याप्त मात्रा में प्रयोग में नहीं लाया जा रहा। हाल ही में आए नेशनल साइंस फाउंडेशन डेटा के मुताबिक रिसर्च पेपर के मामले में भारत दुनिया में तीसरे पायदान पर है। लेकिन इस ज्ञान का उपयोग कर पैसा कमाना, कंपनी खोलना नहीं सिखाया जाता। अब इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं और स्थिति धीरे-धीरे ही सही, बदल रही है।

इसी तरह हमें शोध में प्रासंगिकता भी लाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए लंदन की हवा की गुणवत्ता पर किए गए शोध का दिल्ली के प्रदूषण की समस्या के लिए कोई महत्व नहीं है। आप कोई समाधान देते हैं, लेकिन वह समाज तक पहुंचता ही नहीं, तो उसका क्या लाभ है। अब इस दिशा में भी बड़े शिक्षण संस्थान काम कर रहे हैं। आने वाले 5 वर्षों में आईआईटी सिर्फ इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं, बल्कि बहुविषयक संस्थान बनेंगे। ऐसा ही अन्य शिक्षण संस्थानों में भी होने की संभावना है। इसके अलावा ज्यादा से ज्यादा फैकल्टी, पीएचडी स्कॉलर आदि ज्ञान का इस्तेमाल समाधान तलाशने और आंत्रप्रेन्योर बनने में करेंगे। ऑनलाइन एजुकेशन बढ़ेगा। उदाहरण के लिए अमेरिका का एक बड़ा विश्वविद्यालय 13 हजार अंडर ग्रैजुएट छात्रों को प्रवेश देता है, वहीं भारत के 23 आईआईटी 16 हजार को प्रवेश देते हैं। हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है, जिसमें ऑनलाइन एजुकेशन मदद करेगा। इससे भारतीय संस्थानों का अंतरराष्ट्रीकरण भी बढ़ेगा। यानी विदेशी छात्र और स्कॉलर्स, शोधकर्ता आईआईटी जैसे संस्थानों में ज्यादा संख्या में पढ़ सकेंगे और विदेशी फैकल्टी, शिक्षक यहां पढ़ा सकेंगे। इन सभी बदलावों से दुनिया में हमारे संस्थानों की रैंक भी अच्छी होगी।

वी. रामगोपाल राव
(लेखक आईआईटी-दिल्ली के डायरेक्टर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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